By अभिनय आकाश | Mar 09, 2023
हिंदी पट्टी में ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं है जो स्वयं कभी तमिलनाडु गए हो। लेकिन आपको ऐसे तमिलनाडु एक्सपर्ट बहुत मिल जाएंगे जो छूटते ही बता देंगे कि कि चेन्नई के ऑटो वाले हिंदी में पता नहीं बताते। अंग्रेजी में भी नहीं बताते और बोलते हैं तो केवल तमिल। लोग प्राय: ऐसी बातों पर यकीन भी कर लेते हैं। वजह भी रही है। तमिलनाडु में हिंदी को थोपे जाने का विरोध अरसे से होता रहा है। सीएम एमके स्टालिन ने कुछ महीने पहले ही भाजपा नीत केंद्र पर हिंदी थोपने को लेकर 'बेशर्म' होने का आरोप भी लगाया। वैसे तो ये एक राजनैतिक और उनकी अस्मिता व पहचान से जुड़ा मुद्दा है। संभवत: इसलिए तमिलनाडु में हिंदी भाषी लोगों पर हमले के वीडियो वायरल होने लगे तो इसे बिहारी मजदूरों पर हमले की खबरों के रूप में मीडिया के एक वर्ग द्वारा उठाया गया। बिहारी मजदूरों के लिए कब्रगाह बना तमिलनाडु, बिहारी मजदूरों को छोड़ना होगा तमिलनाडु, हिंदी सुनते ही तमिलनाडु में बिहारी पीटे जा रहे हैं जैसी कई हेडलाइन के साथ खबरें चलने लगी। दोनों राज्यों में इसको लेकर खूब बवाल हुआ और राजनीतिक बयानबाजी भी जमकर हुई। लेकिन जब जांच हुई तो मालूम चला कि हिंदी भाषी मजदूरों पर संगठित हमलों का कोई पैटर्न नहीं था। कहीं पुराने वीडियो को संदर्भ हटाकर वायरल किया जा रहा था। कहीं निजी दुश्मनी में हुई हत्या को बिहारियों पर हमला करार दिया गया। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल की जो कुछ भी तमिलनाडु में हुआ वो आखिर था क्या?
कैसे हुई शुरुआत?
1 मार्च यानी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन का जन्मदिन। इस मौके पर देशभर की कई पार्टियों के नेता स्टालिन को जन्मदिन की बधाई देने पहुंचे। सभी ने एक सुर में बीजेपी के खिलाफ 2024 में लज़ाई का बिगुल भी फूंका। इसके अगले दिन 2 मार्च को बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके आरोप लगाया कि तमिलनाडु में काम कर रहे बिहारी मजदूरों की हालत खराब है। अपनी बात को पुख्ता करने के लिए बीजेपी नेता कुछ स्थानीय न्यूज चैनलों के वीडियो को भी ट्विटर पर शेयर करते हैं। इन वीडियो में तमिलनाडु से आए कुछ मजदूर ये दावा कर रहे थे कि वहां उनकी जान को खतरा है। इसके साथ ही बिहार बीजेपी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल की तरफ से भी कई वीडियो शेयर किए गए जिसमें इन्हीं तरह के दावे भी थे। अब बारी थी मीडिया की यानी की हमारी। बीजेपी की तरफ से किए गए दावों के बाद मीडिया ने इस मुद्दे को उठाते हुए बिहार सरकार से एक्शन की मांग की।
आपसी रंजीश से हिंदी भाषासियों पर अत्याचार
