चुनाव किसी भी लोकतंत्र के लिए त्योहार सरीखे होते हैं। इसमें बेहतर कल के लिए आम आदमी की आकांक्षाएं और उम्मीदें जुड़ी होती हैं। लेकिन इसी चुनावी प्रक्रिया में कुछ ऐसी चिताएं भी जुड़ी हैं जो बीते सात दशकों से लोकतंत्र के इस पर्व का स्वाद कड़वा कर देती है। पालिटिकल फंडिग और खर्च का सवाल भी चिताओं की फेहरिस्त का हिस्सा है। यूं तो चुनाव में चंदा देना आम बात है। लेकिन ये चंदा कौन दे रहा है? कितना दे रहा है, किसे दे रहा है और क्यों दे रहा है? ये सवाल हर चुनाव में उठते रहे हैं। लेकिन इस बार देश की संसद में इलेक्टोरल बांड पर सियासत और बयानबाजी जोरो पर हैं। पहले राहुल गांधी ट्वीटर पर इसे घूस और अवैध कमीशन का दूसरा नाम बता चुके हैं वहीं लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता मामले की गंभीरता बताने में लगे हैं और मनीष तिवारी ने तो सरकार पर ही गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
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