सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे !
तापत्रयविनाशाय श्रीकृष्णाय वयंनुम:॥
प्रभासाक्षी के श्रद्धेय पाठकों ! आइए, भागवत-कथा ज्ञान-गंगा में गोता लगाकर सांसारिक आवा-गमन के चक्कर से मुक्ति पाएँ और अपने इस मानव जीवन को सफल बनाएँ।
मित्रों ! पिछले अंक में हम सबने पढ़ा कि अत्यंत नम्रता पूर्वक बात करने पर भी भगवान ने ब्रह्मा जी से बात नहीं की। अब ब्रह्माजी को लगा कि अपनी प्रशंसा से प्रसन्न नहीं हो रहे हैं तो शायद व्रजवासियों की प्रशंसा से प्रसन्न हो जाएँ क्योंकि भगवान व्रजवासियों से बहुत प्यार करते हैं। ब्रह्माजी व्रजवासियों का गुणगान करने लगे।
गोपियाँ कहती हैं- कन्हैया तनिक ठुमका मार के नाच दे तो तोको ताजो माखन खिलाऊँगी। प्रभु नाचते हैं और कहते हैं लाओ खिलाओ माखन। यह दृश्य देख-देखकर देवता निहाल हो रहे हैं और कहते हैं कि देखो-- विश्वंभर को थोड़े-से छांछ के लिए नाचना पड़ रहा है। शुकदेव जी कहते हैं— परीक्षित ! प्रभु को छांछ नहीं बल्कि व्रजवासियों का प्रेम नचा रहा है। एक गोपी कन्हैया को देखने के बहाने से घर में आई। यशोदा मैया ने पूछ दिया कैसे आई? अब सीधे कह नहीं सकती कि तेरो लाला के दर्शन के लिए आई है। तो बोली— मैया गोबर की जरूरत है, लेने आई हूँ। मैया कहती हैं- अरी बावरी, इसमे पुछनो के है, जितनी मर्जी उतना ले जा। वह तुरंत तिरछी नजर से निहारती गौ शाला चली गई। टोकरी में गोबर भरती गई, कन्हैया भी पहुँच गए क्या ले रही है, कितनों ले रही है। भगवान तो सबकी भावना समझते हैं। जिस उद्देश्य से आई है उसकी पूर्ति के लिए पहुँच गए। गोपी गोबर भरती जा रही है और तिरछी नजर से लाला को निहारती जा रही थी। नजर लाला की तरफ हाथ में गोबर। अब टोकरी उठे नहीं। धीरे से लाला से बोली- अरे ! कन्हैया तनी हाथ लगा दे ना। जादा भारी हो गयो। भगवान बोले वाह हम्ही गोबर दे और हम ही हाथ लगाए। बाह ! हर द हरवाह द बैल हाँके के पैना द। अरे ! कन्हैया तोको माखन दूँगी। अच्छा माखन दोगी। ठीक तब चल। कन्हैया ने हाथ लगाकर गोपी के सिर पर टोकरी चढाय दियो। जब कन्हैया ने अपने कर कमल से उसके सिर पर रखा तो उस गोपी ने जीवन में प्रथम बार प्रभु को अपने इतने निकट से निहारा। उस दिव्य माधुर्य मूर्ति को हृदयंगम कर गोपी इतनी मुग्ध हो गई कि दौड़ी-दौड़ी घर गई और टोकरी पटक कर फिर आ गई। मैया एक बार फिर ले जाऊँ। मैया बोली—अरे ! बावरी ! बार-बार मत पूछ जितनों जरूरत है सब ले जायों। गोबर के बारे में क्या पुछनो है। फिर गोबर भरने लगी। लाला फिर खड़े हो गए, फिर बुलाया। लाला एक बार फिर उठाय दो, कन्हैया बोले— सुन हिसाब पको पको होनों चाहिए, क्या मतलब? मतलब जितनी बार उठाऊंगा उतनी बार माखन का गोला खाऊँगा। गोपी बोली ठीक है बात पक्की। कन्हैया बोले- तो गिनती कैसे होगी? तेरो क्या भरोसा कितनी बार चक्कर लगावे। गोपी बोली एक उपाय है, जितनी बार उठाऊंगी उतनी बार गोबर के टीके लगाऊँगी। बाद में गिनकर