By अभिनय आकाश | Oct 11, 2023
जैसे 32 दांतो के बीच जीभ रहती है वैसे ही अरब राष्ट्रों के बीच इजरायल है। वह दुनिया का एक अकेला ऐसा देश है जो बहुत ही छोटा होने व इतने आक्रामक पड़ोसियों से घिरा होने के बावजूद अपनी शर्तों पर जी रहा है। प्रगति कर रहा है और रक्षा क्षेत्र में अमेरिका की बराबरी कर रहा है। इजरायल का जब भी जिक्र होता है तो सिक्स डे वॉर की भी बात जरूर होती है। जब एक जंग में इजरायल ने अरब देशों को बुरी तरह हराया था। ये अरब देश इजिप्ट, सीरिया, जॉर्डन, इराक, सऊदी अरब और कुवैत थे। 50 साल बाद एक बार फिर इजराइल पर अचानक बहुत बड़ा हमला हुआ है। इजरायल और हमास के बीच युद्ध बड़ा होता जा रहा है। अब तक दोनों पक्षों के 3 हजार से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। इजरायल ने हमास को मिटाने का ऐलान किया है और हमास कई दशक से इजरायल के बारे में यहीं इच्छा रखता है। मुश्किल ये है कि दोनों देशों के बीच हो रही जंग को लेकर दुनिया के अलग-अलग देशों की राय जुटा है। अमेरिका, भारत, ब्रिटेन और यूरोपियन यूनियन जैसे देश इजरायल के समर्थन में हैं तो इस्लामिक देश हमास के कदम को सही बता रहे हैं। वहीं कुछ देश ऐसे भी हैं जो पूरी तरह तटस्थ होकर युद्ध विराम की अपील कर रहे हैं।
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि युद्ध उन्होंने शुरू की है खत्म हम करेंगे। जानकार इजरायल और हमास के बीच चल रहे युद्ध को तीसरे विश्व युद्ध की आहट मान रहे हैं। खास बात ये है कि इन दो युद्धों को लेकर दुनिया के देश दो हिस्सों में बंट गए हैं। जिस तरह यूक्रेन युद्ध के दौरान पश्चिमी देश कीव समर्थन कर रहे थे। क्यूबा, चीन, अर्मेनिया, कजाकिस्तान, कीर्गिस्तान और बेलारूस जैसे देश रूस के समर्थन में थे। यही हाल अब हमास और इजरायल के बीच चल रहे युद्ध में बन रहे हैं। जहां मिडिल ईस्ट के ज्यादातर खाड़ी देश फिलिस्तीन का समर्थन कर रहे हैं। जबकि ज्यादातर पश्चिमी देश इजरायल के साथ खड़े हैं।
कौन सा देश किसके साथ
इजरायल को मिला ब्रिटेन समेत इन देशों का साथ
इजरायल और हमास में ज्यादातर ताकतवर देश इजरायल के साथ हैं। अमेरिका ने तो खुलकर इजरायल का समर्थन किया है।अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यहां तक कह दिया है कि अन्य देश इस संघर्ष से दूर रहे। ब्रिटेन के पीएम ऋषि सुनक ने इस्राइल में जारी संघर्ष पर चर्चा के लिए अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और इटली के नेताओं से बात की है। सुनक ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज और इटली की प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी के साथ अपने संयुक्त बयान में इस्राइल के लिए 'दृढ़ता और एकजुटता' के साथ समर्थन जाहिर किया। उन्होंने आतंकवादी हरकतों के लिए हमास की का कोई औचित्य नहीं है और इसकी हर तरह से निंदा की जानी चाहिए। बयान में कहा गया कि हमारे देश इस तरह के अत्याचारों के खिलाफ अपनी और अपने लोगों की रक्षा करने के प्रयासों में इस्राइल का समर्थन करेंगे। हम इस बात पर भी जोर देते हैं कि इस्राइल के प्रति शत्रुता का भाव रखने वाले किसी भी संगठन के लिए यह समय इन हमलों का लाभ उठाने का नहीं है। इन पांच नेताओं ने कहा कि वे फलस्तीनी लोगों की वैध आकांक्षाओं को मान्यता देते हैं। इस्राइल और फलस्तीनियों के लिए न्याय और स्वतंत्रता के समान उपायों का समर्थन करते हैं। लेकिन हमास फलस्तीनी लोगों की इन आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करता है।
फिलिस्तीन के समर्थन में पाकिस्तान समेत सारे मुस्लिम देश
