Dhumavati Jayanti 2023: जब भगवान शिव को निगल गई थीं मां धूमावती, ऐसे करेंगे पूजा तो दूर होंगे रोग और दरिद्रता

By अनन्या मिश्रा | May 27, 2023

ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को धूमावती जयंती मनाई जाती है। बता दें कि यह महाविद्याओं में अंतिम विद्या हैं। भगवान शिव की पत्नी माता सती से 10 महाविद्याओं की उत्पत्ति हुई थीं। जिनमें से एक मां धूमावती हैं। इन्हें अलक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है। आमतौर पर तंत्र साधना के लिए महाविद्या का पूजन-अर्चन किया जाता है। लेकिन गृहस्थ जीवन जीने वाले लोग मां के सौम्य रूप की पूजा-आराधना करते हैं। मान्यता के अनुसार, इसदिन मां धूमावती की पूजा करने से रोग, दरिद्रता और पापों से मुक्ति मिलती है। इस बार धूमावती जयंती 28 मई को मनाई जा रही है। आइए जानते हैं धूमावती जयंती की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि के बारे में...


शुभ मुहूर्त

इस वर्ष 28 मई 2023 को धूमावती जयंती मनाई जाएगी। पंचाग के मुताबिक ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि की की शुरूआत 27 मई को सुबह 07:43 मिनट पर होगी। वहीं 28 मई को सुबह 09:57 मिनट पर इस तिथि की समाप्ति होगी।

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मां धूमावती की पूजन विधि

गृहस्थ लोगों को धूमावती जयंती के दिन मां को सफेद वस्त्र, आक के फूल, केसर, सफेद तिल, धतूरा, अक्षत, घी, आक, जौ, सुपारी दूर्वा, गंगाजल, नारियल, शहद, कपूर, चंदन आदि अर्पित करना चाहिए। इसके बाद रुद्राक्ष की माला से 'ॐ धूं धूं धूमावती स्वाहा' मंत्र का जाप करें। मान्यता के मुताबिक राई में नमक मिलाकर इस मंत्र के साथ 108 बार हवन में आहुति देने से सभी शत्रुओं का नाश होता है। इसके अलावा नीम की पत्तियों और घी का होम करने से व्यक्ति को कर्ज और दरिद्रता से मुक्ति मिलती है।


देवी धूमावती के मंत्र

 

देवी का महामंत्र- धूं धूं धूमावती ठ: ठ

 

ॐ धूं धूं धूमावती देव्यै स्वाहा

 

ॐ धूं धूं धूमावत्यै फट्।। 

 

गायत्री मंत्र- ॐ धूमावत्यै विद्महे संहारिण्यै धीमहि तन्नो धूमा प्रचोदयात।


तांत्रोक्त मंत्र- धूम्रा मतिव सतिव पूर्णात सा सायुग्मे। सौभाग्यदात्री सदैव करुणामयि:।।


ऐसे हुई मां धूमावती की उत्पत्ति

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती को अत्यधिक भूख लगी थी। जब उन्हें कुछ खाने को नहीं मिला तो उन्होंने भगवान से भोजन की मांग की। लेकिन भगवान शिव ने मां पार्वती को कुछ समय इंतजार करने के लिए कहा। इस दौरान माता की भूख बढ़ती चली गई। जब मां पार्वती से भूख बर्दाश्त नहीं हुई तो उन्होंने भगवान शिव यानी की अपने पति को ही निगल लिया। भगवान शिव को निगलने के बाद उनके शरीर से धुंआ निकलने लगता है और उनकी भूख भी शांत हो जाती है। फिर भगवान भोलेनाथ माया के द्वारा पेट से बाहर आते हैं। फिर वह माता पार्वती से कहते हैं कि धूम से शरीर व्याप्त होने से उनको संसार धूमावती के नाम से जानेगा।


इसके अलावा एक कथा यह भी प्रचलित है कि जब माता ने भगवान शिव को निगल लिया तो वह एक विधवा के रूप में बदल जाती हैं। वहीं भगवान शिव के गले में मौजूद विष के कारण उनके शरीर से धुएं का प्रादुर्भाव होता है और उनका श्रंगार मिट जाता है। जिसके बाद भगवान अपनी माया के जरिए माता को बताते हैं कि वह विधवा हो गईं हैं। जिस कारण उनका नाम धूमावती पड़ा। जब माता पार्वती ने भगवान शिव के अनुरोध पर उन्हें बाहर निकाला तो भगवान शिव ने उनको शाप दिया कि आज से वह विधवा के रूप में रहेंगी। 


मां मां धूमावती उग्र स्वभाव वाली मानी जाती है। वह विधवा की तरह सफेद साड़ी पहने रथ पर सवार रहती हैं। एक कथा के अनुसार, जब माता सती के पिता ने भगवान शिव का अपमान किया था, तो माता सती ने स्वयं को अग्नि में जलाकर शरीर को नष्ट कर दिया था। तब माता सती के जलते हुए शरीर से जो धुंआ निकला उससे मां धूमावती की उत्पत्ति हुई। इसीलिए वह हमेशा उदास मुद्रा में रहती हैं। धूमावती धुएं के रूप में माता सती का भौतिक स्वरूप है। 


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