नीले और काले बुर्के में क्या है अंतर? जानिए अफगान औरतें शरिया कानून से डरी हुई क्यों हैं?

By निधि अविनाश | Aug 28, 2021

अफगानिस्तान में इस समय जो हालात बने हुए है उसको देखते हुए दूसरे देशों में रह रही महिलाओं, बच्चों समेत हर लोगों को काफी खुशनसीब होना चाहिए कि वह कितनी आजाद है और पढ़ाई-लिखाई से लेकर बाहर घुमने तक की पूरी आजादी मिली हुई है। लोग अपना ही देश छोड़ने को मजबुर नहीं हो रहे है और न ही अपने ही देश में डर कर जीना पड़ रहा है। बात करें अफगानिस्तान की तो इस समय यहां की काफी खबरें सामने आ रही है, लेकिन हम आज आपको अफगानिस्तान का ऐसा मुद्दा बताने जा रहे है जिससे शायद आप पहले ही अवगत हो और शायद न भी। मुद्दा तालिबान से जुड़ा तो है ही लेकिन इसमें महिलाओं का मुद्दा सबसे महत्वपूरण है। आज हम आपको बताएंगे कि आखिर अफगानिस्तान की मुस्लिम महिलाओं को नीला बुर्का ही पहनने को क्यों कहा गया है? और तालिबान द्वारा लागू होने वाला शरिया कानून आखिर क्यों वहां की महिलाओं को डरा रहा है। 

नीला बुर्का \ काला बुर्का

आमतौर पर आपने मुस्लिम महिलाओं को काले बुर्के में ही देखा होगा और जब आप बुर्का का शब्द सुनते है तो आपको हमेशा इस्लाम देश या अफगानिस्तान की वह महिलाएं याद आती होगी जिन्हें आप अकसर टीवी, और तस्वीरों में महिलाओं को नीले बुर्के पहने देखा होगा। बुर्का, मुस्लिम महिलाओं के लिए शरीर, सिर और चेहरे को ढंकता है। बुर्का काफी अलग-अलग रंगों और धर्मों में मौजूद हैं लेकिन यहां हम बात कर रहे हैं अफगान ब्लू बुर्का की। अफगानिस्तान में महिलाओं को नीला बुर्का पहनाना मुख्य रूप से महिलाओं की गोपनीयता की रक्षा करता है। दुनिया भर में मुस्लिम आबादी के बीच बुर्का हमेशा से ही विवादों में रहा है क्योंकि इसको पहनने के बाद मिहालओं का एक तरीके से दम घुटने लगता है। जानकारी के लिए बता दें कि, इटली, स्विट्जरलैंड, फ्रांस या नीदरलैंड जैसे कई यूरोपीय देशों में सुरक्षा कारणों से महिलाओं के बुर्का पहनने पर पांबदी है। 

नीला बुर्का

तालिबानों के अफगानिस्तान (1992-1996) पर कब्जा करने से पहले, काबुल की सड़कों पर बुर्का का नामोनिशान ही नहीं था, महिलाएं पूरी तरह से आजाद थी। लेकिन इस्लाम और धर्म की बात करने वाले कई अफगान के कट्टरपंथी तालिबानियों ने बुर्का पहनने की परंपराओं को पुनर्जीवित किया और कपड़ों के लिए समान कोड बनाया। इस कोड में बुर्का शामिल था जिसमें महिलाओं को अपने पूरे शरीर और चेहरे को सार्वजनिक स्थानों पर छिपाने को कहा गया वहीं  बुर्का पहनने से इनकार करने वाली विद्रोही महिलाओं को कड़ी सजा दी जाती है, कभी-कभी पीट-पीटकर मार डाला जाता है। सुरक्षा कारणों से काबुल में आज भी सतर्क महिलाएं बुर्का पहनती हैं।

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नीला बुर्का ही क्यों ?

