क्या सरकार लोगों की निजी संपत्ति छीन सकती है, आर्टिकल 39बी क्या कहता है? 22 साल बाद सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

By अभिनय आकाश | Apr 25, 2024

21 अप्रैल को राजस्थान के बांसवाड़ा में जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस की सरकार बनेगी तो हरेक की प्रॉपर्टी का सर्वे किया जाएगा। हमारी बहनों के पास सोना कितना है उसकी जांच की जाएगी और उसका हिसाब लगाया जाएगा। चांदी कितना है, उसकी जांच की जाएगी। संपत्ति को समान रूप से वितरित करने की बात कांग्रेस की तरफ से कही जा रही है। पीएम मोदी ने सवाल करते हुए लोगों से पूछा कि आपकी मेहनत करके कमाई गई संपत्ति क्या सरकार को एंठने का अधिकार है क्या? पहले जब उनकी सरकार थी तो उन्होंने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है। इसका मतलब ये संपत्ति एकट्ठा करके जिनके ज्यादा बच्चे हैं उनको बांटेंगे। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक रैली में लोगों को संबोधित करते हुए कहा था कि हम सत्ता में आते हैं तो पिछड़ों की सही आबादी जानने के लिए एक जाति जनगणना करेंगे। उसके बाद वित्तीय और संस्थागत सर्वेक्षण शुरू होगा। हम भारत की संपत्ति, नौकरियां और अन्य कल्याणकारी योजनाओं को उनकी जनसंख्या के आधार पर वितरित करने का ऐतिहासिक कार्य करेंगे। अगर इसे ऐसे समझें तो देश की संपत्ति को लोगों के बीच समान रूप से वितरित करने का कार्य किया जाएगा। लेकिन सत्ता पक्ष के द्वारा कहा गया कि कांग्रेस कह रही है कि वो लोगों की निजी संपत्ति छीन लेगी और इसे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के 2006 के बयान से जोड़ दिया गया। बाद में कांग्रेस नेता और राजीव, सोनिया के सलाहकार रहे सैम पित्रोदा की तरफ से विरासत टैक्स लगाए जाने की बात कही जाने के बाद संपत्ति देखते ही देखते इस चुनाव में ट्रेंडिंग टॉपिक बन गया। ऐसे में आइए जानते हैं कि क्या राज्य के पास शक्ति है कि वो हमारे संपत्ति को छीन सकता है। संविधान में क्या ऐसा कोई प्रावधान है? सुप्रीम कोर्ट में इसको लेकर क्या चल रहा है। 

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क्या है अनुच्छेद 39बी 

हमारे संविधान के भाग 4 राज्य के नीति निदेशक तत्व यानी डीपीएसपी में अनुच्छेद 39बी समावेशित है। अनुच्छेद 39बी में कहा गया है कि समुदाय के भौतिक संशाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार वितरित किया जाए कि आम भलाई के लिए उसका सर्वोत्तम प्रयोग हो सके। अगर इसे सरल भाषा में समझें तो कहा जा सकता है कि देश के संशाधनों का प्रयोग देशहित में होना चाहिए। आम लोगों के हित में होना चाहिेए। अब इसकी व्याख्या में क्या केवल सार्वजनिक संपत्ति को छीनकर गरीबों में बांटा जा सकता है? या निजी संपत्ति को भी लेकर गरीबों में बांटा जा सकता है। इस मुद्दे पर पेंच फंसा हुआ है। 

1977 का रंगनाथन रेड्डी केस

ये मुद्दा काफी पुराना है। 2002 में सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच को इस मुद्दे को सौंपा जा चुका है। लेकिन अलग अलग समय पर अलग अलग वादों के माध्यस से आर्टिकल 39बी को व्याख्यायित किया गया। सबसे पहले 1977 में रंगनाथन रेड्डी केस में पांच जजों की बेंच ने अनुच्छेद 39बी पर सुनवाई की थी क्या भौतिक संसाधनों में निजी संपत्ति भी शामिल है। चार जजों ने निजी संपत्ति के शामिल होने की बात को खारिज कर दिया। जबकि इसी फैसले में एक अन्य न्यायधीश कृष्ण अय्यर ने कहा कि निजी संपत्ति भी शामिल है। 

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1983 संजीव कोक केस

साल 1983 में इसी मामले में पांच जजों की बेंच फिर से  बैठी। लेकिन पांच जजों की बेंच ने पिछले फैसले से उलट ये मानते हुए कह दिया कि आर्टिकल 39बी में निजी संपत्ति भी शामिल है। यानी आप समरूप से वितरण में ऐसा कर सकते हैं। बाद में 1997 में मफतलाल वाद में कहा गया कि ये मुद्दा काफी पेंचीदा है। इस विषय पर शोध करने का काम सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच को दे दिया जाना चाहिए। 2002 में सात जजों की बेंच ने महाराष्ट्र  के मुद्दे पर आर्टिकल 39बी पर विचार हो रहा था और फिर इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट में इसे 9 जजों की बेंच को रेफर कर दिया गया। 

22 साल बाद अब क्यों इसको लेकर चर्चा हुई तेज

सुप्रीम कोर्ट ने 23 अप्रैल को नौ जजों की पैनल ने संविधान के अनुच्छेद 39बी की व्याख्या के लिए कार्यवाही शुरू कर दी है। इसका उद्देश्य ये स्पष्ट करना है कि क्या राज्य की नीति का ये निदेशक सिद्धांत सरकार को व्यापक सार्वजनिक कल्याण के लिए समुदाय के भौतिक संसाधनों के बहाने निजी स्वामित्व वाली संपत्तियों का प्रबंधन और पुनर्वितरण करने की अनुमति देता है। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से 24 अप्रैल को कहा कि संविधान का उद्देश्य सामाजिक बदलाव की भावना लाना है और यह कहना खतरनाक होगा कि किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति को ‘समुदाय का भौतिक संसाधन’ नहीं माना जा सकता और सार्वजनिक भलाई के लिए राज्य प्राधिकारों द्वारा उस पर कब्जा नहीं किया जा सकता। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-सदस्यीय संविधान पीठ ने ये टिप्पणी की। पीठ में न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल थे। 

मार्क्सवादी दृष्टिकोण का जिक्र

सीजेआई ने कहा कि हमें 1977 के रंगनाथ रेड्डी मामले में अनुच्छेद 39(बी) की जस्टिस कृष्णा अय्यर की मार्क्सवादी समाजवादी व्याख्या तक जाने की जरूरत नहीं है। लेकिन सामुदायिक संसाधनों में निश्चित रूप से वे संसाधन शामिल होंगे जिन पर वर्तमान पीढ़ी भरोसा करती है। सीजेआई ने कहा कि सामुदायिक संपत्ति में प्राकृतिक संसाधन शामिल होंगे।

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