जम्मू कश्मीर में जिला विकास परिषदों के लिए चुनाव और पंचायतों के लिए उपचुनाव के लिए अधिसूचना 5 नवंबर को जारी हुई थी। जिसमें पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन जिसमें जम्मू कशमीर की क्षेत्रीय पार्टियां शामिल हैं और कांग्रेस ने घोषणा की है कि वो इस चुनाव में हिस्सा लेंगे। जम्मू कश्मीर राज्य चुनाव आयुक्त केके शर्मा ने 20 जिलों में डीडीसी यानी जिला विकास परिषद चुनाव के लिए अधिसूचना जारी की थी। डीडीसी 28 नवंबर से 22 दिसबंर तक आठ चरणों में संपन्न होंगे।
जम्मू कश्मीर में जैसे-जैसे सर्दी आ रही है वैसे ही 370 को लेकर सूबे का राजनीतिक पारा चढ़ता जा रहा है। जम्मू कश्मीर के अमन चैन के दुश्मन एकजुट होते हुए दिखाए दे रहे हैं। उनका एजेंडा बिल्कुल स्पष्ट है गुपकार डेक्लेरेशन को आगे बढ़ाना। जम्मू कश्मीर में फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और फिर महबूबा मुफ्ती की रिहाई के बाद से ही राजनीति शुरू हो गई है। महबूबा-अब्दुल्ला की नफरती जोड़ी की 370 पर रस्सी जल गई लेकिन एठन नहीं गई। महबूबा-फारूक 370 का राग अलापते हुए राजनीतिक लामबंदी में लगे हैं जिनका मकसद एक ही है केंद्र के विरोध को हवा देना। 370 पर आक्रोश भड़काना और सियासत चमकाना।
अनुच्छेद 370 के पौरोकार कश्मीरी नेताओं की पिछले 14 महीने से बोलती बंद थी। लेकिन नजरबंदी से आजादी मिलते ही उम्मीदों के पंख फड़फड़ाने लगे। श्रीनगर में नेताओं का मिलन समारोह शुरू हो गया। एक बार फिर कश्मीर की स्वायत्ता का जज्बाती मुद्दा भड़काने की चाल चली जा रही है। लेकिन फारूक और महबूबा शायद ये भूल रहे हैं कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ सकती। वो एक बार फिर देश का मूड भांपने में गलती कर रहे हैं। कश्मीर की राजनीतिक पार्टियां 370 के कवच की आड़ में सालों से सियासी रोटियां सेंकती रही और 5 अगस्त को मोदी सरकार ने वो रास्ता बंद कर दिया था। नजरबंदी में नेताओं की चली नहीं लेकिन आजाद होते ही गुपकार घोषमा के कागजात बाहर निकाल लाए हैं और खुलकर लामबंदी भी होने लगी है।
देश की संसद ने तय किया और जम्मू कश्मीर को अनुच्छेद 370 से मुक्ति मिल गई। एक हिन्दुस्तान, एक संविधान, एक विधान के दायरे में कश्मीर भी आ गया। लेकिन कश्मीर के नेता सकते में आ गए। 370 के अंत का मतलब स्वायत्ता का सब्जबाग दिखाने वाली सियासत का अंत था। अब्दुल्ला परिवार हो या मुफ्ती खानदान 370 खत्न करने पर बेचैनी हर तरफ थी। कश्मीरियों के जज्बात से खेलने वाली राजनीति का बोरिया बिस्तर बंधने जा रहा था। संसद में प्रस्ताव पारित होने से ठीक एक दिन पहले यानी 4 अगस्त 2019 को फारूक अब्दुल्ला के घर कश्मीर के राजनीतिक दलों की बैठ हुई थी। बैठक में अनुच्छेद 370 हटाने की मुखालफत का संकल्प लिया गया। संकल्प को गुपकार घोषणा का नाम दिया गया क्योंकि फारूक अब्दुल्ला का घर गुपकार इलाके में ही है। गुपकार रोड के एक तरफ़ भारत और पाकिस्तान के लिए यूएन का दफ़्तर है और दूसरी तरफ़ कश्मीर के अंतिम राजा का घर है। गुपकार बहुत ही सुरक्षित इलाक़ा है और हमेशा से ही यहां पर सत्ता में शामिल या उनसे जुड़े लोगों का आवास रहा है। राज्य के सारे बड़े नेता और नौकरशाह इसी जगह रहते हैं।
गुपकार घोषणा में कौन-कौन दल
गुपकार घोषणा पर जम्मू कश्मीर के छह बड़े नेताओं के हस्ताक्षर थे। नेशनल काफ्रेस के फारूक अब्दुल्ला, पीडीपी की महबूबा मुफ्ती, कांग्रेस के जीए मीर, सीपीएम के एमवाई तारीगामी, पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद गनी लोन,आवामी नेशनल कांफ्रेस के मुजफ्फर शाह। यानी वो तमाम पार्टियों के नुमाइंदे जिनको अपनी नैया डूबती दिख रही थी।
अब जरा घोषणापत्र का मजबून भी देखिए..
