पीएम द्वारा राष्ट्र को समर्पित नए परिसर में क्या है खास, जानें जलियांवाला बाग का वो दर्दनाक इतिहास, जब 102 साल पहले चली थी हजारों गोलियां

By अभिनय आकाश | Aug 28, 2021

परिमल-हीन पराग दाग़ सा बना पड़ा है,

हा! यह प्यारा बाग़ खून से सना पड़ा है।

मशहूर कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने पंक्तियां आज से 102 साल पहले जलियांवाला बाग में शहीद हुए लोगों की याद में लिखी थी। भारत में अंग्रेजों के औपनिवेशिक शासन की यंत्रणाओँ और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की कुर्बानी की नुमाइंदगी 1919 में हुए इस कत्लेआम से अधिक कोई नहीं कर सकता। एक तरफ ये शौर्य और बलिदान की अमर कहानी है तो दूसरी तरफ ये जुल्म और हैवानियत की दास्तां भी है। इतिहास की ये वो खूनी घटना है जिसने ब्रिटिश हुकूमत के मुंह पर ऐसी कालिख पोती जो कभी धुल नहीं सकती। अंग्रेजों पर लगा ये वो खूनी दाग है जो कभी मिट नहीं सकता। साल 1919 में 13 अप्रैल की तारखी और वैशाखी का दिन, पंजाब का अमृतसर और वहां का जालियांवाला बाग वहां पर जनरल डायर के नेतृत्व में गोलियां बरसाईं गईं। सैकड़ों लोग मर गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 अगस्त को अमृतसर में पुनर्निर्मित जलियांवाला बाग परिसर का वस्तुतः उद्घाटन किया। वैसे तो इससे पहले 6.5 एकड़ के विशाल क्षेत्र में फैला, जलियांवाला बाग पंजाब राज्य के पवित्र शहर अमृतसर में स्थित एक सार्वजनिक उद्यान है। विशाल राष्ट्रीय महत्व के, इस स्मारक स्थल को 13 अप्रैल 1961 को पंजाबी नव वर्ष के अवसर पर भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा उद्घाटित किया था। आपको इस रिपोर्ट में बताते हैं कि पुनर्निर्मित स्मारक परिसर में क्या है, मूल से क्या बदल गया है, और क्या जोड़ा गया है?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 28 अगस्त की शाम 6:25 बजे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जलियांवाला बाग स्मारक के पुनर्निर्मित परिसर को राष्ट्र को समर्पित किया। पीएम मोदी जलियांवाला बाग मेमोरियल ट्रस्ट के अध्यक्ष भी हैं, केंद्रीय संस्कृति मंत्री जी किशन रेड्डी, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, राज्यपाल वीपी सिंह बदनौर और कई सांसदों सहित ट्रस्ट के अन्य सदस्यों की उपस्थिति में स्मारक को जनता को समर्पित किया गया। घंटे भर चलने वाले वर्चुअल प्रोग्राम की शुरुआत गुरबानी गायन से हुई। जलियांवाला बाग के शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए दो मिनट का मौन रखा गया। ब्रिटिश गोलियों से मारे गए लोगों के परिवार के सदस्य समारोह में हिस्सा लेने के लिए मौजूद रहें।

