नगर परिषद के चुनाव घोषित हो गए। पिछले तीन साल से निरंतर सोए जा रही, जागरूक एनजीओ को लगा, पानी के मुद्दे पर लोगों को अभी से जागरूक करना शुरू करना चाहिए। उन्होंने निश्चय किया कि इस विषय पर पहल करने के लिए पब्लिक गोष्ठी कर लेते हैं। पहाड़ पर बसे शहर में गर्मी के मौसम में पानी की कमी पर्यटकों को भी बहुत परेशान करती है। बर्फ समय पर नहीं गिरती, गिरती है तो कम, इसलिए पानी भी कम बनता है। इस विषय को महत्व देने के लिए कौफ़ी में उतरकर चिंतन भी किया गया। एक जल व्यवसायी अपना बैनर लगाने के लिए तैयार हो गए।
एनजीओ वालों को पता था सिर्फ बातें चखने के लिए तो आजकल रिश्तेदार भी नहीं आते इसलिए समोसे समेत नाश्ता व पॉलीगिलास में चाय का प्रबंध हुआ। गोष्ठी में जो विचार काफी उभर कर आए आपको भी पढ़ने का मौका दिया जा रहा है उम्मीद है बढ़ रही गर्मी में ठंडक का कुछ एहसास ज़रूर होगा। गोष्ठी में शहर के कर्णधार नेताओं व अनेताओं के इलावा अन्य भी घुस आए थे जिन्हें पता था ऐसी गोष्ठियों से कुछ हो न हो, थोड़ी पेटपूजा हो जाती है।
नेताजी का भाषण तो होना ही था। उन्होंने दिल से कहा, “आज मुझे फिर से अपने शहर की चिंता आन पड़ी है। आप जानते हैं पहाड़ पर बर्फ का गिरना न गिरना, परम पिता परमात्मा की स्वेच्छा पर आधारित है। यह जो गर्मी पहाड़ों पर भी आ रही है दुनिया में फैल रहे ग्लोबल टैम्परेचर की वजह से है। इसके बारे हम कल रात की सभा में भी आश्वासन दे चुके हैं कि अगली सरकार बनने के बाद कुछ न कुछ ठोस करेंगे। संकट का मुकाबला आपके साथ मिलकर जी जान से करेंगे।” गोष्ठी में कुछ जागरूक कुछ नौजवान भी थे जो क्षेत्र में पर्यावरण बिगड़ने से पानी की कमी होने के ज़िम्मेदार लोगों का कच्चा चिठ्ठा खोलने वाले थे उन्हें राजनेता के समझदार प्रतिनिधियों ने आंख व हाथ पांव मारकर चुप करा दिया। प्रेरक नेताजी बोले, “हम ने कुछ वर्ष पूर्व विदेश यात्रा कर प्रेरणा ग्रहण की थी। जैसे उन्होंने नकली बारिश करवाई और सूखे से लड़ने के लिए नकली बर्फ का उत्पादन किया, चिंता न करें हम भी बारिश बरसाने व बर्फ गिराने का भी इंतजाम वैसा ही करेंगे। पहले पानी व बर्फ बनाने की मशीनें मंगा लेंगे बाद में अपनी बना भी लेंगे।”
क्या हमें अपनी गलतियों से नहीं सीखना चाहिए, एक जनूनी पत्रकार बोला, “हम समझा रहे हैं न कि विदेश से सीख लिया है अब हम उनसे आगे निकल कर रहेंगे। मशीन से जब बारिश गिरेगी या बर्फ जैसे फाहे गिरेंगे तो सबको असली जैसा ही आनंद प्राप्त होगा। ठीक जैसे हम नकली चीज़ों से असली मज़ा ले रहे हैं। उपरवाला तो मिट्टी भरा, भूरा या कैमिकल युक्त काला पानी बरसाता है मगर हम सुगंधित बारिश करवा देंगे। भगवान सिर्फ सफेद बर्फ ही देता है हम पीली, हरी, गुलाबी उपलब्ध करवा देंगे। ज्यादा मज़ा लेना चाहेंगे तो थोड़ा भुगतान कर मनचाहे परफ्यूम की खुश्बू से लबरेज़ बर्फ भी गिरवा देंगे। बर्फ से पानी भी बनेगा, कोई दिक्कत हुई तो समुद्र भरे पड़े हैं, कितनी ही एमएनसीज़ तैयार बैठी हैं हमारे इशारे भर की देर है पूरे देश में पानी के पैक हर साइज़ में उपलब्ध होंगे। पीने के लिए कितने ही ब्रांड का पानी उपलब्ध है ही। आम लोगों के नहाने के लिए बड़े पैक सरकारी डिपो पर सबसिडाइज्ड़ प्राइस पर भी मिलेंगे। इस बहाने नए बिजनैस खड़े होंगे व नौकरी के नए अवसर बरसेंगे। पर्यावरण प्रेमी पानी के लिए ऐसे ही हायतौबा मचाते रहते हैं हांलाकि वह भी अपनी मीटिंग्स में बोतलबंद पानी ही पीते हैं।”
एक बुज़ुर्ग ने पूछा, “कुदरती तरीके से पानी ज़्यादा मिलने लगे, आप इसके लिए संजीदा कोशिश क्यूं नहीं करते।” जवाब गर्मी के मौसम में तैयार फसल पर ओलों की तरह बिछा दिया, “पिछली बार आपने हमें विपक्ष बनाया इस बार पक्ष बना दो तब हम करेंगे। सरकार सब बना सकती है। पानी क्या चीज़ है।”
गोष्ठी सफल और सम्पन्न हो चुकी थी।
- संतोष उत्सुक