उतने माखन के गोले दे दूँगी। कन्हैया बोले ये हिसाब ठीक है। इस तरह वह गोपी अनेकों बार गोबर लेने के बहाने गई। ऐसी अनोखी छटा देखने को कहाँ मिलेगी? गोबर के टीके से कन्हैया का मुखमंडल भर गया। अब जगह नहीं, कहाँ टीका लगाए। कन्हैया दौड़े मैया के पास आए। देखकर मैया बोली- अरे ! तुम्हें गोबर-गनेश किसने बना दियो। पूरो मुंह गोबर से पोत राखो है। चल जल्दी साफ कर। जैसे ही मैया अपने आँचल से मुँह साफ करने चली, हाथ पकड़ लियो। हाथ पकड़ लियो कन्हैया ने। अरे मैया ! सारो हिसाब चौपट हो जाओगों। का मतलब? जितने टीके हैं उतने माखन के गोले मिलेंगे। मैया ज़ोर से हँसी। हे भगवान ! घर में लाखन गैया हैं दूध, घी, माखन के हजारो मटके हैं फिर भी माखन के लालच में गोबर से मुँह पोता लियो है। स्वर्ग से देवता फूलों की वर्षा कर रहे हैं। गोपियाँ आनंद से भर जाती हैं। परमात्मा का जितना सरलीकरण व्रज में हुआ है। उतना कहीं नहीं। इसलिए ब्रह्मा आज व्रजवासियों के भाग्य की सराहना करते हैं।
अहो भाग्यमहो भाग्यम नन्द गोप व्रजौकसाम्
यन्न्मित्रम परमानंदम पूर्णम ब्रह्म सनातन्म॥
ब्रह्मा जी कहते हैं, हे प्रभो, आप भले ही सर्व समर्थ हो, किन्तु इन व्रजवासियों के ऋण से उऋण नहीं हो सकते। भगवान बोले- कैसे? ब्रह्मा जी ने कहा- आप ही बताओ कैसे ऋण उतारोगे? भगवान बोले- मैं अनंत कोटि ब्रह्मांड का नायक हूँ। एक ब्रह्मांड का ऐश्वर्य इनको प्रदान करके उऋण हो जाऊँगा। ब्रहमाजी बोले-
सरकार, जिसके आँगन में ब्रह्माण्डों का अधिनायक बाल नृत्य कर रहा हो, वो व्रजवासी एक ब्रह्मांड के सुख के लिए क्यों भागेंगे ? भगवान बोले— अच्छा तो मैं इन्हें अपना परम धाम इन्हें प्रदान कर दूंगा। भगवान आपने परम धाम किस किसको नहीं दिया। जो आपको विष पिलाने आई थी पूतना उसको भी तो अपने परम धाम में भेज दिया। और वही परम धाम इन व्रजवासियों को देंगे तो फिर विशेषता क्या? भगवान बोले— इनके सभी बंधु-बांधवों का उधार कर दूंगा। ब्रह्मा जी बोले– तब भी आप उऋण नहीं हो सकते। पूतना के खानदान को भी तो आपने तार दिया किसको छोड़ा? भगवान बोले तो तुम ही बताओ मैं क्या करूँ। आपके पास एक ही उपाय है हाथ जोड़कर इनसे प्रार्थना करें- हे व्रजवासी ! अपने ऋण से मुझे उऋण कर दो ये बड़े दयालु हैं, सरल स्वभाव के हैं, तुरंत आपको अपने ऋण से उऋण कर देंगे। इसके सिवाय कोई दूसरा उपाय नहीं है। बोल भक्त वत्सल भगवान की जय--------------
बड़ी अद्भुत प्रार्थना ब्रह्मा ने की लेकिन भगवान ने जब कोई बात ठीक से नहीं की
तब अंत में---
इत्यभिष्टूय भूमानं त्रि: परिक्रम्य पादयो: ।
नत्वाभीष्टम जगत्धाता स्वधाम प्रत्यपद्यत ॥
वो जगत पिता ब्रह्मा ने श्री हरि की तीन बार प्रदक्षिणा कर अपने परम धाम को प्रस्थान किया।
शेष अगले प्रसंग में ..........
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव ----------
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।
- आरएन तिवारी