By अभिनय आकाश | Dec 24, 2024
20 जनवरी 2025 को डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेने वाले हैं। उससे पहले ही वो कई देशों से पंगे ले चुके हैं। कुछ दिन पहले ही उन्होंने भारत, कनाडा, चीन, मैक्सिको जैसे देशों पर टैरिफ लगाने की बात कही थी। फिर कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनने का ऑफर दे दिया। अब पनामा और ग्रीनलैंड को धमकी दी है। इससे पनामा और ग्रीनलैंड की टेंशन बढ़ गई है। ट्रंप के इन एक के बाद एक बयानों से ऐसा लग रहा है कि जैसे वो चीन की तरह ही विस्तारवादी नीति को अमल करने का मन बना चुके हैं। ट्रंप की बयानबाजियों से लग रहा है कि वो अमेरिका को विस्तावाद की ओर लेकर जाने के लिए तैयार हैं। ये तो अब तक हमने हजारों मर्तबा सुना होगा कि अगला विश्व युद्ध पानी की वजह से होगा। मगर पानी के रास्ते पर कोई लफड़ा मच जाए तो क्या? जब हम लोग जियोग्राफी और हिस्ट्री की पढ़ाई करते थे। वर्ल्ड ट्रेड के शुरुआती सबक सिखते थे तब स्वेज और पनामा जैसे नहर के बारे में सुनते थे। स्वेज से जुड़ी क्राइसिस के बारे में सुनते थे। 32 किलोमीटर के उस संकड़े रास्ते के बारे में सुनते थे जिस पर कोई आफत आती थी तो एशिया, अफ्रीका और यूरोप के बीच व्यापार की लागत बढ़ जाती थी। ऐसी ही एक रास्ते को लेकर बवाल मचा है। एक छोटा सा देश, जिसका दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क के साथ झगड़ा है। वर्तमान में केवल बयान है, लेकिन अगर ये बयान धरातल पर उतरता है तो भविष्य में इसको लेकर घमासान होना तय है। दरअसल, आज से करीब 100 बरस पहले 56 हजार मजदूरों ने मिलकर पनामा में 80 किलोमीटर लबी जमीन खोदी और दो महासागरों को मिला दिया। इस तरह पनामा नहर वजूद में आई। ये नहर अमेरिका ने बनाई थी ताकी उसके मालवाहक जहाजों को समुद्र में लंबा रास्ता न तय करना पड़े। 1977 में अमेरिका ने इसका नियंत्रण पनामा को दे दिया था। अमेरिका ने 1977 में राष्ट्रपति जिमी कार्टर द्वारा हस्ताक्षरित एक संधि के तहत 31 दिसंबर 1999 को जलमार्ग का नियंत्रण पनामा को सौंप दिया था। अमेरिका के जहाज अब भी उस नहर का इस्तेमाल कर रहे थे। बस पनामा कम पैसों में उस नहर का इस्तेमाल करने दे रहा था। यह नहर जलाशयों पर निर्भर है और 2023 में पड़े सूखे से यह काफी प्रभावित हुई थी, जिसके कारण देश को इससे गुजरने वाले जहाजों की संख्या को सीमित करना पड़ा था। इसके अलावा नौकाओं से लिया जाने वाला शुल्क भी बढ़ा दिया गया था।
पनामा को धमकाया
इतिहास से वर्तमान में आए तो 22 दिसंबर 2024 को अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि उनका प्रशासन पनामा नहर पर नियंत्रण हासिल करने का प्रयास कर सकता है जिसे अमेरिका ने मूर्खतापूर्ण तरीके से अपने मध्य अमेरिकी सहयोगी को सौंप दिया था। ट्रंप ने अपनी इस बात के पीछे तर्क दिया कि अटलांटिक और प्रशांत महासागरों को जोड़ने वाली इस महत्वपूर्ण नहर से गुजरने के लिए जहाजों से बेवजह शुल्क वसूला जाता है। हमने इस नहर का नियंत्रण पनामा को दिया था न कि चीन और किसी अन्य देश को। मगर वो बाज नहीं आया तो हम पूरी नहर पर कब्जा कर लेंगे।
पनामा पर कंट्रोल क्यों चाहते हैं ट्रंप
ट्रंप का आरोप है कि पनामा अमेरिकी जहाजों से नहर से निकलने की ज्यादा कीमत वसूल रहा है। यह नहर 82 किमी. लंबी है, जो अटलांटिक और प्रशांत महासागर को जोड़ती है। इस पर 1977 तक US का नियंत्रण था। साल 1999 से पूरा कंट्रोल पनामा का हो गया था। हर साल इस नहर से पनामा को एक अरब डॉलर से ज्यादा की ट्रांजिट फीस मिलती है। एक अनुमान के अनुसार पनामा नहर से रोजाना लगभग 14 हजार जहाज और पोत गुजरते हैं। ऐसे में इनसे होने वाली कमाई की कल्पना कीजिए। ऐसे में इससे होने वाली कमाई का अंदाजा लगा सकते हैं। कमाई के साथ साथ एक बड़ी वजह चीन भी है क्योंकि पनामा नहर अमेरिका का पूर्वी तट को चीन से जोड़ता है।
