By अभिनय आकाश | Jul 30, 2021
भारत में आरक्षण एक भावनात्मक और राजनीतिक मुद्दा है। जिनके पास है वो इसे छोड़ना नहीं चाहता है और जिनके पास नहीं है वो सूची में नाम जुड़वाना चाहता है। आज मोदी सरकार के एक बड़े और बहुप्रतिक्षित फैसले की बात करेंगे। भारत सरकार ने मेडिकल सीटों पर दाखिले की ऑल इंडिया कोटे में अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया है। मेडिकल की तैयारी कर रहे छात्र लंबे वक्त से ये मांग कर रहे थे। 28 जुलाई को ही केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री भूपेंद्र यादव के नेतृत्व में ओबीसी सांसदों के एक दल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी औऱ नीट परीक्षा के ऑल इंडिया कोटे में ओबीसी अभियर्थियों के लिए आरक्षण बहाल करने की मांग की थी। मोदी सरकार के इस फैसले के तहत अंडर ग्रैजुएट, पोस्ट ग्रैजुएट और डिप्लोमा स्तर के मेडिकल कोर्स में एडमिशन के लिए ओबीसी समुदाय के छात्रों को 27 फीसदी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को चाहे वो किसी भी जाती के हो उन्हें 10 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। आजादी के बाद से पिछले 73 सालों में देश में ऐसी व्यवस्था इससे पहले कभी नहीं थी। मोदी सरकार का ये फैसला इसी सत्र से यानी 2021-22 से लागू हो जाएगा।
NEET क्या है?
राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (नीट) देश में सभी स्नातक (नीट-यूजी) और स्नातकोत्तर (नीट-पीजी) चिकित्सा और दंत चिकित्सा पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा है। वर्ष 2016 तक मेडिकल कॉलेजों में राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षा के लिए ऑल इंडिया प्री-मेडिकल टेस्ट (एआईपीएमटी) का आयोजन होता रहा था। वहीं, राज्य सरकारें अपने कोटे की सीट पर प्रवेश के लिए के अलग-अलग एंट्रेस टेस्ट लिया करती थीं। नीट पहली बार 2003 में आयोजित की गई थी, लेकिन अगले साल बंद कर दी गई। 13 अप्रैल, 2016 को, सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम की नई सम्मिलित धारा 10-डी को बरकरार रखा, जो हिंदी, अंग्रेजी और विभिन्न अन्य भाषाओं में स्नातक स्तर और स्नातकोत्तर स्तर पर सभी चिकित्सा शैक्षणिक संस्थानों के लिए एक समान प्रवेश परीक्षा प्रदान करता है। 2020 में, 13 सितंबर, 2020 को 15.97 लाख छात्र NEET (UG) के लिए उपस्थित हुए। इस साल, NEET 11 सितंबर (UG) और 12 (PG) को निर्धारित किया गया है।
ऑल इंडिया कोटा क्या है?
22 जून 1984 को सुप्रीम कोर्ट ने डॉ. प्रदीप जैन बनाम भारत सरकार के मामले में एक फैसले सुनाया। डॉ. जैन की ओर से मेडिकल कॉलेजों में रेजीडेंस या डोमीसाइल के आधार पर दिए जाने वाले आरक्षण को चुनौती दी। जिस पर फैसले सुनाते हुए कोर्ट की तरफ से ऑल इंडिया कोटे की व्यवस्था की गई। ताकी राज्यों को उनकी सीमा में आने वाले मेडिकल कॉलेजों को रेजीडेंस या डोमीसाइल के आधार पर 100 फीसदी सीटें आरक्षित करने से रोका जा सके। इस फैसले का मकसद ये था कि जहां अच्छे मेडिकल कॉलेज नहीं हैं। वहां के मेधावी छात्रों को दूसरे राज्यों में पढ़ने का मौका मिले। इसके बाद से ही सरकारी मेडिकल कॉलेजों की कुल अंडरग्रेजुएट सीट के 15% जबकि पोस्ट ग्रेजुएट सीट के 50% पर ऑल इंडिया कोटा के तहत एडमिशन लिया जाता है। बाकी 85% यूजी सीट और 50% पीजी सीट पर उस राज्य के बच्चों को एडमिशन दिया जाता है जहां वह कॉलेज स्थित है। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में रहने वाला एक छात्र पश्चिम बंगाल के राज्य सरकार के मेडिकल कॉलेज में एक सीट पर प्रवेश के लिए पात्र हो सकता है, बशर्ते उसने राष्ट्रीय योग्यता सूची में पर्याप्त उच्च अंक प्राप्त किये हो। यदि उसका स्कोर AIQ के लिए पर्याप्त नहीं है, तो भी वह अपने गृह राज्य में राज्य कोटे के तहत प्रवेश की उम्मीद कर सकता है।
अब तक किस आरक्षण नीति का पालन किया गया?
