By अभिनय आकाश | Oct 13, 2021
छोटे शहरों को एक-दूसरे से जोड़ने और आम नागरिकों को सस्ती हवाई सेवा मुहैया करवाने वाली योजना ‘उड़ान’ की शुरुआत का अवसर था। एक आम सभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा मैं चाहता हूं कि हवाई चप्पल पहनने वाला गरीब से गरीब व्यक्ति भी हवाई जहाज से यात्रा करता हुआ नजर आए। उड़ान (यूडीएएन) का मतलब है, ‘उड़े देश का आम नागरिक’। इसी मंशा और सोच के साथ भारत के वॉरेन बफे कहे जाने वाले अरबपति राकेश झुनझुनवाला ने एविएशन के सेक्टर में एंट्री ली है। भारतीय शेयर बाजार में एक के बाद एक बंपर धमाके करने के बाद राकेश झुनझुनवाला हवा में भी सेंध मारने की तैयारी कर चुके हैं। राकेश झुनझुनवाला की सपोर्ट वाली नई एयरलाइन कंपनी अकासा को भारत सरकार से एनओसी मिल गई है। अकासा को शुरू करने के पीछे क्या है असली मकसद और बाकी एयरलाइंस से ये कैसे अलग होगी। आज के इस विश्लेषण में इसके बारे में बताएंगे साथ ही बताएंगे अरबपति बिजनेस मैन की कहानी कैसे मंबई का एक सीधा-सादा लड़का बन गया देश का सबसे बड़ा निवेशकर्ता।
राकेश झुनझुनवाला चाहते थे कि भारत में लोगों के लिए अल्ट्रा लो कॉस्ट एयरलाइन शुरू की जा सके। यानी कि यात्रियों को बेहद सस्ते में हवाई सफर की सुविधा मिलेगी। कंपनी अगर अपने मकसद में सफल होती है तो मुमकिन है भारत में अगले कुछ सालों में गरीब से गरीब हर शख्स भी हवाई सफर कर सकेगा। अल्ट्रा लो कॉस्ट अकासा एयरलाइंस को नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने जरूरी नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट जारी कर दिया है। जिसके बाद अब वो डीजीसीए एयर ऑपरेटर परमिट के लिए आवेदन करेगी। एयर लाइन को अगले साल 2022 में उड़ान शुरू करने की उम्मीद है।
कौन हैं राकेश झुनझुनवाला
नरेंद्र मोदी संग एक व्यक्ति की मुड़ी-तुड़ी ढीली-ढाली शर्ट में बेहद कॉन्फिडेंस के साथ खड़े रहने वाली तस्वीर खुद प्रधानमंत्री ने ट्विट किया। पीएम मोदी ने मुलाकात की तस्वीर शेयर करते हुए "One and only Rakesh Jhunjhunwal" कहकर संबोधित किया। दरअसल, ये कोई और नहीं बल्कि 22,300 करोड़ रुपये की संपत्ति के मालिक राकेश झुनझुनवाला ही थे। मुंबई में रहने वाला एक सीधा-सादा लड़का केवल पांच हजार रुपये से भारतीय उद्योग जगत में सबसे सफल निवेशकर्ताओं में अपना नाम शुमार करने वाले राकेश झुनझुनवाला जिन्हें बिग बुल या इंडियन वॉरेट बफे के नाम से जाना जाता है। उनकी पैदाइश मुंबई की ही है और पिता एक इनकम टैक्स ऑफिसर थे। बचपन में राकेश हर वक्त अपने पिता को उनके दोस्तों के साथ स्टॉक मार्केट के बारे में बात करते हुए देखते थे। वहीं से उनके मन में स्टॉक मार्केट को लेकर रुचि पैदा होना शुरु हो जाता है। एक दिन उन्होंने अपने पिता से पूछा कि ये स्टॉक प्राइस हर दिन चढ़ते-उतरते क्यों रहते हैं? उनके पिता ने कहा कि जरा देखना कि आज के अखबार में ग्वालियार रेयान के बारे में कोई खबर छपी है या नहीं। अगर नहीं तो कल ग्वालियर रेयान का प्राइस अप-डाउन होने वाला है। उन्हें ये चीजें काफी रोचक लगी। 