By अनन्या मिश्रा | Oct 26, 2024
देवों के देव महादेव ने शनिदेव को कर्मफल दाता और पूजनीय बनने का वरदान दिया था। लेकिन एक बार जब भगवान शंकर पर शनिदेव की वक्रदृष्टि पड़ी, तो वह भी वक्रदृष्टि से पीछा नहीं छुड़ा पाए थे। ऐसे में आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको भगवान शिव पर शनिदेव की वक्री दृष्टि पड़ने की कथा के बारे में बताने जा रहे हैं।
सूर्य पुत्र हैं शनिदेव
बता दें कि न्याय के देवता शनिदेव भगवान सूर्य देव और माता छाया के पुत्र हैं। वहीं शनि देव मृत्यु के देवता यम के भाई हैं और शनिदेव को कर्मों का देवता माना जाता है। वहीं यम देव मृत्यु के बाद फैसला सुनाते हैं। शनिदेव का प्रिय पक्षी कौआ है और भगवान शिव ने शनिदेव को यह वरदान दिया था कि उनको ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाएगा। वहीं पिता सूर्य देव की तरह शनिदेव की भी पूजा होगी। साथ ही महादेव ने यह भी वरदान दिया था कि शनिदेव न्याय के देवता और कर्मफल दाता कहलाएंगे।
जब महादेव पर पड़ी शनिदेव की वक्रदृष्टि
एक बार शनिदेव महादेव के धाम कैलाश पहुंचे, तो उन्होंने शिव को प्रणाम कर उनसे कहा कि प्रभु मैं कल आपकी राशि में आने वाला हूं, जिसका अर्थ है कि आप पर मेरी वक्रदृष्टि पड़ने वाली है, ऐसे में आप इसके लिए तैयार रहें।
वक्रदृष्टि से बचने के लिए महादेव ने लिया हाथी का रूप
शनिदेव की दृष्टि से बचने के लिए अगले दिन महादेव मृत्युलोक आए और उन्होंने वक्रदृष्टि से बचने के लिए हाथी का रूप धारण कर लिया। शाम होने पर भगवान शिव ने सोचा कि अब कई दिन बीत चुके हैं और शनिदेव की दृष्टि का भी उन पर कोई असर नहीं हुआ। यह सोचकर फिर भगवान शिव कैलाश वापस लौट आए।
विफल हो गई महादेव की योजना
जैसे ही भगवान शिव प्रसन्न मुद्रा में कैलाश पर्वत पर पहुंचे, तो उन्होंने वहां पर शनिदेव को उनका इंतजार करते पाया। महादेव को देखकर शनिदेव ने उनको हाथ जोड़कर प्रणाम किया। तब महादेव ने कहा कि शनिदेव आपकी दृष्टि का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ और अब तो काफी समय बीत चुका है।
शनिदेव के न्याय से प्रसन्न हुए महादेव
शनिदेव ने महादेव से कहा कि यदि आपको वक्रदृष्टि से बचना है, तो आपको सवा प्रहर के लिए देव योनी को छोड़कर पशु योनी में जाना होगा। ऐसे में भगवान शिव शनिदेव की न्यायप्रियता से बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें हृदय से लगा लिया।