पनामा पर मिला जवाब
ट्रंप ने पनामा को धमकी दी थी कि अगर इस लैटिन अमेरिकी देश ने नहर के इस्तेमाल के लिए अमेरिकी जहाजों से 'बेवकूफी भरा' शुल्क वसूलना जारी रखा तो पनामा नहर का नियंत्रण अमेरिका वापस ले लेगा। पनामा अमेरिका का एक अहम सहयोगी है और नहर इसकी अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है। पनामा के राष्ट्रपति ने समय-समय पर अनेक मुद्दों पर ट्रंप का साथ दिया है। पनामा के राष्ट्रपति जोस राउल मुलिनो ने कहा कि देश की स्वतंत्रता से कोई समझौता नहीं किया जा सकता है। पनामा के राष्ट्रपति मुलिनो ने एक वीडियो जारी करके कहा कि नहर का प्रत्येक वर्ग मीटर पनामा का है और आगे भी उनके देश का ही रहेगा। मुलिनो ने कहा, पनामा के लोगों के कई मुद्दों पर अलग-अलग विचार हो सकते हैं, लेकिन जब हमारी नहर और हमारी संप्रभुता की बात आती है तो हम सभी एकजुट हैं। मुलिनो ने कहा कि शुल्कों को मनमाने ढंग से निर्धारित नहीं किया जाता है। उन्होंने कहा कि पनामा ने जहाज यातायात को बढ़ाने के लिए अपनी पहल पर वर्षों से नहर का विस्तार किया है। उन्होंने यह भी कहा कि जहाज यातायात शुल्क में वृद्धि से सुधारों के लिए भुगतान करने में मदद मिलती है।
ग्रीनलैंड को लेकर ट्रंप के इरादे क्या हैं?
नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अब सबसे बड़े द्वीप ग्रीनलैंड को खरीदने और उस पर कब्जे की इच्छा जताई है। ट्रंप ने इसे बहुत जरूरी बताया है। दरअसल, ग्रीनलैंड उत्तरी अमेरिकी महाद्वीप का हिस्सा है, लेकिन फिलहाल इस पर डेनमार्क का कंट्रोल है और वहां स्वायत्त स्वशासन है। ग्रीनलैंड 1953 तक डेनमार्क का उपनिवेश था। साल 2009 में इसे स्वशासन के साथ स्वायत्तता मिल गई।
कहां हैं ग्रीनलैंड और ट्रंप को क्यों इसमें इंटरेस्ट
ग्रीनलैंड उत्तरी अटलांटिक महासागर में स्थित है और यह दुनिया का सबसे बड़ा द्वीप है। अपनी रणनीतिक स्थिति को देखते हुए यह आर्कटिक के करीब है और रूस सहित कुछ देश इस क्षेत्र पर नियंत्रण के लिए होड़ कर रहे है। हालांकि ग्रीनलैंड उत्तरी अमेरिकी महाद्वीप का हिस्सा है, लेकिन भू-राजनीतिक रूप से इसका यूरोप से संबंध है। इसे यूरोपीय संघ से फंड मिलता है क्योंकि इसे डेनमार्क के ही एक खंड के रूप में समझा जाता है। ग्रीनलैंड के खनिज संसाधनों को ट्रंप की इसमें रुचि की सबसे बड़ी वजह माना जा सकता है। ग्रीनलैंड के प्राकृतिक संसाधन- जैसे कोयला, तांबा, जस्ता और लौह-अयस्क की वजह से अमरीका इसमें रुचि दिखा रहा है।
अपने बयान से उड़ा दी थी ट्रूडो की नींद
डोनाल्ड ट्रंप ने जस्टिन ट्रूडो से कहा है कि कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बन जाना चाहिए। अमेरिका में फिलहाल 50 राज्य हैं। डोनाल्ड ट्रंप के इस प्रस्ताव ने कनाडा की जमीन हिला दी। फिर डोनाल्ड ट्रंप ने खुद ही इस खबर पर मुहर लगा दी। डोनाल्ड ट्रंप ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रूथ एप पर एक तस्वीर डालकर खबर की पुष्टि की है। तस्वीर देखकर ऐसा लग रहा है कि ट्रंप अमेरिका में खड़े होकर कनाडा को देख रहे हैं। ताकी कनाडा को अमेरिका का हिस्सा बनाया जा सके। इस तस्वीर में ये भी दिखाया गया है कि डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा के झंडे को अपने कब्जे में ले लिया है। तस्वीर पोस्ट करते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने लिखा है ओह कनाडा! हैरानी की बात देखिए कि कनाडा का राष्ट्रगान भी ओह कनाडा से ही शुरू होता है।