1985 में सिर्फ 5 हजार के साथ राकेश झुनझुनवाला की स्टॉक मार्केट में एंट्री होती है। 1986 में पहली बार वो 5 लाख का एक बड़ा प्रॉफिट कमा लेते हैं। अगले कुछ सालों में वो ढेर सारा मुनाफा कमाने में कामयाब होते हैं। 1986 से 1989 के बीच में ही उन्होंने स्टॉक मार्केट में 25-30 लाख रुपये कमा लिए। राकेश झुनझुनवाला के बारे में मीडिया में कहा जाता है कि जिस चीज को भी वो छू देते हैं वो सोना बन जाता है। हारुन इंडिया की हाल में जारी अमीरों की सूची के मुताबिक राकेश झुनझुनवाला और उनके परिवार का नेटवर्थ करीब 22,300 करोड़ रुपये है। उनकी देश की कई कंपनियों में बड़ी हिस्सेदारी है।
अकासा क्या है?
यात्रियों के लिए हवाई सफर सस्ता करने के लिए इन फ्लाइट्स में इंटरटेनमेंट फ्लाइट के दौरान खाने और बिजनेस क्लास सीटिंग जैसी गैर जरूरी सुविधाओं पर खर्चा नहीं किया जाता। अकासा एयरलाइंस में राकेश झुनझुनवाला की हिस्सेदारी 40 फीसदी रह सकती है। यानी उनकी ओर से निवेश करीब 250 करोड़ तक रह सकता है। अकासा एयरलाइंस में अगले चार साल में 70 विमान रखने की योजना है। हर विमान में 180 यात्रियों को ले जाने की क्षमता होगी। झुनझुनवाला ने एयरलाइन चलाने के लिए जेट एयरवेज के पूर्व सीईओ विनय दुबे और इंडिगो के पूर्व अध्यक्ष आदित्य घोष जैसे विमानन उद्योग के दिग्गजों को इसकी जिम्मेदारी दी है। अकासा एयर सभी भारतीयों की उनकी सामाजिक-आर्थिक या सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना सेवा करेगी।
यूएलसीसी मॉडल क्या है?
अल्ट्रा लो कॉस्ट कैरियर्स एयरलाइन बिजनेस मॉडल में कंपनी इंडिगो और स्पाइसजेट जैसी विशिष्ट बजट एयरलाइनों की तुलना में परिचालन लागत को भी कम रखने पर ध्यान केंद्रित करती है। दरअसल, अल्ट्रा लो कॉस्ट एयरलाइन का मतलब है एक ऐसा विमान जिसमें यात्रियों को केवल जरूरी सुविधाएं ही मुहैया होती है। जिसकी वजह से यात्रियों को बेहद सस्ती यात्रा पड़ती है। इससे पहले मई में गोएयर ने भी खुद को GoFirst के रूप में रिब्रांड करने और अपने बिजनस मॉडल को एलसीसी से यूएलसीसी में बदलने की घोषणा की थी। जानकारों का कहना है कि यूरोप और अमेरिकी की तरह भारत में एलसीसी और यूएलसीसी की परिभाषा स्पष्ट नहीं है। उदाहरण के लिए जर्मनी में यूलसीसी कभी भी फ्रैंकफर्ट जैसे बड़े एयरपोर्ट्स पर नहीं जाती हैं। इसके बजाय वे फ्रैंकफर्ट-हान एयरपोर्ट से उड़ान भरती हैं जो 70 किमी दूर है। इससे उनकी लागत में भारी बचत होती है। लेकिन भारत में ऐसा कोई कॉन्सेप्ट नहीं है।
क्या इस क्षेत्र में नए खिलाड़ियों के लिए कोई मामला है?
