क्या है PFI और क्यों इस संगठन को बैन करने की उठी है आवाज, जानें पूरा सच

By अभिनय आकाश | Jan 03, 2020

जो है नाम वाला वही तो बदनाम है। आज का एमआरआई ऐसे ही एक संगठन पर है। इस संगठन का नाम है पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया और लोग इसे पीएफआई के नाम से जानते हैं। लेकिन इस संगठन के नाम पर जाने की गलती मत कीजिएगा क्योंकि इसकी हरकतें वैसी ही हैं जैसी आईएसआईएस की है। आप पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया को भारत का आईएसआईएस भी कह सकते हैं। तो आइए शुरू करते हैं विवादों से जुड़े पीएफआई का एमआरआई स्कैन। 

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19 दिसंबर को उपद्रवियों ने लखनऊ को हिंसा की आग में जलाने की कोशिश की थी। उस दिन उपद्रवियों ने न सिर्फ सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया बल्कि नफासत के साथ सियासत वाले नवाबों के शहर लखनऊ की सूरत ही बिगाड़ कर रख दी। इस हिंसा की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है वैसे-वैसे पुलिस को चौंकाने वाली जानकारियां हासिल हो रही हैं। लखनऊ की हिंसा में पुलिस ने जिन लोगों को गिरफ्तार किया उनमें से तीन कट्टर इस्लामिक संगठन पीएफआई से जुड़े हैं। इसके अलावा पुलिस ने यूपी के शामली में चार अन्य लोगों को गिरफ्तार किया। जिनका कनेक्शन पीएफआई से बताया जा रहा है। यूपी पुलिस और योगी सरकार का ऐसा मानना है कि लखनऊ समेत राज्य के दो दर्जन जिलों में जो हिंसा हुई उस हिंसा को सोची समझी साजिश के तहत अंजाम दिया गया। उस साजिश को अंजाम देने में पीएफआई नामक संगठन का अहम रोल माना जा रहा है। पहले तो 5 लाइनों में आपको बता देते हैं कि पीएफआई है क्या-

 

- पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया का गठन 2006 में किया गया था। 

- पीएफआई एक उग्र इस्लामिक संगठन है। 

- पीएफआई लोगों को उनके हक दिलाने और समाजसेवा का दावा करता है। 

- 16 राज्यों में फैले इस संगठन की महिला विंग भी है। 

- झारखंड में उस संगठन पर बैन भी लगाया गया था। 

- झारखंड सरकार को इसके कुछ सदस्यों के सीरिया में लिंक मिले थे। 

- 2018 में केरल में भी इसको प्रतिबंधित करने की मांग उठी थी। 

- ये मांग एर्नाकुलम में एक छात्र की हत्या के बाद उठी थी। 

- अब यूपी में हुई हिंसा में इस संगठन का हाथ होने का आरोप है। 

- यूपी में 6 महीनों में संगठन काफी तेजी से फैला है। 

 

तेजी से फैलने के दौरान ही इस संगठन की भूमिका नागरिकता संशोधित कानून के खिलाफ हुई हिंसा में सामने आ गई। पुलिस द्वारा जिस सिमी संगठन का नाम लेने की बात कह रही है, वह भारत में प्रतिबंधित है। आतंकी गतिविधियों में सिमी का नाम आने के बाद भारत में इसे बैन कर दिया गया था। पुलिस के इनपुट के हिसाब से पीएफआई में सिमी से जुड़े लोग एक्टिव हैं।

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यूपी के उपमुख्यमंत्री ने भी सिमी और पीएफआई के कनेक्शन की आशंका जाहिर की है। उन्होंने कहा कि सीएए के नाम पर हुए हिंसक प्रदर्शनों में पीएफआई के अलावा प्रतिबंधित संगठन सिमी का भी हाथ है। पुलिस ने गिरफ्तारी की जगह से संगठन से जुड़े झंडे, पर्चे, बैनर, साहित्‍य, अखबार की खबरों की कटिंग और सीएए के विरोध से जुड़े पोस्‍टर भी बरामद किए हैं। पूछताछ के दौरान नदीम और अश्‍फाक ने माना है कि 19 दिसंबर के लिए उन्‍होंने सीएए का विरोध करने की रणनीति बनाई थी। इसका प्रचार प्रसार सोशल मीडिया से भी किया गया था। इससे पहले असम में गिरफ्तार मुजीम और अमिनुल को हिंसक प्रदर्शनों की साजिश रचने और दिसपुर सचिवालय पर हुए हमले के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। 

 

पीएफआई का आईएसआईएस कनेक्शन

केरल में पीएफआई द्वारा धर्म परिवर्तन और लव जिहाद की फैक्ट्री चलाने की खबरें तो बीते दिनों की बात हो गईं। ये बात किसी से छुपी नहीं है कि केरल के कई युवक ऐसे हैं जिन्होंने आतंकवादी संगठन आईएसआईएस को ज्वाइन किया। एनआईए की एक रिपोर्ट में भी केरल के कन्नूर में आईएसआईएस के एक कैंप बनाए जाने और 23 लड़कों को हथियार चलाने की ट्रेनिंग देने की भी बात सामने आई थी।

 