इसी वर्ष 26 जनवरी को तिरुपुर का एक वीडियो वायरल हुआ। वीडियो में भीड़ पर एक शख्स का पीछा करते हुए उस पर हमला करता नजर आया। वीडियो को ये बताकर शेयर किया गया कि उत्तर भारतीयों ने मिलकर एक तमिल पर हमला किया है। तिरुपुर पुलिस कमिश्नर प्रवीण कुमार अभिनपु ने मीडिया को बताया कि वीडियो 14 जनवरी का था और दो समूहों के बीच छोटी सी बात पर झगड़े को लेकर था। लेकिन इसे जानबूझ कर उत्तर भारतीय बनाम तमिल का रंग दिया गया। इस घटना को और कई वीडियो के साथ जोड़कर उत्तर भारतीयों पर हमला बताया गया। ये कोई एकलौता मामला नहीं था। बिहार के श्रमिक मोनू दास की मौत को प्रवासियों पर हुए हमले की तरह पेश किया गया। बाद में ये आत्महत्या का मामला निकला।
नीतीश कुमार भी हुए एक्टिव
तमिलनाडु में प्रवासी श्रमिकों पर हमलों की खबरों पर जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार के पुलिस एवं प्रशासनिक अधिकारियों को मामले को देखने का निर्देश दिया। नीतीश ने ट्वीट कर कहा,‘‘मुझे समाचार पत्रों के माध्यम से तमिलनाडु में काम कर रहे बिहार के मजदूरों पर हो रहे हमले की जानकारी मिली है। मैंने बिहार के मुख्य सचिव एवं पुलिस महानिदेशक को तमिलनाडु सरकार के अधिकारियों से बात कर वहां रह रहे प्रदेश के श्रमिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है।’’ इसके तुरंत बाद हालांकि बिहार पुलिस मुख्यालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि तमिलनाडु में पुलिस द्वारा रिपोर्टों को ‘‘भ्रामक’’ और ‘‘अफवाह’’ करार देते हुए कहा है कि ‘‘सभी हिंदी भाषी लोग’’ उस राज्य में सुरक्षित हैं। स्टालिन ने बताया कि फर्जी खबरों के बाद उयहां तक कि बिहार के प्रतिनिधियों ने भी तमिलनाडु का दौरा किया और पूरी संतुष्टि के साथ लौटे। उन्होंने पूछताछ की और बिहार के सीएम नीतीश कुमार के साथ बातचीत की।
प्रवासी लोगों को नहीं हुई कभी परेशानी
स्टालिन ने कहा कि विभिन्न राज्यों के लोग तमिलनाडु में काफी वक्त से रह रहे हैं। पिछले कुछ सालों से बड़ी संख्या में लोग नौकरी की तलाश में यहां आ रहे हैं। उन्हें कभी भी नुकसान नहीं पहुंचाया गया। राज्य के किसी भी हिस्से में उन्हें कभी कोई परेशानी नहीं हुई। । स्टालिन ने आज कहा कि उनका राज्य पूरे भारत के लोगों का घर है और 'तमिल भाईचारे से प्यार करते हैं ... यह यहां के उत्तरी राज्य के भाइयों को अच्छी तरह से पता है'। आप इस साजिश को समझ सकते हैं यदि आपने नोटिस किया कि यह (अफवाहें फैलाना) उस दिन किया गया था जब मैंने भाजपा के खिलाफ एकजुट, राष्ट्रीय स्तर के गठबंधन की आवश्यकता के बारे में बात की थी। कुछ लोगों ने फेक वीडियो बनाए... झूठी खबरें फैलाईं। उत्तर भारतीय राज्यों के भाजपा सदस्यों ने बुरी नीयत से ऐसा किया।
शिकायत और गिरफ्तारी
पूरे मामले में कुछ लोगों की गिरफ्तारी भी हुई है। दैनिक भास्कर'और 'ऑप इंडिया' के संपादक, तनवीर पोस्ट चलाने वाले तनवीर और भाजपा की यूपी यूनिट के प्रवक्ता प्रशांत उमराव के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया। बिहार पुलिस ने 'फे़क न्यूज़' फैलाने के आरोप में 'प्रयास न्यूज़', 'सचतक न्यूज़' और अमन कुमार के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया है।
प्रवासन को लेकर क्या कहता है डाटा
