कांग्रेस में कब समाप्त होगा नेतृत्व संकट ? फॉर्मूले हो रहे फेल, राहुल-प्रियंका की कोशिशें जारी

By अनुराग गुप्ता | Aug 31, 2021

नयी दिल्ली। कांग्रेस की मौजूदा स्थिति बदतर होती जा रही है। नेतृत्व संकट से जूझ रही कांग्रेस क्या पूरी तरह से बिखर जाएगी ? या फिर खुद को संकट से उभार लेगी ? हालात देखकर लग तो नहीं रहा कि पार्टी के भीतर चल रहा अंदरूनी संकट टल गया है। सवाल यह भी है कि क्राइसिस मैनेटमेंट का सिस्टम क्यूं तबाह हो गया ? राजनीतिक गलियारों में कांग्रेस के भविष्य को लेकर कई तरह के सवाल घूम रहे हैं। हालांकि पार्टी सूत्रों से कई तरह की जानकारियां मिलती रहती हैं लेकिन फैसले जमीनीस्तर पर कारगर साबित नहीं हो रहे हैं। 

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कांग्रेस में नेतृत्व संकट

यूं तो कांग्रेस में अंदरूनी कलह चल रही है कि तकरीबन-तकरीबन हर राज्य में दिखाई दे रही है लेकिन पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की कलह ने तो सुर्खियां बटोर रखी है। राजस्थान में गहलोत-पायलट विवाद के बाद, पंजाब में अमरिंदर-सिद्धू और फिर छत्तीसगढ़ का बघेल-सिंह देव विवाद सामने आया। दरअसल, कांग्रेस ने हिन्दी भाषी राज्यों में सत्ता की चाहत को लेकर बिना मुख्यमंत्री उम्मीदवार का ऐलान किए हुए चुनाव लड़ा और मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और छत्तीसगढ़ में सरकार बनाई लेकिन चुनाव बाद मुख्यमंत्री का ऐलान किए जाने से पार्टी की कांग्रेस इकाई के दूसरे गुट नाराज नजर आ रहे थे हालांकि उन्हें मनाने के लिए तरह-तरह के फॉर्मूले दिए गए और फौरी राहत भी मिल गई।

MP से लेनी चाहिए सीख

कांग्रेस को लगा की स्थिति सुधर गई लेकिन अंदरूनी विवाद धीरे-धीरे कब बड़ा रूप धारण कर ले इसका अंदेशा लगाना जरा मुश्किल होता है और मध्य प्रदेश में हुआ भी कुछ ऐसा ही। सिंधिया कांग्रेस में रहते हुए खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे थे। कमलनाथ मुख्यमंत्री पद के साथ-साथ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की कुर्सी पर भी विराजमान थे और सिंधिया के लोकसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा भेजने की स्पष्ट बात भी नहीं कही। जिसका विरोधी दल ने फायदा उठाया और सिंधिया के समर्थन से कमलनाथ सरकार को गिरा दिया। 

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राजस्थान में भी संकट बरकरार

राजस्थान में भी गहलोत सरकार मुश्किल में आ गई थी, जब सचिन पायलट ने लगभग बगावत करने की ठान ली थी और अपना मोबाइल फोन बंद कर दिया था लेकिन गहलोत ने स्थिति को बिगड़ने नहीं दिया और विधायकों की परेड करवा दी। हालांकि आलाकमान ने पायलट को समझाया और उन्हें भविष्य में सम्मान देने की बात कही।

राहुल गांधी ने उस वक्त लचीला रुख अपनाते हुए दोनों नेताओं को करीब आने फॉर्मूला दिया लेकिन राजनीति में जो दिखाई देता है अक्सर वो हो यह जरूरी तो नहीं। पायलट खेमे के विधायकों का कहना है कि पायलट ने प्रदेश में वाजिब सम्मान मांगा था, जो अभी तक उन्हें मिला नहीं।

पंजाब में कब खत्म होगा विवाद

पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ नवजोत सिंह सिद्धू ने मोर्चा खोल रखा था। जिसके बाद आलाकमान ने तीन सदस्यीय समिति बनाकर इस विवाद को समाप्त करने की कोशिश की लेकिन मौजूदा स्थिति को देखते हुए साफ प्रतीत होता है कि आलाकमान द्वारा दिया गया फॉर्मूला फेल हो चुका है। नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश कांग्रेस पद की जिम्मेदारी सौंप दी गई थी फिर भी उन्होंने अमरिंदर के खिलाफ बोलना बंद नहीं किया। ऊपर से उनके सलाहकारों द्वारा की गई टिप्पणियों से राजनीति और ज्यादा गर्मा गई। 

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हाल की परिस्थितियों को देखें तो इस बार अमरिंदर सिंह मजबूत स्थिति में नजर आ रहे हैं। कांग्रेस ने भी स्पष्ट कर दिया है कि अमरिंदर के नेतृत्व में ही आगामी विधानसभा चुनाव लड़ा जाएगा। लेकिन क्या सिद्धू को यह बात हजम होगी ? यह सवाल अपने आप में अहम है। क्योंकि पिछले कुछ सप्ताहों में वहां पर दो कांग्रेस दिखाई दी। एक सिद्धू की कांग्रेस तो दूसरी अमरिंदर की कांग्रेस और वो एक-दूसरे के खिलाफ शक्ति प्रदर्शन करते हुए देखे भी गए।

छत्तीसगढ़ भी उलझ रहा

राजस्थान और पंजाब में घमासान मचा ही था कि छत्तीसगढ़ का विवाद भी खुलकर सभी के सामने आ गया। चुनावों से पहले कांग्रेस ने भूपेश बघेल और टीएस सिंह देव की मेहनत की बदौलत अपनी पकड़ मजबूत की और 15 साल बाद सत्ता में आई। हालांकि मुख्यमंत्री कौन बनेगा ? इस पर भी संशय बना हुआ था। लेकिन भूपेश बघेल ने बाजी मार ली।

कहा तो यह भी जा रहा है कि कांग्रेस ने ढाई-ढाई साल वाला फॉर्मूला सुझाया था। ऐसे में भूपेश की बारी पूरी होने पर टीएस सिंह देव मुख्यमंत्री बनने का इंतजार करने लगे लेकिन कांग्रेस ने तो अपने ही फॉर्मूले को भुला दिया। पिछले सप्ताह भूपेश बघेल गुट के विधायकों और पूर्व विधायकों ने छत्तीसगढ़ कांग्रेस प्रभारी पीएल पुनिया से मुलाकात की और उन्हें मुख्यमंत्री बनाए रखने की वकालत की। 

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नेतृत्व संकट का सामना कर रही कांग्रेस विवाद उलझने के बाद ही क्यों सक्रिय होती है। जब उन्होंने फॉर्मूला सुझाया था तो उन्हें खुद विवाद को सुर्खियां बटोरने से पहले ही सुलझाना चाहिए था। लेकिन सुलझाता कौन ? क्योंकि कांग्रेस खुद बीमार चल रही है। पार्टी अध्यक्षा सोनिया गांधी का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है, इसीलिए तो नेतृत्व को लेकर 23 नेताओं ने सवाल खड़ा किया था। जिसे जी-23 का नाम दिया गया और फिर उन्हें निशाना भी बनाया गया लेकिन उनके द्वारा उठाए गए सवालों का समाधान नहीं निकला। फिलहाल राहुल और प्रियंका मिलकर विवादों को सुलझाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन विवाद कब खत्म होगा, यह कह पाना काफी मुश्किल है।

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