हम अनुच्छेद 370 और 35ए की बहाली के लिए कटिबद्ध हैं। राज्य का बंटवारा हमें कतई मंजूर नहीं।
अब इन पार्टियों ने अपनी 2019 की गुपकार घोषणा को बरकरार रखा है और इस गठबंधन को नाम दिया है "पीपल्स अलायंस फॉर गुपकार डेक्लेरेशन।" एनसी और पीडीपी के अलावा इसमें सीपीआई(एम), पीपल्स कांफ्रेंस (पीसी), जेकेपीएम और एएनसी शामिल हैं।
अभियान की घोषणा करते हुए जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने कहा कि हमारी लड़ाई एक संवैधानिक लड़ाई है, हम चाहते हैं कि भारत सरकार जम्मू और कश्मीर के लोगों को उनके वो अधिकार वापस लौटा दे जो उनके पास पांच अगस्त 2019 से पहले थे। अब्दुल्ला ने यह भी कहा कि जम्मू, कश्मीर और लद्दाख से जो छीन लिया गया था हम उसे फिर से लौटाए जाने के लिए संघर्ष करेंगे। 2019 की 'गुपकार घोषणा' वाली बैठक की तरह यह बैठक भी अब्दुल्ला के श्रीनगर के गुपकार इलाके में उनके घर पर हुई।
गुपकार घोषणा-2 में खुलकर सामने आए इरादे
22 अगस्त, 2020 को फिर से छह राजनीतिक दलों- नैशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, कांग्रेस, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, सीपीआई(एम) और अवामी नैशनल कॉन्फ्रेंस ने फिर से गुपकार घोषणा दो पर दस्तखत किया। इन सभी ने जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 और आर्टिकल 35ए की वापसी की लड़ाई साथ लड़ने का संकल्प लिया।
राष्ट्रीय पार्टियों का स्टैंड
राष्ट्रीय स्तर की दो पार्टियों कांग्रेस और सीपीआई(एम) की जम्मू-कश्मीर इकाई ने तो गुपकार घोषणा का समर्थन किया है, लेकिन नैशनल लीडरशिप ने इसपर चुप्पी साध रखी है। कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक में 'अलोकतांत्रिक तरीके' से जम्मू-कश्मीर से राज्य का दर्जा छीने जाने की आलोचना तो की, लेकिन आर्टिकल 370 की वापसी पर कुछ नहीं कहा। इतना ही नहीं, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ऑन रेकॉर्ड कहा कि कांग्रेस पार्टी जम्मू-कश्मीर से उसका विशेष दर्जा खत्म करने के विरोध में कभी नहीं थी, लेकिन इसे जिस तरह वहां की जनता पर थोपा गया, उसका विरोध जरूर करती है।
बीजेपी की तीखी प्रतिक्रिया
वहीं, गुपकार घोषणा के लिए मीटिंग को लेकर बीजेपी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। पार्टी ने कहा कि तीन पूर्व मुख्यमंत्री घाटी में परेशानी खड़ी करने के लिए साथ आए हैं। बीजेपी चीफ रविंदर रैना ने गुपकार घोषणा को 'ऐंटी-नैशनल' और 'पाकिस्तान प्रायोजित' बताया है। उन्होंने कहा कि अब्दुल्ला और मुफ्ती ने अपनी ताजा बैठक में गुपकार घोषणा के लक्ष्यों को आगे बढ़ाने का फैसला किया है, जिसकी बीजेपी कभी अनुमति नहीं देगी।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू और कश्मीर में हाल ही बने राजनीतिक मोर्चे को आड़े हाथों लिया है। शाह ने गुपकार गठबंधन को 'गुपकार गैंग' करार देते हुए ट्वीट किया कि गुपकर गैंग ग्लोबल हो रहा है! वे चाहते हैं कि विदेशी ताकतें जम्मू-कश्मीर में हस्तक्षेप करें। क्या सोनिया जी और राहुल जी इस तरह के कदमों का समर्थन करते हैं? उन्हें अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए। कांग्रेस और गुपकार गैंग जम्मू-कश्मीर को आतंक और अशांति के युग में वापस ले जाना चाहते हैं। वे दलितों, महिलाओं और आदिवासियों के अधिकारों को छीनना चाहते हैं जिन्हें हमने अनुच्छेद 370 को हटाकर सुनिश्चित किया है। इसीलिए हर जगह लोगों द्वारा इन्हें खारिज किया जा रहा है।
