By अभिनय आकाश | Oct 23, 2021
बहुत पुरानी कहावत है "हम तो डूबे हैं सनम तुम को भी ले डूबेंगे" जिसका मतलब है हम ख़ुद तो फंसे हैं तुम को भी फंसाएगे, इसका उपयोग तब किया जाता है जब यह कहा जाता है कि एक व्यक्ति स्वयं मुसीबत में है और दूसरों को भी मुसीबत मे डाल देगा। ऐसा ही कुछ इस वक्त पाकिस्तान और तुर्की के लिए कहा जा सकता है। पाकिस्तान दुनिया के सामने अपनी छवि सुधारने की जितनी भी कोशिश कर ले लेकिन सच्चाई कभी बदलने वाली नहीं है। आतंक को पालने-पोसने वाले पाकिस्तान का असल चेहरा किसी ने नहीं छुपा है। यही वजह है कि आतंक को पनाह देने की वजह से पाकिस्तान को एक बार फिर झटका लगा है। टेरर फंडिंग पर नजर रखने वाली फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में बरकरार रखा है। लेकिन सबसे दिलचस्प बात ये है कि तुर्की को भी ग्रे लिस्ट में डाला गया है।
एफएटीएफ क्या है
फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) जी-7 ग्रुप की ओर से बनाई गई निगरानी एजेंसी है। इसकी स्थापना इंटरनेशनल लेवल पर मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवाद और विनाशकारी हथियारों के प्रसार और फाइनैंस को रोकना है। यह ऐसी गैरकानूनी गतिविधियों को रोकने के लिए ऐसी गतिविधियों को रोकने के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय मानक निर्धारित करता है। यह निगरानी के बाद देशों को टारगेट देता है, जैसे आतंकियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई, हथियारों की तस्करी की रोकथाम के लिए कानून बनाने की सलाह देता है। जो देश ऐसा नहीं करते हैं तो उसे वह अपनी ग्रे या ब्लैक लिस्क में डाल देता है। इन लिस्ट में जाने से अंतराष्ट्रीय बैंक से लोन लेने की संभावना कम हो जाती है। इसकी बैठक एक साल में तीन बार होती है।
अतिरिक्त मॉनिटरिंग वाली ग्रे लिस्ट क्या है?
एफएटीएफ के अनुसार, जब किसी क्षेत्राधिकार को बढ़ी हुई निगरानी में रखा जाता है, तो इसका मतलब है कि देश सहमत समय सीमा के भीतर पहचानी गई रणनीतिक कमियों को तेजी से हल करने के लिए प्रतिबद्ध है और अतिरिक्त जांच के अधीन है। विशेष रूप से ये क्षेत्राधिकार अब "मनी लॉन्ड्रिंग, टेरर फंडिंग और प्रसार वित्तपोषण का मुकाबला करने के लिए अपने शासन में रणनीतिक कमियों को दूर करने के लिए एफएटीएफ के साथ सक्रिय रूप से काम करेंगे। सरल शब्दों में कहे तो ग्रे लिस्ट में उन देशों को रखा जाता है, जो एफएटीएफ के बताए गए पॉइंट्स पर अमल करने की हामी भरते हैं। जैसे पाकिस्तान ने दावा किया कि वह संगठन की ओर से दी गए 34 सूत्रीय एजेंडे में से 30 पर अमल किया है। यह एक तरह से चेतावनी होती है कि समय रहते ये देश ग्रे लिस्ट में आने के बाद भी सख़्त कदम नहीं उठाते हैं, तो इन पर ब्लैकलिस्ट होने का खतरा बढ़ता है। इराक और नॉर्थ कोरिया जैसे देश संगठन की सलाह मानने से स्पष्ट इनकार करते हैं, इसलिए उन्हें ब्लैक लिस्ट में डाला गया है।
दुनिया के ग्रे लिस्ट देश कौन-कौन से हैं?
एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में अब दुनिया के 23 देश हैं, जिन्हें आधिकारिक तौर पर "रणनीतिक कमियों वाले क्षेत्राधिकार" के रूप में जाना जाता है। भारत और दुनिया के बाकी हिस्सों के दृष्टिकोण से, सूची में सबसे महत्वपूर्ण देश पाकिस्तान है, इसके अलावा म्यांमार भी इस लिस्ट में है और अब तुर्की भी शामिल हो गया है। संक्षेप में एफएटीएफ के आकलन में ये सभी देश अंतरराष्ट्रीय मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण को रोकने में विफल रहे हैं, और इसलिए, वैश्विक निगरानी सूची में हैं। अपडेटेड ग्रे सूची में कुछ अन्य देश फिलीपींस, सीरिया, यमन, जिम्बाब्वे, युगांडा, मोरक्को, जमैका, कंबोडिया, बुर्किना फासो और दक्षिण सूडान और बारबाडोस आदि हैं। एपएटीएफ ने दो देशों बोत्सवाना और मॉरीशस को भी ग्रे लिस्ट से बाहर भी किया है।
तुर्की को क्यों इस लिस्ट में शामिल किया गया?
एफएटीएफ के अध्यक्ष प्लीयर ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि तुर्की को आतंकवादियों तक पहुंचने वाली आर्थिक मदद की गंभीरता से निगरानी करने की जरूरत है। खासकर अपने बैंकिंग और रियल एस्टेट सेक्टर और सोने और कीमती रत्नों के सौदागरों की। तुर्की को यह दिखाने की जरूरत है कि वह मनी लॉन्ड्रिंग मामलों से प्रभावी ढंग से निपट रहा है और आतंकवादी वित्तपोषण करने वालों पर कार्रवाई भी कर रहा है। खासकर आईएसआईएस और अल-कायदा से जुड़े आंतकी संगठनों के मामले में। एफएटीएफ के बयान में कहा गया है कि तुर्की ने आतंकवाद को रोकने और एफएटीएफ को मजबूत करने के लिए कई उच्चस्तरीय राजनीतिक प्रतिबद्धताएं जताईं। इसलिए एफएटीएफ ने तुर्की को ग्रे लिस्ट से बाहर आने के लिए आठ विशेष कार्य दिए हैं।
तुर्की ने कैसे प्रतिक्रिया दी है
एफएटीएफ की आवश्यकताओं का पालन करने के लिए सहमत होते हुए, तुर्की ट्रेजरी ने शिकायत की कि "अनुकूलता पर हमारे काम के बावजूद हमारे देश को ग्रे सूची में रखना एक अवांछनीय परिणाम है। एक बयान में तुर्की की तरफ से कहा गया कि आने वाले समय में एफएटीएफ और सभी संबंधित संस्थानों के सहयोग से आवश्यक कदम उठाए जाते रहेंगे, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि हमारा देश इस सूची से जल्द से जल्द बाहर आ सके, जिसके वह योग्य नहीं है। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार एफएटीएफ ने 2019 में तुर्की को "गंभीर कमियों" के बारे में चेतावनी दी थी, जिसमें आतंकवाद से जुड़ी संपत्तियों और हथियारों को फ्रीज करने के उपायों में सुधार की आवश्यकता भी शामिल थी।
कट्टरपंथ की तरफ मुड़ चुका तुर्की
तुर्की में बीते कुछ सालों में जबरदस्त बदलाव आए हैं। इस्लामिक जगत में अपने धर्मनिरपेक्ष रवैये के लिए लोकप्रिय तुर्की अब राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोआन के शासन में कट्टरपंथ की तरफ मुड़ चुका है। अर्दोआन के राज में ही तुर्की ने भारत से रिश्ता लगभग तोड़ते हुए पाकिस्तान के साथ रिश्तों पर जोर देना शुरू किया। इसी कड़ी में तुर्की ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर जुल्म का मुद्दा उठाना बंद किया और भारत में कश्मीर मुद्दे पर बयान देने शुरू कर दिए। फ्रांस में इसी साल पैगंबर का कार्टून दिखाने वाले एक शिक्षक की हत्या से जुड़ा मामला हो या अफगानिस्तान में तालिबान का समर्थन करने का। तुर्की ने लगातार आतंकवाद के समर्थन वाले बयान देना जारी रखा है।
ग्रे-लिस्टिंग के परिणामस्वरूप क्या हो सकता है
माना जाता है कि किसी भी देश को एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में ले जाने से उसकी आर्थिक व्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ता है। दरअसल, ग्रे लिस्ट में शामिल किए जाने का एक मतलब यह निकाला जाता है कि वह देश आतंकवाद के खिलाफ जानबूझकर या अनजान बनते हुए कार्रवाई कर पाने में असमर्थ है। ऐसे में आतंकवादियों को सीधे या अप्रत्यक्ष तौर पर मदद पहुंचाने के लिए कई संस्थाएं उस देश पर अलग-अलग तरह के आर्थिक प्रतिबंध भी लगाती हैं। रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक हालिया अध्ययन में बताया गया है कि किसी बी देश के ग्रे-लिस्टिंग में जाने से उसे मिलने वाली राशी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के मुकाबले 7.6% तक कम हो जाती है। जबकि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) पर भी उल्टा प्रभाव पड़ने का खतरा रहता है। एफएटीएफ की तरफ से ग्रे लिस्ट में जाने के बाद तुर्की की करेंसी- लीरा पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और यह अपने रिकॉर्ड न्यूनतम स्तर से और भी नीचे जा सकती है।
एफएटीएफ ने पाकिस्तान के बारे में क्या कहा?