1650 राउंड गोलियां, 1 हजार से ज्यादा की मौत

उस दौर में पंजाब अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की ज्वालामुखी पर बैठा था। एक तरह से पूरा पंजाब रॉलेट एक्ट का विरोध करने सड़कों पर आ गया था। गांधी जी ने इस बात का प्रचार किया कि रॉलेट एक्ट को बिल्किुल भी सपोर्ट नहीं किया जाए और उन्होंने सत्याग्रह मूवमेंट शुरू की। जो साउथ अफ्रीका से आने के बाद उनकी पहली सबसे सफल सत्याग्रह मूवमेंट थी। जिसकी वजह से ब्रिटिश शासन नहीं चाहता था कि गांधी जी पंजाब के दौरे पर आए। अंग्रेज उस दौर में पंजाब में हिन्दू, मुस्लिम और सिख की एकता को देख भी बहुत परेशान हो गए थे। 13 अप्रैल 1919 की बात है वैशाखी का दिन और एक बाग में करीब 15 से 20 हजार हिन्दुस्तानी इकट्ठा थे। सब बेहद शांति के साथ सभा कर रहे थे। सभा पंजाब के दो लोकप्रिय नेताओं की गिरफ्तारी और रॉलेट एक्ट के विरोध में रखी गई थी। लेकिन इससे दो दिन पहले अमृतसर और पंजाब में ऐसा कुछ हुए था जिससे ब्रिटिश सरकार गुस्से में थी। शाम के करीब पांच बजे के आसपास अमृतसर की सड़कों से होते हुए दो बख्तरबंद गाड़ियां जलियांवागा बाग के सामने एक सकड़ी गली के सामने रूकी। ब्रिटिश सरकार ने अपने जल्लाद अफसर जनरल डायर को अमृतसर भेज दिया। उसके बाद जो कुछ होता है वो ब्रिटिश हुकूमत में उससे पहले कभी नहीं हुआ। जनरल डायर ने बिना किसी चेतावनी के सैनिकों को गोलियां चलाने का आदेश दिया और चीखते, भागते निहत्थे बच्चों, महिलाओं, बूढ़ों की भीड़ पर 10 से 15 मिनट में 1650 राउंड गोलियां चलवा दीं। लोगो अपनी जान बचान के लिए इधर- उधर भागने लगे थे। यहां तक की लोग गोलियों से बचने के लिए बाग में मौजूद कुएं में भी कूद गए थे। बताया जाता है कि कुएं से कई लाशें निकाली गई थी। जिसमें बच्चे, बूढ़े, महिलाएं, पुरुष शामिल थे। इसी के साथ कई लोगों की जान भगदड़ में कुचल जाने की वजह से चली गई थी। आज भी, इस उद्यान की चारदीवारी पर दिखाई देने वाले गोलियों के निशान उस भयानक हत्याकांड़ की याद दिलाता हैं। वह कुआं जिस में लोग अपने आप को गोलियों से बचाने की कोशिश में कूदे और ड़ूब कर मर गए उसी तरह उद्यान में मौजूद है।

मिला 10 करोड़ का ईनाम

जलियांवाला बाग हत्याकांड की जांच के लिए सम्पूर्ण देश में चल रहे जबरदस्त विरोध को देखते हुए सरकार ने मजबूरन 1 अक्टूबर, 1919 को लार्ड हंटर की अध्यक्षता में एक आयोग की स्थापना की। हंटर कमीशन बना था जिसने सिर्फ जनरल डॉयर की आलोचना की थी। फिर उन्हें कमान से हटा दिया गया और रिजाइन करने को कहा गया। वो ब्रिटेन लौट गए। जहां उन्हें 10 करोड़ रुपये दिए गए ईनाम के लिए। अंग्रेजों को लगा कि बड़ी वीरता का काम किया है। ब्रिटिश अखबारों ने उसे ‘ब्रिटिश साम्राज्य का रक्षक’ लार्ड सभा ने उसे ‘ब्रिटिश साम्राज्य का शेर’ तथा सरकार ने उसकी सेवाओं के लिए उसे ‘मान की तलवार’ की उपाधि प्रदान की। मॉर्निंग पोस्ट अखबार ने उनके समर्थन में एक अखबार चलाया था जिसमें ये पैसे जुटाए गए। बाद में जनरल डॉयर अपने काम को सही ठहराते हुए आर्टिकल लिखते रहे और 23 जुलाई 1927 को ब्रेन हैमरेज से उनकी मौत हो गई। डिसऑर्डर इंक्वायरी कमेटी (1919-1920) की रिपोर्ट के अनुसार जनरल डायर ने स्वीकार किया था कि यह "काफी संभव" था कि वह जलियांवाला बाग में बिना फायरिंग के सभा को तितर-बितर कर सकता था। लेकिन, उनका मानना ​​था कि सभा में मौजूद लोग वापस आएंगे और उस पर हंसेंगे और उसे मूर्ख समझेंगे। 

जलियांवाला बाग पहुंचे ब्रिटिश बिशप ने मांगी माफी 

जलियांवाला बाग नरसंहार के 100 साल के बाद ब्रिटेन के एक बिशप जलियांवाला बाग मेमोरियल पहुंचे और अंग्रेजों के इस घृणित काम के लिए माफी मांगी। अमृतसर पहुंचे कैंटरबरी के ऑर्कबिशप जस्टिन वेल्बे ने कहा कि वे 1919 में हुए इस अपराध के लिए माफी मांगी और कहा कि वे इस घटना के लिए बेहद शर्मिंदा हैं। जस्टिन वेल्बे ने कहा कि जो अपराध यहां पर हुआ है उसके लिए वे दुखी है और माफी मांगते हैं उन्होंने कहा था कि एक धार्मिक नेता होने के नाते में उस घटना पर दुख जताता हूं।