एनआईए की उसी रिपोर्ट में केरल की पापुलर फ्रंट आफ इंडिया पर कई गंभीर आरोप लगाए गए थे। एनआईए की जांच में ये खुलासा हुआ था कि पीएफआई के कई सदस्य धर्म परिवर्तन के सिंडिकेट में शामिल हैं और कुछ आतंकी साजिश में भी पकड़े जा चुके हैं। 

 

गृह मंत्रालय को भेजी रिपोर्ट में पीएफआई के सभी मामलों की लिस्ट बनाई गई जिसमें उसके सदस्य शामिल थे। अब इसके कुछ उदाहरण आपको बता देते हैं। पहला मामला केरल के इडुकी जिले का है जहां पीएफआई से जुड़े लोगों पर एक प्रोफसर पर हमला करके उनका हाथ काट देने का आरोप लगा था। 

 

शुरूआत में इसकी जांच केरल पुलिस ने की लेकिन बाद में उसकी जांच एनआईए को सौंप दी गई। जांच करने के बाद पीएफआई से 43 लोगों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दाखिल हुई। बेंगलूरू में आरएसएस कार्यकर्ता आर रूद्रेश की हत्या के पीछे भी पीएफआई की भूमिका थी। 

 

एनआईए की जांच में ये खुलासा हुआ था कि पीएफआई ने फुल प्रूफ प्लानिंग करके दक्षिण भारत के अलग-अलग इलाकों में आरएसएस के कार्यकर्ताओं की हत्या की साजिश रची थी। एनआईए ने साल 2016 में केरल की अलग-अलग जगहों से आईएसआईएस के छह संदिग्ध लोगों को गिरफ्तार किया था। ये सभी उमर अल हिंदी माड्यूल के सदस्य थे। जो इराक में बैठे आईएसआईएस के इशारों पर केरल और देश के दूसरे हिस्सों में बड़े आतंकी हमले की साजिश रच रहे थे। 

 

एनआईए की रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि पीएफआई सुनियोजित तरीके से देश में तालिबानी सोच विकसित करने में लगा है। पीएफआई ने कुछ साल में बम बनाने से लेकर हथियार चलाने तक की ट्रेनिंग हासिल कर ली है। इसके अलावा पीएफआई ने अपना खुफिया तंत्र भी बना रखा है जिससे वो आसपास की जानकारियां इकट्ठा करता है। 

 

नागरिकता संशोधन कानून के नाम पर हो रहे विरोध प्रदर्शनों की सच्‍चाई अब सामने आने लगी है। यह बात पहले ही सामने आ चुकी है कि इनके पीछे सरकार विरोधी तत्‍व हैं और वहीं कुछ राजनीतिक दल भी इन विरोध प्रदर्शनों को हवा देने में लगे हैं। संगठन की जड़ें केरल के कालीकट से जुड़ी हुई हैं और इसका मुख्यालय दिल्ली के शाहीन बाग में स्थित है। एक मुस्लिम संगठन होने के कारण इस संगठन की ज्यादातर गतिविधियां मुस्लिमों के इर्द गिर्द ही घूमती हैं और पूर्व में तमाम मौके ऐसे भी आए हैं जब ये मुस्लिम आरक्षण के लिए सड़कों पर आए हैं। संगठन 2006 में उस वक़्त सुर्ख़ियों में आया था जब दिल्ली के राम लीला मैदान में इनकी तरफ से नेशनल पॉलिटिकल कांफ्रेंस का आयोजन किया गया था। तब लोगों की एक बड़ी संख्या ने इस कांफ्रेंस में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी।

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संगठन को बैन किये जाने की मांग 2012 में भी हुई थी। दिलचस्प बात ये है कि तब खुद केरल की सरकार ने पीएफआई का बचाव करते हुए केरल हाई कोर्ट को बताया था कि ये सिमी से अलग हुए सदस्यों का संगठन है जो कुछ मुद्दों पर सरकार का विरोध करता है। ध्यान रहे कि ये सवाल जवाब केरल की सरकार से तब हुए थे जब उसके पास संगठन द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर आजादी मार्च किये जाने की शिकायतें आई थीं।

 

इस बात में कोई शक नहीं है कि पीएफआई एक ऐसा संगठन है जो कट्टरपंथ को प्रमोट करता है। ऐसे में यूपी के डीजीपी द्वारा पीएफआई पर प्रतिबंध की सिफारिश के बाद आने वाले दिनों में PFI पर बैन राजनीतिक दलों का ध्यान आकर्षित करेगा और इसपर जम कर रोटीयां सेंकी जाएंगी। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सीएए हिंसा में पीएफआई की भूमिका की जांच होने और गृह मंत्रालय द्वारा सबतों के आधार पर आगे की कार्रवाई तय करने की बात कही है। 

 

सच तो ये है कि समय रहते कोई बड़ा कदम उठाने को लेकर राजनीति होना हमारे देश की सबसे बड़ी कमजोरी है जिसे कुछ लोग लोकतंत्र की खूबसूरती की संज्ञा भी देते हैं। लेकिन अगर समय रहते इसका हल नहीं ढूंढ़ा गया तो लखनऊ और केरल की तरह बसों को फूंकना और चाकुओं से हत्याएं आम बात हो जाएंगी। और इसके दोषी हम खुद होंगे।

 

- अभिनय आकाश

 

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