सवाल है कि बुर्का नीला ही क्यों? सबसे पहले आपको बता दें कि सभी बुर्के नीले कलर के नहीं होते है। काबुल में नीला पहना जाता है, अफगानिस्तान के उत्तर में सफेद और दक्षिण में (कंधार के आसपास) हरा बुर्का पहना जाता है। नीले रंग को इसलिए चुना गया क्योंकि यह रंग मुख्य रूप से इस्लामी परंपराओं से जुड़ा हुआ है।पश्तून मुसलमान (सुन्नी) हैं, और कुरान में हरा रंग दिव्य है, नीला सुरक्षा का रंग है, जिसका इस्तेमाल बुरी नजर को दूर करने के लिए किया जाता है। इस कारण से, दुनिया में कई नीली मस्जिदें हैं - मिस्र, ईरान, मलेशिया में, सबसे प्रसिद्ध तुर्की में इस्तांबुल की ब्लू मस्जिद है।इसके अलावा, नीला और हरा न केवल स्पेक्ट्रम पर पड़ोसी रंग हैं, बल्कि उन्हें वास्तव में एशिया में एक ही रंग माना जाता है । अफागनिस्तान में पहने जाने वाले पश्तून बुर्कों के नीले होने का मुख्य कारण फैशन है। एक रिसर्च 'द बुर्का ऐज़ साइनिफ़ायर इन कॉन्टेक्स्ट' के मुताबिक, बुर्का पहनना ज्यादातर एक विकल्प है, बाधा नहीं।

अतीत के लिए नीला, आधुनिकता के लिए काला 

अप्रैल 2014 में प्रकाशित 'द डिफरेंस विद ब्लैक एंड ब्लू' में ब्लॉगर महनूर शेराज़ी के मुताबिक, अफगानी और पाकिस्तानी महिलाओं की नई पीढ़ी काला बुर्का अपनाने पर जोर दे रही है। काले बुर्का, आंखों के लिए जिसे नकाब भी कहा जाता है के साथ, कपड़ों के अलग-अलग भागों में पहना जाता है। काला बुर्का 3 भागों में बंटा हुआ है वहीं नीला बुर्का केवल एक ही सिंगर कपड़े में आता है। कई लोगों का मानना है कि, काला बुर्का ज्यादा लोकप्रिय और अधिक फैशनेबल है। वहीं कई लोगों का मानना है कि काला बुर्का अधिक वजन वाला होता है। काले बुर्के की तुलना में नीला बुर्का शरीर को पूरी तरह से कपड़े के एक टुकड़े के रूप में ढकता है, जो आमतौर पर तीन टुकड़ों में होता है: कोट, सिर को ढंकना और नकाब। नीले बुर्के में महिलाओं को सिंगल कपड़े में रहना होता है जिसके कारण कई महिलाओं को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए जब महिलाएं किराने का सामान खरीदने के लिए बाहर निकलती हैं और कुछ भी लेने या ले जाने के लिए अपने हाथों का उपयोग करने की आवश्यकता होती है, तो उन्हें अपना बुर्का उठाना होगा जिससे उनका हाथ दिख जाता है, जो बहुत असुविधाजनक हो सकता है। इसके अलावा, नीले रंग का हल्का कपड़ा विशेष रूप से तेज हवाओं के दौरान बहुत उड़ता है, और महिलाओं को कभी-कभी दोनों हाथों से कसकर पकड़ना पड़ता है। 

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क्या है शरिया कानून और महिलाएं क्यों है डरी हुई? 

शरिया, जिसे इस्लामी कानून के रूप में जाना जाता है,एक कानून के लिए अरबी शब्द है। इस्लाम में इसकी उत्पत्ति चार स्रोतों कुरान, सुन्नत और हदीस, क़ियास और इज्मा से हुई है। अलग-अलग देशों में इस्लाम की शिक्षा के साथ कुरान और हदीस की शिक्षा दी जाती है। बता दें कि,  आधुनिक देशों में प्रचलित कानून पर शरिया का प्रभाव काफी बदल गया है। बता दें कि शरिया कानून आपराधिक कानून को कई श्रेणियों में विभाजित किया गया है। हद, कियास और ताज़ीर

हद: हद यानि सीमा, ऐसे अपराध जो  इस्लाम में पूरी तरह से प्रतिबंधित हैं। अगर किसी ने असका उल्लघंन किया तो आरोपी को फांसी, पत्थरबाजी, अंगों को काटने या कोड़े मारने जैसी गंभीर सजा देने का इजाजत दी गई है। इनमें गैरकानूनी संभोग, शराब पीना, चौरी या डकैती जैसे अपराध शामिल हैं।

क़िस्सा यह हत्या के लिए मौत की सजा है।क़िस्सा पीड़ित या अपराध के उत्तराधिकारियों के निर्णय पर निर्भर करता है। जो लोग किस्सा के अपराध में आते है उनको मुआवजा देकर माफी का ऑप्शन शामिल है।

ताज़ीर: ऐसे अपराध जिनमें सजा जज पर हो। शरिया में कोई विशेष सजा नहीं है, इनमें वे अपराध शामिल हैं जो हुदुद के मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं, जैसे कि डकैती का प्रयास, यौन संपर्क, धर्म के विरोध भोजन खाना।

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