मुस्लिम देश ईरान, कतर, कुवैत, लेबनान, यमन, इराक और सीरिया पूरी तरह से फिलिस्तीन के साथ हैं। पिछले दिनों इजरायल से संबंध सुधारने की दिशा में काम कर रहे सऊदी अरब ने भी इजरायल को चेतावनी दी है। ईरान के विदेश मंत्रालय ने हमास के हमले को फिलिस्तीनियों का सेल्फ डिफेंस एक्ट बताया था। ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि ये ऑपरेशन सत्ता हथियाने वाले शासन के चरमपंथियों के प्रति फिलिस्तीनियों की स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी। उन्होंने बाकी मुस्लिम देशों से अल अक्सा मस्जिद और फिलिस्तीनियों के अधिकारों का समर्थन करने का आह्वान किया। इराक के प्रधानमंत्री मोहम्मद शिया अल सूडानी ने एक बयान में कहा कि फिलिस्तीनी लोगों द्वारा किया गया ये ऑपरेशन कई सालों से व्यवस्थित उत्पीड़न का स्वाभाविक परिणाम है। कतर के विदेश मंत्रालय ने कहा कि फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों के उल्लंघन के चलते इस हमले के लिए जिम्मेदार है। सीरिया ने भी सरकारी समाचार मीडिया के माध्यम से हमास के इजरायल पर हमले के लिए समर्थन दिखाते हुए बयान जारी किए। सऊदी अरब ने इस हमले के लिए इजरायल को जिम्मेदार ठहराया। उकसावे और फिलिस्तिनयों को अधिकारों से वंचित रखने के चलते ये हमला हुआ।
चीन-रूस और किम जोंग क्या कहना है
खास बात ये हैं कि यूक्रेन के साथ युद्ध कर रहे रूस ने खुद को तटस्थ रखा है। रूस का मानना है कि अमेरिका और पश्चिमी देश इजरायल को भी यूक्रेन की तरह फंसा रहे हैं। खबर सामने आई है कि फिलीस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास मॉस्को जा सकता है। वहां अब्बास रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात कर सकते हैं। इस सूची में चीन और तुर्किए भी है। जिन्होंने युद्ध के हालात पर चिंता जाहिर करते हुए युद्ध विराम की बात कही है। चीन ने फिलिस्तीन और इजरायल से तुरंत युद्ध खत्म करने की अपील की है। बीजिंग की ओर से कहा गया कि दोनों देशों को संयम बरतते हुए हालात को और बिगड़ने से रोकना चाहिए। इसके साथ ही चीन ने नागरिकों की रक्षा के लिए शांति बहाल करने के लिए कहा है। उत्तर कोरियाई राज्य मीडिया ने पहली बार इज़राइल और इस्लामी समूह हमास के बीच सैन्य झड़पों पर जोर देते हुए गाजा में रक्तपात के लिए इज़राइल को दोषी ठहराया। सत्तारूढ़ वर्कर्स पार्टी के मुखपत्र रोडोंग सिनमुन ने विदेशी मीडिया का हवाला देते हुए संघर्ष और हताहतों पर एक संक्षिप्त लेख प्रकाशित किया। अखबार ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय का दावा है कि यह संघर्ष फिलिस्तीनी लोगों के खिलाफ इजरायल के लगातार आपराधिक कृत्यों का परिणाम था, और मूल रास्ता एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य का निर्माण करना है।
भारत की होगी अहम भूमिका
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकट की इस घड़ी में इजरायल के साथ खड़े होने की बात कही है। फिलस्तीनी राजदूत अदनान अबु अलहैजा ने कहा कि भारत अपने बढ़ते वैश्विक कद और पश्चिम एशिया के सभी प्रमुख पक्षों पर प्रभाव से इस्राइल-हमास संघर्ष से पैदा संकट को कम करने में अहम भूमिका निभाने के लिहाज से अच्छी स्थिति में है। अलहैजा ने विशेष रूप से कहा कि भारत इस्राइल और फलस्तीन दोनों का एक 'मित्र' है। वह तनाव कम करने की दिशा में काम करने और फलस्तीन मुद्दे के समाधान में योगदान देने में 'सक्षम' है। अलहैजा ने कहा कि भारत यूरोपीय देशों, अमेरिका, पश्चिम एशिया के देशों से संपर्क कर सकता है। शांति की दिशा में काम करने के लिए इस्राइल पर 'दबाव' बना सकता है, जिससे वह (इस्राइल) अब तक इनकार करता रहा है। उन्होंने कहा कि भारत शुरू से जानता है कि फलस्तीनी मुद्दा क्या है? महात्मा गांधी के समय से। इसलिए, वे उस भूमिका को निभाने के लिए योग्य हैं, खासकर क्योकि भारत दोनों का मित्र है।'