गुपकार का चीन-पाक कनेक्शन
गुपकार घोषणा को चीन और पाकिस्तान से भी जोड़कर देखा जा रहा है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने गुपकार घोषणा की सराहना करते हुए इसे महत्वपूर्ण कदम बताया था। हालांकि फारूक अब्दुल्ला ने यह कहकर इस पर पानी डालने की कोशिश की थी कि हम किसी के इशारे पर यह काम नहीं कर रहे हैं।
इस बीच, फारूक अब्दुल्ला ने चीन को लेकर भी एक बयान दिया था, जो काफी सुर्खियों में रहा था। उन्होंने उम्मीद जताई थी कि अनुच्छेद 370 की फिर से बहाली में चीन से मदद मिल सकती है। उन्होंने यह भी कहा था कि कश्मीर के लोग चीन के साथ रहना चाहेंगे।
कश्मीर की पार्टियों को इसकी जरूरत क्यों पड़ी?
नई दिल्ली में कश्मीर पर नजर रखने वाले तबके को लग रहा है कि पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन राजनीतिक मजबूरी है। पिछले सालभर ये नेता हिरासत में रहे। इस दौरान उन्हें जमीनी स्तर पर कोई सपोर्ट नहीं मिला। ऐसे में वे इस अलायंस के जरिए अपनी विश्वसनीयता को लोगों के बीच कायम करना चाहते हैं। नई दिल्ली में सरकारी सूत्र यह भी कहते हैं कि कश्मीर में मोटे तौर पर कानून व्यवस्था अच्छा काम कर रही है। आतंकवादियों के जनाजों को लेकर होने वाले टकराव भी खत्म हो गए हैं। इस वजह से कश्मीर के कुछ नेता पहले ही मर चुके अनुच्छेद 370 का जनाजा निकालना चाहते हैं। हकीकत यही है कि 370 अब कभी लौटने वाला नहीं है। कहीं न कहीं कश्मीर की मुख्य धारा की क्षेत्रीय पार्टियां अब भी उम्मीद कर रही है कि अनुच्छेद 370 लौट सकता है। गुपकार डिक्लेरेशन पर साइन करने वालों ने संकेत दिए हैं कि यह लड़ाई अब सुप्रीम कोर्ट में चलेगी।
टिकेगा नहीं मगर राजनीति का देगा मौका
एक बात ये भी कही जा रही है कि इस अभियान के तहत ये राजनीतिक दल एक साथ आएंगे और एक लक्ष्य के लिए अपने मतभेदों को भूलाकर एक साथ काम करेंगे मगर ये भी तय मना जा रहा है कि ये अभियान अधिक समय तक टिकेगा नहीं, मगर राजनीतिक दलों को एक साथ आने का मौका जरूर देगा। इससे ये बात भी पता चल जाएगी कि भविष्य में ये दल किस तरह से गठबंधन बनाकर काम कर सकेंगे। अब्दुल्ला-मुफ्ती के भाईचारे ने कई लोगों को चौंकाया है। पिछले एक साल में एनसी और पीडीपी नेता नजरबंद थे। उनके समर्थन में न कोई बड़ा प्रदर्शन हुआ और न ही कोई लॉकडाउन। इससे यह साफ है कि जमीन पर उनके लिए कोई सपोर्ट नहीं बचा है।
14 महीने पहले ये ऐलान तो नजरबंदी के अंधेरे में गुम हो गया। फारूक, उमर और महबूबा तीनों को जिस अंदेशे से केंद्र ने नजरबंद किया था वो अब सच होता नजर आ रहा है। आजाद हवा में सांस लेते ही कश्मीर के नेता अपने पुराने एजेंडे पर लौट आए हैं। गुपकार ऐलान के बहाने कश्मीर की शांति को पटरी से धकेलने की सियासत हो रही है।- अभिनय आकाश