जलियांवाला बाग परिसर क्या बदलाव किया गया 

2019 में, जलियांवाला बाग हत्याकांड के 100 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में केंद्र द्वारा लगभग 20 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए थे। संस्कृति मंत्रालय द्वारा जीर्णोद्धार और संरक्षण कार्य, और शौचालय, टिकट काउंटर और पीने के पानी जैसी सुविधाओं का निर्माण किया गया है। सरकार के स्वामित्व वाली एनबीसीसी लिमिटेड द्वारा लागू किए गए मेकओवर के लिए स्मारक फरवरी 2019 से जनता के लिए बंद कर दिया गया। बाग में प्रवेश और निकास बिंदुओं को बदल दिया गया है, और शहीदी कुएं की मरम्मत की गई है और नवविकसित उत्तम संरचना के साथ इसका पुनर्निर्माण किया गया है। इस बाग का केंद्रीय स्‍थल माने जाने वाले ‘ज्वाला स्मारक’की मरम्मत करने के साथ-साथ इसका पुनर्निर्माण किया गया है, यहां स्थित तालाब को एक ‘लिली तालाब’ के रूप में फिर से विकसित किया गया है, और लोगों को आने-जाने में सुविधा के लिए यहां स्थित मार्गों को चौड़ा किया गया है।

शहीदों की कई नई मूर्तियां 

 28 मिनट का साउंड एंड लाइट शो 13 अप्रैल, 1919 की घटनाओं को फिर से लागू करेगा, जिसे हर शाम मुफ्त दिखाया जाएगा। शहीदों के सम्मान में आगंतुकों के मौन बैठने के लिए एक साल्वेशन ग्राउंड बनाया गया है। संकरी गली की ऊंची दीवारों पर शहीदों की कई नई मूर्तियां सामने आई हैं, जिससे आगंतुक परिसर में प्रवेश करते हैं। ये जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के सामान्य पंजाबियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन पार्क में गए थे, लेकिन कभी वापस नहीं लौटे। चार नई गैलरी दीर्घाएं पंजाब के इतिहास, स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास और गदर आंदोलन को दर्शाती हैं। इसमें गुरु नानक देव, सिख योद्धा बंदा सिंह बहादुर और महाराजा रणजीत सिंह की एक मूर्ति भी है।

राष्ट्रवाद की राजनीति

पंजाब में चुनाव होने में अब कुछ ही महीने बचे हैं और राष्ट्रवाद की राजनीति ने जोर पकड़ लिया है। पिछले हफ्ते ही पंजाब के मुख्यमंत्री ने नरसंहार के शहीदों को श्रद्धांजलि" के रूप में एक दूसरे स्मारक, जलियांवाला बाग शताब्दी स्मारक पार्क का उद्घाटन करते हुए कहा था कि मूल स्थल पर स्मारक उन शहीदों को याद करने के लिए बनाया गया था जिनकी पहचान की गई थी। दूसरा स्मारक स्थल से लगभग 3 किमी दूर रंजीत एवेन्यू में अमृत आनंद पार्क में 1.5 एकड़ भूमि पर बनाया गया है। कैप्टन अमरिंदर सिंह, जो जलियांवाला बाग के ट्रस्टी भी हैं, कार्यक्रम में शामिल होंगे। लोकसभा में विपक्षी कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी को भी न्योता भेजा गया है, जो एक ट्रस्टी भी हैं. केंद्र 2019 में कांग्रेस अध्यक्ष को ट्रस्टियों की सूची से हटाने के लिए जलियांवाला बाग संशोधन विधेयक लाया था।

ऊधम सिंह ने चलाई गोलियां

 13 मार्च 1940 को ऊधम सिंह कैंथस्चन हॉल में एक मीटिंग में पहुंचे। मीटिंग खत्म होने को थी तभी ऊधम सिंह ने स्टेज की तरफ गोलियां चलाई। वो जलियांवाला बाग कांड के वक्त पंजाब के गवर्नर रहे माइकल ओ'डायर और सेक्रेटरी ऑफ स्टेट फॉर इंडियन अफेयर्स लॉरेंस को मारना चाहते थे। ओ'डायर को दिल पर गोली लगी और उसकी मौत हो गई लेकिन लॉरेंस बच गया। अफरा तफरी के बीच ऊधम सिंह नहीं भागे। मुकदमा चला और ऊधम सिंह ने जेल में 42 दिन की भूख हड़ताल की। उसके बाद ब्रिटेन की अदालत के हुक्म पर 31 जुलाई 1940 को ऊधम सिंह को फांसी दे दी गई। जलियांवाला बाग में उनकी अस्थियां सहेजी गई। -अभिनय आकाश


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