एफएटीएफ के प्रेसिडेंट मारकस प्लिइर ने इसका ऐलान करते हुए कहा कि पाकिस्तान सरकार ने एक्शन प्लान के 34 में 30 प्वाइंट पर काम किया है, और ग्रे सिल्ट से बाहर होने के लिए उसे बाकी के 4 प्वाइंट्स पर भी काम करना होगा। पाकिस्तान को पहली बार जून 2018 में इस लिस्ट में डाला गया था। तब से कई बार वो लिस्ट से बाहर आने के प्रयास कर चुका है और हर बार असफल रहा है। लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद और जैश-ए-मुहम्मद के संस्थापक मसूद अजहर जैसे नेता जिन्हें अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी के रूप में मंजूरी दी गई है, सरकार और अदालतों द्वारा उनके खिलाफ कुछ स्पष्ट कार्रवाइयों के बावजूद पाकिस्तान में काफी हद तक मुक्त हैं। एफएटीएफ ने कहा, "पाकिस्तान को अपनी अन्य रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण AML/CFT कमियों को दूर करने के लिए काम करना जारी रखना चाहिए। एफएटीएफ से किए गए वादों को पूरा नहीं करने के कारण 2019, 2020 और अप्रैल 2021 में हुए रिव्यू में भी पाक को राहत नहीं मिली।
झूठे वादे करता रहा पाकिस्तान
पाकिस्तान को पहली बार 2008 में ग्रे लिस्ट में रखा गया था। 2009 में राहत देते हुए उसे लिस्ट से हटा दिया गया। आतंकियों के शरण देने और धन मुहैया कराने के कारण 2012 से 2015 तक दोबारा वह टास्क फोर्स की निगरानी में रहा। तीन साल के बाद पाकिस्तान को जून 2018 में ग्रे लिस्ट में डाला गया। गनीमत यह रही कि उसे ब्लैक लिस्ट में नहीं डाला गया, क्योंकि समीक्षा के दौरान पाकिस्तान आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने का झूठा वादा करता रहा।
कर्ज के बोझ चले दबा पाकिस्तान
पैसे-पैसे के लिए मोहताज पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था विदेशी मदद और कर्ज के सहारे चलती है। ग्रे लिस्ट में बने रहने से विश्व बैंक और एडीबी जैसी वैश्विक संस्थाओं से कर्ज लेने की क्षमता प्रभावित हो रही है। ग्रे लिस्ट में बने रहने से पाकिस्तान को मिलने वाले विदेशी निवेश पर बुरा असर पड़ रहा है। जुलाई में पाकिस्तान की संसद में इमरान खान ने बताया था अब हर पाकिस्तानी के ऊपर अब 1 लाख 75 हजार रुपये का कर्ज है। फिलहाल हर पाकिस्तानी पौने दो करोड़ रुपये का कर्जदार है। अब ब्याज चुकाने के लिए भी पाकिस्तान को विदेशी फंडिंग एजेंसियों से कर्ज की दरकार होगी। ऐसे में कर्ज के लिए उसे पापड़ बेलने पड़ेंगे।
मोदी सरकार की वजह से पाकिस्तान FATF की ग्रे लिस्ट में है
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि लश्कर और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों को भारत के प्रयासों के कारण संयुक्त राष्ट्र की ओर से प्रतिबंध लगाया गया। जयशंकर ने कहा, 'FATF आतंकवाद के लिए फंडिंग पर नजर रखता है और आतंकवाद का समर्थन करने वाले काले धन से निपटता है। हमारी वजह से पाकिस्तान FATF की नजरों में है और उसे ग्रे लिस्ट में रखा गया है।
-अभिनय आकाश