By मिथिलेश कुमार सिंह | Sep 21, 2020
आज के समय में हम आप कंप्यूटर-युग में अपना जीवन गुजार रहे हैं। रोज एक से बढ़कर एक शब्दावलियाँ सामने आती हैं और यह तमाम शब्दावलियाँ बहुत जल्द ही हकीकत में भी कन्वर्ट हो जाती हैं।
कई लोग तो इस बात से भी अनजान रहते हैं कि कब कोई कंप्यूटर/ टेक्नोलॉजी से जुड़ी शब्दावली उनके जीवन में घुस चुकी है। वह जाए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हो, वह चाहे 4G टेक्नालॉजी हो, चाहे क्लाउड कंप्यूटिंग ही क्यों ना हो!
जी हां! आज हम क्लाउड कंप्यूटिंग की ही बात कर रहे हैं। आइए जानते हैं कि वास्तव में यह क्या है...
सामान्यतः हम जो कंप्यूटर इस्तेमाल करते हैं, उसमें लोकल ड्राइव्स में फाइल इस्तेमाल होती है। हम कोई फोल्डर क्रिएट करते हैं और उस फोल्डर के अंदर अपनी फाइल सेव करते हैं जो हमारे ऑफलाइन कंप्यूटर की हार्ड ड्राइव में सेव हो जाती है।
लेकिन जब हम क्लाउड कंप्यूटिंग की बात करते हैं, तो हमारा कोई भी डाटा ऑफलाइन सेव नहीं होता है, बल्कि हम कार्य करते रहते हैं और हमारा डाटा ऑनलाइन, कहीं दूर वर्चुअल सर्वर पर सेव होता रहता है।
इसका फायदा यह होता है कि हमें हर जगह अपना कंप्यूटर लेकर टहलने की आवश्यकता नहीं होती है, बल्कि ऑनलाइन हम किसी भी जगह से क्लाउड पर अपनी फाइल और डाटा का एक्सेस ले सकते हैं। ना केवल कंप्यूटर पर, बल्कि मोबाइल, टेबलेट इत्यादि किसी भी काम्पैटिबल डिवाइस से हम एक्सेस कर सकते हैं।
खास बात यह है कि कई जगह पर क्लाउड सर्विसेज फ्री तो कई जगह पर यह पेड होती है।
आप यह जान लीजिए कि वर्तमान में यह बेहद तेजी से आगे बढ़ती जा रही है।
इसका कारण बहुत साफ है और वह यह है कि क्लाउड पर स्टोर किए गए डाटा बेहद सेफ होते हैं। ना तो इनके करप्ट होने का खतरा रहता है, ना उनके डिलीट होने का खतरा रहता है और क्लाउड सर्विस देने वाली कंपनी इस बात की बकायदे व्यवस्था करती है कि सर्वर पर लगातार नए हार्डवेयर अपडेट होते रहें और फाइल्स का बैकअप भी सही जगह पर सेव होता रहे।
इससे आपको हार्डवेयर का अतिरिक्त खर्च भी नहीं करना पड़ता है।
हालांकि अगर आप पूरी सिक्योरिटी से अपना डाटा क्लाउड पर नहीं रखते हैं, तो इसके चोरी होने का डर अवश्य रहता है। इसलिए आपको बेहद सेफ्टी-सिक्यूरिटी के साथ इसका इस्तेमाल करना चाहिए। जहां तक संभव हो, टू फैक्टर ऑथेंटिकेशन एक्टिवेट करने से आपको सुरक्षा के सन्दर्भ में काफी सहूलियत मिलती है।
क्लाउड कंप्यूटिंग मुख्य तौर पर 3 टाइप्स की होती है, जिसमें सबसे पहले पब्लिक क्लाउड कंप्यूटिंग गिनाई जा सकती है। यहां डाटा बेहद कम सिक्योर रहता है और उसे मल्टीपल जगहों से एक्सेस किया जा सकता है।
इसके बाद प्राइवेट क्लाउड कंप्यूटिंग होती है जो बेहद सेफ होती है और उस पर आपका पूरा कंट्रोल रहता है। जिसको, जितना एक्सेस आप देते हो, उतना ही कोई एक्सेस ले सकता है, न उससे अधिक, न कम!
इसके बाद हाइब्रिड क्लाउड कंप्यूटिंग का नाम गिनाया जा सकता है, जिसका कुछ हिस्सा पब्लिक तो कुछ प्राइवेट होता है।
सामान्य तौर पर प्राइवेट क्लाउड कंप्यूटिंग काफी इस्तेमाल की जाती है, क्योंकि इसकी सेफ्टी-सिक्यूरिटी सुनिश्चित होती है।
कुछ उदाहरण की बात करें तो गूगल ड्राइव इसका सबसे उत्तम एग्जांपल है, जो आप किसी भी डिवाइस से दुनिया के किसी भी कोने से एक्सेस कर सकते हैं। ड्राइव पर एक गूगल आईडी से आपको 15 जीबी तक फ्री डाटा स्टोरेज मिलता है, जबकि पेड वर्जन में आपको कई सारे ऑप्शन मिलते हैं।
गूगल ड्राइव के अलावा ड्रापबॉक्स (Dropbox), सिंक (Sync), वनड्राइव (OneDrive), पीक्लाउड (pCloud), कैंटो (Canto) इत्यादि सर्विसेज को गिनाया जा सकता है, जिनका इस्तेमाल लोग धड़ल्ले से कर रहे हैं। ध्यान रखने वाली बात यह है कि जब भी आप कोई सर्विस इस्तेमाल करें, अपनी जरूरत और सर्विस की प्राइस के बीच कंपैरिजन अवश्य कर लें। हालाँकि, गूगल ड्राइव जैसी बहुत सारी फ्री सर्विसेज भी आपको काफी सहूलियतें प्रदान करती हैं और इनकी सिक्यूरिटी, यूजर-एक्सपीरियंस भी लाजवाब रहता है।
- मिथिलेश कुमार सिंह