देश के भीतर प्रवासन को लेकर व्यापक सरकारी डेटा उपलब्ध नहीं है। 2011 की जनगणना में भारत में आंतरिक प्रवासियों यानी एक राज्य से दूसरे राज्यों में प्रवासन करने वाले मजदूरों की संख्या 45.36 करोड़ बताई गई है। ये देश की आबादी का 37 % है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का वर्कफोर्स 48.2 करोड़ था। ये आंकड़ा 2016 में 50 करोड़ से भी ज्यादा होने का अनुमान है। 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में जिलेवार प्रवासन आंकड़ों से पता चला है कि देश के भीतर प्रवासियों की सबसे ज्यादा आमद गुरुग्राम, दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में थी। इसके अलावा यूपी के गौतम बुद्ध नगर (उत्तर प्रदेश), इंदौर और भोपाल (मध्य प्रदेश), बेंगलुरु (कर्नाटक) और तिरुवल्लर, चेन्नई, कांचीपुरम, इरोड और कोयंबटूर (तमिलनाडु) जैसे जिलों में प्रवासी मजदूरों की संख्या सबसे ज्यादा थी।
हाल के आंकड़े में क्या है?
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जून 2022 में जारी की गई एक रिपोर्ट, 'माइग्रेशन इन इंडिया 2020-21' ने अस्थायी आगंतुकों और प्रवासियों के लिए कुछ संख्याओं का मिलान किया था। रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2020 में कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद जुलाई 2020-जून 2021 की अवधि के दौरान देश की 0.7 प्रतिशत आबादी घरों में 'अस्थायी आगंतुक' के रूप में दर्ज की गई थी। जबकि अस्थायी आगंतुकों को उन लोगों के रूप में परिभाषित किया गया था जो मार्च 2020 के बाद घरों में आए थे और 15 दिनों या उससे अधिक की अवधि के लिए लगातार रुके थे, लेकिन 6 महीने से कम, 'प्रवासियों' को उन लोगों के रूप में परिभाषित किया गया था जिनके लिए किसी भी समय निवास का अंतिम सामान्य स्थान था। अतीत गणना के वर्तमान स्थान से भिन्न है। इन 0.7 प्रतिशत अस्थायी आगंतुकों में से 84 प्रतिशत से अधिक ने महामारी से जुड़े कारणों के लिए स्थानों को स्थानांतरित किया, जिसमें नौकरी छूटना/इकाई बंद होना/रोजगार के अवसरों की कमी, कमाने वाले सदस्य का प्रवास, शैक्षणिक संस्थानों का बंद होना और स्वास्थ्य संबंधी कारण शामिल हैं।
तमिलनाडु में उत्तर भारतीय मजदूरों की उपस्थिति
तमिलनाडु में उत्तर भारतीय मजदूरों को अलग-अलग राज्यों में प्रवासी मजदूर कहा जाता है। इनमें बिहार, ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य शामिल हैं। मजदूरों के पलायन की मुख्य वजह बेहतर अवसर की तलाश है। जब वे अपने राज्य में जीविका को चलाने का साधन ढूंढ़ पाने में सफल नहीं हो पाते तो राज्य की सीमाओं के परे बेहतर काम की तलाश में अन्य राज्यों की ओर पलायन करते हैं। वहीं बाढ़ की चपेट में आकर घर-खेत तबाह होने या किसी अन्य प्राकृतिक आपदा की चपेट में आने से भी ये रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों की ओर रुख करते हैं। मजदूर अकेले भी आते हैं और समूह में भी आते हैं। पहले तो निर्माण के क्षेत्र में इन्हें मजदूरी मिलती थी। लेकिन अब खान-पान, सुपर मार्केट, मछली पालन, हेयर ड्रेसिंग सेंटर, होटल और रिटेल सेक्टर में भी लोगों को काम मिल रहा है।