2007 तक मेडिकल प्रवेश के लिए ऑल इंडिया कोटा के अंदर कोई आरक्षण लागू नहीं किया गया था। 31 जनवरी, 2007 को, अभय नाथ बनाम दिल्ली विश्वविद्यालय और अन्य में, सर्वोच्च न्यायालय ने अनुसूचित जातियों के लिए 15% और अनुसूचित जनजातियों के लिए 7.5% आरक्षण की व्यवस्था का निर्देश दिया। उसी वर्ष सरकार ने केंद्रीय शैक्षिक संस्थान (प्रवेश में आरक्षण) कानून पारित करके केंद्रीय शैक्षिक संस्थानों में एडमिशन के लिए ओबीसी स्टूडेंट्स को 27% आरक्षण देने का प्रावधान कर दिया था। जबकि राज्य सरकार के मेडिकल और डेंटल कॉलेज ओबीसी को ऑल इंडिया कोटा से बाहर की सीटों पर आरक्षण दिया करते हैं, इसलिए वहां ऑल इंडिया कोटा वाली सीटों पर एडमिशन में आरक्षण लागू नहीं था। केंद्र सरकार ने 2019 में 103वां संविधान संशोधन के जरिए 10% ईडब्ल्यूएस कोटा भी केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में लागू किया गया है, लेकिन नीट का ऑल इंडिया कोटा अब तक अछूता था।
अब क्या बदला है?
वर्तमान शैक्षणिक वर्ष से मेडिकल कॉलेजों में एआईक्यू के भीतर ओबीसी और ईडब्ल्यूएस श्रेणियों के लिए आरक्षण की पेशकश की जाएगी। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान के अनुसार इससे लगभग 1,500 ओबीसी छात्रों को एमबीबीएस में और 2,500 ओबीसी छात्रों को स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में और लगभग 550 ईडब्ल्यूएस छात्रों को और 1,000 सीटों पर आरक्षण का फायदा मिलेगा। अखिल भारतीय अन्य पिछड़ा वर्ग कर्मचारी कल्याण संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार 2017 और 2020 के बीच राज्य सरकारों द्वारा संचालित कॉलेजों में ऑल इंडिया कोटा के तहत लगभग 40,800 सीटें आवंटित की गई थीं। इसका मतलब है कि इन सीटों के लिए आरक्षण लागू होता तो करीब 10,900 ओबीसी छात्र को एडमिशन मिल जाता।
क्यों लिया गया फैसला?
ओबीसी और ईडब्ल्यूएस आरक्षण को नजरअंदाज किए जाने का विरोध वर्षों पुराना रहा हैं। पिछले साल जुलाई में, तमिलनाडु के सत्तारूढ़ द्रमुक और उसके सहयोगियों की एक याचिका पर, मद्रास उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि ओबीसी छात्र भी ऑल इंडिया कोटा में आरक्षण का लाभ उठा सकते हैं। कि, वक्त बहुत कम बचा था, इसलिए इसे अगले शैक्षिक सत्र 2021-22 से लागू करने की बात हुई थी। हालांकि, जब इस साल 13 जुलाई को नीट-2021 की अधिसूचना जारी की गई थी, तो इसमें ऑल इंडिया कोटा के भीतर ओबीसी आरक्षण के किसी प्रावधान का जिक्र नहीं था। DMK ने एक अवमानना याचिका दायर की और 19 जुलाई को मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा केंद्र सरकार को इसके लिए फटकार भी लगाई। ओबीसी छात्रों के विरोध के बीच, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 26 जुलाई को मद्रास उच्च न्यायालय को कहा कि ऑल इंडिया कोटा की एमबीबीएस सीट पर ओबीसी आरक्षण लागू करने की प्रक्रिया चल रही है। अगली सुनवाई 3 अगस्त के लिए सूचीबद्ध है, जबकि अन्य याचिकाएं भी दायर की गई हैं, जिनमें सलोनी कुमारी द्वारा एक याचिका भी शामिल है।- अभिनय आकाश