भारत में पाकिस्तानी कानून की वकालत क्यों कर रहा है ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड?

By नीरज कुमार दुबे | Nov 23, 2021

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भारत में पाकिस्तान के उस कानून को लागू करने की वकालत की है जिसके तहत ईश्वर के बारे में अपमानजनक या आपत्तिजनक बात कहने पर मृत्युदंड मिलता है। समय-समय पर विवादित बातें कहने वाला ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समाज को हमेशा पिछड़ेपन के माहौल में ही ढाले रखना चाहता है इसलिए ऐसे कानून की वकालत कर रहा है जिसकी पूरे विश्व में निंदा होती है। एक ओर तो ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समाज के हितों के लिए आवाज उठाने के दावे करता है तो दूसरी ओर ईशनिंदा कानून की माँग करके अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलना चाहता है। यही नहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का दोहरापन देखिये कि वह अपने समाज के लिए समान अधिकार और सुविधाएं तो चाहता है लेकिन समान नागरिक संहिता लाने के किसी भी प्रस्ताव का विरोध करता है।

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ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की क्या है माँग?


जहाँ तक ईशनिंदा कानून की माँग है तो उसके पक्ष में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तर्क दिया है कि पैगंबर मोहम्मद साहब के प्रति अपमानजनक टिप्पणियां करने वालों के खिलाफ सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की जाती है इसलिए भविष्य में ऐसे लोगों पर प्रभावी कार्रवाई के लिए एक कानून बनाया जाना चाहिए। बोर्ड ने अपनी एक हालिया बैठक में पारित प्रस्ताव में कहा है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान देश में मुसलमानों के खिलाफ नफरत और दुश्मनी पर आधारित दुष्प्रचार किया जा रहा है और मुसलमानों के इतिहास को तोड़मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। प्रस्ताव में कहा गया है कि सोशल मीडिया पर सांप्रदायिकता और भड़काऊ सामग्री पेश करके जहर बोया जा रहा है। बोर्ड ने सरकार से मांग की है कि वह सोशल मीडिया पर हो रही इन हरकतों को रोके और इसके जिम्मेदार अराजक तत्वों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी करे।


क्या है ईशनिंदा कानून?


जहाँ तक यह सवाल है कि क्या है ईशनिंदा कानून तो सबसे पहले यह समझ लीजिये कि ईशनिंदा का अर्थ है ईश्वर की निंदा। वैसे तो सभी देशों में ऐसे कानून हैं जिनमें किसी के धर्म का अपमान करने जैसे अपराधों के मामले में दण्ड का प्रावधान है लेकिन जिन देशों ने अपने आप को किसी खास धर्म पर आधारित देश घोषित किया हुआ है वहां ईश्वर की निंदा करने की सजा मृत्युदंड है। खासकर ऐसे देशों में इस कानून का उपयोग अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करने और बहुसंख्यकों की धार्मिक आस्थाओं की रक्षा करने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए पाकिस्तान की बात करते हैं। जिया-उल-हक के कार्यकाल में पाकिस्तान में लागू किया गया ईशनिंदा कानून दरअसल 1860 में ब्रिटिश शासन की ओर से धर्म से जुड़े अपराधों को रोकने के लिए बनाये गये कानून का ही विस्तारित रूप है। पाकिस्तान पीनल कोड में सेक्शन 295-बी और सी को जोड़कर बनाये गये इस कानून के तहत पाकिस्तान में विशेष रूप से अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किया जाता है। यदि पाकिस्तान में किसी पर ईशनिंदा का आरोप लगा है तो उसे अपना पक्ष रखने के लिए वकील नहीं मिलता, अदालत जाते समय ही उसकी हत्या कर दिये जाने का अंदेशा रहता है, उसके मामले की सुनवाई करते समय जज भी मृत्युदंड से कम सजा सुनाने से डरते हैं। ऐसे आरोपियों को जेल में काल कोठरी में रखा जाता है और तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता है। पाकिस्तान पूरी दुनिया में अव्वल देश है जहां ईशनिंदा के तहत जेलों में वर्षों से बंद लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है और इनमें महिलाओं की भी अच्छी-खासी संख्या है। सवाल उठता है कि क्या ईशनिंदा कानून लागू करने से पाकिस्तान को कोई तरक्की हासिल हुई। जवाब है नहीं। बल्कि इस कानून की वजह से पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरपंथियों की जमात बढ़ गयी है जोकि अपने ही देश के विकास की राह में सबसे बड़ी बाधक है। इसके चलते एक समाज और राष्ट्र, दोनों ही रूप में पाकिस्तान पूरी तरह विफल है।


भारत में ईशनिंदा की तो क्या होगा?


ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की चाहत भले भारत में भी पाकिस्तान जैसा कट्टरपंथ लाने की हो लेकिन उसे जरा उन इस्लामिक देशों पर भी नजर दौड़ानी चाहिए जिन्होंने ऐसे कानून या तो खत्म कर दिये या उन्हें कमजोर कर दिया। जैसे-जैसे समाज शिक्षित होता है वैसे-वैसे इस तरह की घटनाएं नहीं होतीं इसलिए बोर्ड को शिक्षा के प्रसार में अपना सहयोग देना चाहिए। बोर्ड को यह पता होना चाहिए कि पूरी दुनिया में आज अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सबसे ज्यादा मायने रखती है और उसे जहाँ भी दबाने का प्रयास होता है तो उसके दुष्परिणाम ही सामने आते हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को पाकिस्तानी कानून को भारत में लागू करने की वकालत करने से पहले यह भी देखना चाहिए कि भारत का संविधान सभी को स्वतंत्र रूप से विचार अभिव्यक्ति की और धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है। हमारे यहां पहले से ही ऐसे कानून हैं जिनमें किसी अन्य की धार्मिक आस्था को ठेस पहुँचाने पर दण्ड का प्रावधान है।

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धर्म बड़ा या राष्ट्र?


जो लोग धर्म की आड़ में अपने निजी और राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करना चाहते हैं उनसे समाज को सतर्क रहने की जरूरत है। यकीनन धर्म किसी के लिए भी बहुत बड़ी चीज होती है लेकिन हमें ध्यान रखना चाहिए कि सबसे बड़ी चीज हमारे लिये हमारा राष्ट्र है, हमारा संविधान है और जब बात समाज में शांति बनाये रखने की हो, राष्ट्र की प्रगति की हो और संवैधानिक मूल्यों में विश्वास बनाये रखने और उसे मजबूती प्रदान करने की हो तो धर्म को कतई आड़े नहीं आने देना चाहिए।


विवादित बयानों के लिए मशहूर है एआईएमपीएलबी


बहरहाल, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने पहली बार कोई विवादित मांग नहीं की है या भड़काऊ बात नहीं कही है बल्कि उसका तो इतिहास ही इस तरह के बयान देने का रहा है। अभी हाल ही में बोर्ड के प्रवक्ता सज्जाद नोमानी ने अफगानिस्तान पर कब्जा करने के लिए तालिबान को बधाई देते हुए कहा था कि एक निहत्थी कौम ने दुनिया की मजबूत फौजों को शिकस्त दे दी। यही नहीं अयोध्या में श्रीराम मंदिर के भूमि पूजन से पहले बोर्ड के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से विवादित टिप्पणी कर दी गयी थी। लेकिन बोर्ड अपने गिरेबां में झांकने की बजाय सरकार तथा न्यायपालिका को अब सीख दे रहा है कि वे धार्मिक कानूनों और पांडुलिपियों की अपने हिसाब से व्याख्या करने से परहेज करें। यही नहीं बोर्ड एक ओर तो सभी के साथ समान न्याय की माँग कर रहा है तो दूसरी ओर चेतावनी भी दे रहा है कि सरकार समान नागरिक संहिता को किसी भी सूरत में लागू नहीं करे। बोर्ड ने समान नागरिक संहिता को संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ करार दिया है। बोर्ड को चाहिए कि वह सरकार तथा न्यायपालिका पर सवाल उठाने से पहले या बेकार की बातें करने से पहले जरा अपने समाज के लिए अब तक किये कार्यों और उनसे हासिल उपलब्धियों का ब्यौरा जारी करे। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और यहां सभी धर्मों का समान सम्मान किया जाता है। भारत में समाज के बीच विभाजन के प्रयास ना कभी सफल हुए हैं और ना ही होंगे।


-नीरज कुमार दुबे

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