जेट एयरवेज के 2019 के बंद होने, टाटा समूह में एयर इंडिया के विनिवेश और अन्य मौजूदा एविएशन सेक्टर के प्लेयर्स की कमजोर स्थिति के साथ, एयरलाइन उद्योग इस वक्त डांवाडोल स्थिति का सामना कर रही है। इसके अतिरिक्त, टीकाकरण के तेज अभियान के बाद बाजार सहभागियों को उम्मीद है कि यह क्षेत्र वापस में उड़ान भरेगा। भारत दुनिया का सबसे बड़ा एविएशन बाजार माना जा रहा है। यही वजह है कि झुनझुनवाला एविएशन सेक्टर में आने वाले इस बूम का फायदा उठाना चाहते हैं। झुनझुनवाला ने ‘इंडिया टुडे कॉन्क्लेव 2021’ में कहा कि पहले मैं कहता था कि हमारा समय आएगा, लेकिन अब मैं कह रहा हूं कि हमारा समय पहले ही आ चुका है… अभी और भी बहुत सारी बचत आने वाली हैं… इसलिए, मैं बहुत आशावादी हूं।
कौन-कौन लोग शामिल
भारत के एयरलाइन क्षेत्र का आकार
वर्तमान में, इंटरग्लोब एविएशन लिमिटेड द्वारा संचालित बजट एयरलाइन इंडिगो घरेलू यात्री बाजार में आधे से अधिक बाजार हिस्सेदारी के साथ भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन है, इसके बाद एयर इंडिया, स्पाइसजेट, गोएयर, विस्तारा और एयरएशिया इंडिया हैं। गोएयर, जिसने अपनी आरंभिक सार्वजनिक पेशकश के लिए कागजात दाखिल किए हैं, उसने हाल ही में खुद को गोफर्स्ट में रीब्रांड किया और यूएलसीसी बनने के लिए अपने बिजनेस मॉडल को सुधारने की योजना बनाई है। कोरोना महामारी के कारण देश में फुल सर्विस और लो कॉस्ट कैरिअर्स (एलसीसी) अपना वजूद बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रही हैं। एयर ट्रैवल की मांग कम हो रही है। भारत सरकार की तरफ से कोई प्रत्यक्ष सहायता प्रदान नहीं की गई। उधारदाताओं ने कुल मिलाकर एयरलाइनों के लिए अपने दरवाजे बंद कर दिए हैं, यहां तक कि पुनर्गठन के उद्देश्य से भी; और पट्टेदारों के पास जल्द ही डिफॉल्ट करने वाली एयरलाइनों पर दबाव बनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।
एयर डेक्कन ने की शुरुआत
इससे पहले 2003 में एयर डेक्कन एयरलाइन के रूप में भारत की पहली लो कॉस्ट एयरलाइंस की शुरुआत की गई थी। यर डेक्कन यह भारत की पहली लो कॉस्ट एयरलाइंस थी, जो आम आदमी की एयरलाइन के रूप में लोकप्रिय थी। दूसरी कंपनियों के मुकाबले एयर डेक्कन की हवाई टिकट की कीमतें लगभग आधी थीं। साल 2007 में कंपनी के मालिक कैप्टन गोपीनाथ ने एयर डेक्कन को विजय माल्या की कंपनी किंग फिशर को बेच दिया था। माल्या ने एयर डेक्कन का नया नाम किंगफिशर रेड दिया था। बाद में ये कंपनी 2011 में बंद हो गई।
बहरहाल, ऐसे दौर में जब एविएशन सेक्टर इतना स्ट्रगल कर रहा है और हर चीज में जांच, परख कर निवेश करने वाले राकेश झुनझुनवाला का इस क्षेत्र में निवेश करना कितना सफल होगा। इसका जवाब तो आने वाले वक्त में ही मिलेगा।
-अभिनय आकाश