Gyan Ganga: कंस ने माता देवकी के आठवें पुत्र की गणना के लिए कौन-सा फॉर्मूला लगाया था

By आरएन तिवारी | Aug 19, 2022

सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे !

तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयंनुम:॥ 


प्रभासाक्षी के श्रद्धेय पाठकों ! आइए, भागवत-कथा ज्ञान-गंगा में गोता लगाकर सांसारिक आवा-गमन के चक्कर से मुक्ति पाएँ और अपने इस मानव जीवन को सफल बनाएँ। 


पिछले अंक में हम सबने श्रीमद भागवत महापुराण के अंतर्गत राम-कथा का श्रवण किया और तीनों भैया तथा उनकी शक्तियों के सहारे राम-तत्व तक पहुँचने में सफलता प्राप्त की।

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आइए ! आगे की कथा प्रसंग में चलते हैं---


परम मंगलमय स्वरूप श्रीमद्भागवत अंतर्गत दशम स्कन्ध में प्रवेश करें। 


श्रीमद् भागवत भगवान श्री कृष्ण का साक्षात विग्रह है। “इयं वांग्मयी मूर्ति” । यह दशम स्कंध, भगवान कृष्ण का ह्रदय है, जहां कौस्तुभ मणि माला लटकती रहती है। श्री वेदव्यास ने इस दशम स्कंध को दो भागों में विभक्त किया है। पूर्वाध और उत्तरार्ध आप जानते हैं क्यों? क्योंकि कुदरत ने हमारे हृदय को भी दो हिस्सों में बांट रखा है। शुकदेव जी से राजा परीक्षित ने प्रश्न किया, हे भगवन ! आपने चंद्रवंश और सूर्य वंश का वर्णन बड़े ही विस्तार से किया, अब कृपा करके भगवान श्री कृष्ण के परम पवित्र चरित्र भी हमें सुनाइए श्री कृष्ण तो मेरे कुलदेवता हैं।


कथितो वंशविस्तारो भवता सोमसूर्ययो:।

राज्ञा चोभयवंश्यानां चरितं परमाद्भुतम्।।


उन्होंने कदम कदम पर हमारी रक्षा की है, महाभारत के युद्ध में मेरे दादा पांडवों की युधिष्ठिर की जीत उनकी ही कृपा से हुई। जब मैं अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से जल रहा था, उस समय अपने हाथ में चक्र लेकर मेरी माता के गर्भ में प्रवेश कर मेरी रक्षा की। 


अब आप मुझे यह बताइए कि वे अपने पिता का घर छोड़ कर ब्रज में क्यों चले गए उन्होंने ग्वाल बालों के साथ कहाँ- कहाँ निवास किया और कौन-कौन से लीलाएँ की। आखिर उन्होंने अपने ही मामा कंस को क्यों मारा ? उन्होंने द्वारिकापुरी में यदुवंशियों के साथ कितने सालों तक निवास किया। उनकी कितनी पत्नियाँ थीं। वे सब आप मुझे विस्तार से सुनाइए मैंने अनाज और जल का परित्याग कर दिया है फिर भी भूख और प्यास मुझे नहीं सता रही है, क्योंकि मैं आपके कमल मुख से अमृत रूपी कथा का पान कर रहा हूं!


एवं निशम्य भृगुनंदन साधुवादं वैयासकि स भगवानथ विष्णुरातम 

प्रत्यर्च्यकृष्णचरितं कलिकल्मषघ्नं व्याहर्तुमारभत भागवत प्रधान:.।।


शुकदेव जी ने कहा- राजन श्री कृष्ण लीला में आपकी बहुत रूचि है, श्री कृष्ण के संबंध में प्रश्न पूछने से वक्ता, प्रश्न पूछने वाला और श्रोता दोंनो ही पवित्र हो जाते हैं।


वासुदेवा कथाप्रश्न 

शुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित ! राक्षसों के अत्याचार से दुखी होकर पृथ्वी गाय का रूप धारण करके ब्रह्मा के पास गई और अपनी पीड़ा सुनाई।


सूर मुनि गंधर्वा मिलि करि सर्वा गे विरंची के लोका ।  

संग गो तनु धारी भूमि विचारी परम विकल भय सोका ॥ 


शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित भगवान को अपने अंशों के साथ यदुकुल में जनम लेने को कहा और पृथ्वी को समझा बुझाकर ढांढस बंधाया।

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मथुरा में वसुदेव जी अपनी विवाहिता पत्नी देवकी के साथ जाने के लिए तैयार हुए। उग्रसेन का लड़का कंस वह अपनी चचेरी बहन देवकी को बहुत प्यार करता था। वह दोनों दंपति को रथ में बैठाया और रथ हांकने लगा अचानक आकाशवाणी हुई, अरे मूर्ख ! जिसको तुम रथ में बैठा कर बहुत प्यार के साथ ले जा रहे हो उसके आठवें गर्भ की संतान तुम्हें मार डालेगी।


“अस्यास्त्वामष्टमो गर्भों हंता यां वहसे बुध:”


भगिनीं हन्तु मारब्ध: खड्ग पाणे कचेSग्रहित 

 पुत्रान् समर्पइष्येSस्या यतस्ते भयमुपस्थितम॥  


वाणी सुनते ही कंस ने तलवार खींच ली और अपनी बहन की चोटी पकड़कर उसे मारने के लिए तैयार हो गया। महात्मा वसुदेव ने कंस को बहुत समझाया, कहा-- हे कंस ! आपको देवकी से तो कोई खतरा नहीं है अगर है तो इसके आठवें पुत्र से तो जन्म लेते ही इसके पुत्रों को मैं ला कर दे दूंगा। पूरा मथुरा जानता था कि वसुदेव सदा सत्य बोलते हैं। कंस ने छोड दिया। समय आने पर देवकी के गर्भ से प्रतिवर्ष एक एक करके 8 पुत्र और एक कन्या हुई शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित पहला पुत्र कीर्तिमान था वसुदेव ने उसे लाकर कंस को दे दिया। 


कंस ने प्रसन्न होकर वसुदेव से कहा आप इस सुकुमार शिशु को ले जाइए इससे मुझे कोई डर नहीं है। आकाशवाणी के अनुसार आठवें गर्भ की संतान से मेरी मौत होगी। इधर नारद बाबा ने सोचा कि सभी पुत्रों को छोड़ता जाएगा तो इसके पाप का घड़ा कैसे भरेगा? उन्होंने समझा दिया कि आठवां पुत्र कौन होगा इसकी गिनती तुम कैसे करोगे उल्टी की सीधी। कंस ने सोचा नारद बाबा ठीक ही कह रहे हैं, उसने देवकी और वसुदेव को हथकड़ी और बेडी में जकड़ कर जेल में डाल दिया और जैसे-जैसे पुत्र होते गए उन्हें मारता गया देवकी के सातवें गर्भ में बलराम जी पधारे कृष्ण ने अपनी योग माया से कहा कि तुम ब्रज में जाओ नंद बाबा के गोकुल में वसुदेव की पत्नी रोहिणी रहती है। देवकी के गर्भ को उसके गर्भ में स्थापित कर दो इस प्रकार रोहिणी के गर्भ से बलराम जी का प्रादुर्भाव हुआ।


शेष अगले प्रसंग में । --------

श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । 


- आरएन तिवारी

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