जब हम गए विदेश (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Feb 07, 2024

भारतीय जीवन से विदेश का आकर्षण कभी खत्म नहीं होता। आजकल तो जो हिन्दुस्तानी बंदा विदेश जा सकता है वह किसी न किसी उड़ान से निकल रहा है। मोटी आसामियों ने विदेश में बसना शुरू कर दिया है।  हमारी भी तमन्ना थी कि विदेश जाएं क्यूंकि वहां की जीवन शैली, अनुशासन, मेहनत की कीमत, स्वच्छता, समानता हमें बहुत अच्छी लगती है। हमारे भारतीय भाई बहन भी वहां रहकर खूब मेहनत करते हैं, बढ़िया ज़िंदगी बिताते हैं, कम और छोटे कपड़े पहनकर मस्ती करते हैं। यह देखकर गर्व महसूस हुआ कि वहां भारतीय संस्कृति का पालन करना नहीं भूलते। 


हमारी कई आदतों के कारण बहुत से विदेशी मकान किराए पर देने से गुरेज़ करते हैं। एक दिन मैंने देखा एक व्यक्ति आया और पेड़ के नीचे बने घेरे में, संभवत बासी खाद्य फेंककर, कार में बैठकर निकल गया। सामने थोड़ी दूर कार में बैठे बहुत बुरा लगा लेकिन उतरते उतरते रह गया यह मानकर कि अपना हिन्दुस्तानी भाई है, क्या पता टोकने पर कहीं गलत तरीके से न निबटा दे। हमारा देश सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के माध्यम से दुनिया भर में ख्याति अर्जित कर रहा है और कुछ लोग विदेश में अपना योगदान इस तरह से देकर नाम कमा रहे हैं ।

इसे भी पढ़ें: मोहमाया का कार्ड (व्यंग्य)

भारतीय मालिक द्वारा चलाए जा रहे रेस्टोरेंट में पनीर व चना मसाला की सब्जी में एक जैसी ग्रेवी खाने को मिली, काउंटर पर शिकायत की तो बोले शैफ को ज़रूर बताएंगे। उन्हें लगा खाने वाले भारतीय बंदे ही तो हैं इसलिए सब चलता है। ऑनलाइन की हुई उनकी तारीफ़ ध्यान से पढ़ लें तो कोई दोबारा जाए न उनके यहां। शादी की साल गिरह जैसे ख़ास मौक़ा पर, भारतीय द्वारा चलाए जा रहे रेस्तरां में पहुंचे। भीड़ न होने के बावजूद, मैंगो लस्सी की जगह नमकीन लस्सी में आम का रस घोलकर सर्व किया। 


लस्सी मीठी न होकर नमकीन होने की शिकायत की तो काफी देर बाद बताया कि मैंगो लस्सी उपलब्ध ही नहीं है। उन्हें बताया कि मलाई में कोफ्ते काफी सख्त थे, तो हंसते हुए बोले हमारे कोफ्ते बहुत अच्छे होते हैं सर, आज रश था आप कभी रूटीन डेज़ में आइए। यह व्यवहार भी एक भारतीय का ही था। किसी विदेशी ग्राहक के साथ वे ऐसा बर्ताव नहीं कर सकते थे। बहुत से भारतीय नियोक्ताओं द्वारा उन विद्यार्थियों को, जो सप्ताह में कुछ घंटे ही काम कर सकते हैं, निम्नतम वेतन से काफी कम पैसे दिए जाते हैं।


यह तो कुछ उदाहरण हैं और भी होंगे। हमें विदेश जाकर फख्र महसूस हुआ कि हम कहीं भी जाएं अपनी काफी आदतें बदलते नहीं। क्या यह सचमुच गर्व करने की बात नहीं है। 


- संतोष उत्सुक

प्रमुख खबरें

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में 21 महिलाओं ने हासिल की जीत

छतरपुर: बागेश्वर धाम के पीठाधीश धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की यात्रा के दौरान बालकनी गिरी, आठ लोग घायल

कार ट्रैक्टर-ट्रॉली से टकराई, तीन लोगों की मौत

फडणवीस ने नितिन गडकरी से उनके आवास पर मुलाकात की