By नीरज कुमार दुबे | Nov 06, 2024
अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव जीत कर डोनाल्ड ट्रंप ने वो कर दिखाया है जो इससे पहले कोई अमेरिकी नेता नहीं कर सका था। ट्रंप चार साल व्हाइट हाउस से बाहर रहे। तमाम मुकदमे झेले, कोर्टों के चक्कर लगाये, चुनाव प्रचार के दौरान खुद पर गोली झेली। हम आपको याद दिला दें कि चुनाव प्रचार की शुरुआत में जानलेवा हमले में ट्रंप बाल-बाल बचे थे। उस समय गोली उनके कान को छूकर निकल गयी थी लेकिन अमेरिका को महान बनाने का संकल्प लेकर ट्रंप ने लोगों का समर्थन मांगा और उन्हें भरपूर समर्थन मिल भी गया। ट्रंप पिछला चुनाव करीबी मुकाबले में हार गये थे लेकिन इस बार उन्होंने अच्छे अंतर से चुनाव जीत कर साबित कर दिया है कि जनता का विश्वास उनके साथ है। ट्रंप के रहते आतंकवादी और उनके आका अपने बिल से बाहर निकलने का साहस नहीं जुटा पाते थे लेकिन पिछले चार सालों में दुनिया में आतंक बढ़ा और अमेरिका के समक्ष भी तमाम नई चुनौतियां खड़ी हुईं। उम्मीद है कि अब ट्रंप के कड़े रुख के चलते आतंकियों, उनके मददगारों और अमेरिकी जनता से पैसे ऐंठ रहे देशों की मौज-मस्ती खत्म होने होगी।
इस चुनाव की खास बात यह भी रही कि अमेरिका में भी चुनाव सर्वेक्षण विफल साबित हुए हैं। पहले सबने अनुमान लगाया था कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में बहुत कांटे की टक्कर रहने वाली है और इस बार का चुनाव अमेरिकी इतिहास में सबसे करीबी मुकाबले के रूप में देखा जायेगा। लेकिन ट्रंप की निर्णायक जीत ने सारे चुनाव पूर्व अनुमानों को गलत साबित कर दिया है। इसके अलावा, कमला हैरिस को जिस तगड़े चुनाव प्रचार के बावजूद करारी हार झेलनी पड़ी उससे यह अनुमान भी सहज ही लगाया जा सकता है कि यदि ट्रंप के मुकाबले जो बाइडन मैदान में उतरे होते तो उन्हें कितनी तगड़ी हार झेलनी पड़ती।
दुनिया के लिए क्या होंगे ट्रंप की जीत के मायने, अगर इस पर बात करें तो आपको बता दें कि अब मध्य-पूर्व में जारी जंग और यूक्रेन-रूस युद्ध खत्म होने के आसार बढ़ सकते हैं क्योंकि ट्रंप ने जीत के बाद भी कहा है कि वह युद्ध नहीं चाहते। इसके अलावा, विदेश से सभी सामानों के आयात पर 20 प्रतिशत सार्वभौमिक शुल्क लगाने की ट्रंप की योजना है। ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान चेतावनी दी थी कि चीन पर 60 प्रतिशत से लेकर 200 प्रतिशत तक शुल्क लगाया जा सकता है। हालांकि यह इससे ज्यादा भी हो सकता है। इन कदमों से मुद्रास्फीति बढ़ने और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचने की आशंका है। साथ ही ऐसे कदमों से प्रतिशोध, व्यापार युद्ध और वैश्विक अर्थव्यवस्था तहस-नहस होने का भी अंदेशा है।
इसके अलावा, अब यह भी देखना होगा कि मित्र देशों को शत्रु देशों से बचाने की अमेरिकी प्रतिबद्धता का क्या होता है। हम आपको बता दें कि उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) का सदस्य होने के नाते इसके अन्य सदस्यों की मदद के लिए आगे आना अमेरिका का दायित्व है। नाटो के अनुच्छेद पांच के अनुसार यदि कोई देश किसी नाटो सदस्य पर हमला करता है तो वह सभी सदस्यों पर हमला माना जाता है। अमेरिका ने जापान और दक्षिण कोरिया के साथ भी ऐसी ही संधियां कर रखी हैं। अमेरिका के नेतृत्व में नाटो ने रूस से जारी युद्ध में यूक्रेन को सैन्य और आर्थिक सहायता प्रदान की है। इसके विपरीत ट्रंप ने संकेत दिया है कि वह यूक्रेन को दी जा रही मदद रोक देंगे और कीव पर दबाव बनाएंगे कि वह रूस की शर्तों के अनुसार शांति प्रक्रिया अपनाए। ट्रंप बड़े-बड़े संगठनों को ताकत व प्रभाव दिखाने के मंच के रूप में देखने की बजाय खतरे की वजह और बोझ मानते हैं। हम आपको याद दिला दें कि अपने पिछले कार्यकाल में ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से अमेरिका को बाहर कर लिया था।
इस तरह की रिपोर्टें हाल में देखने को मिली हैं कि अमेरिका के कई पूर्व अधिकारियों को संदेह है कि ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल में अमेरिका को नाटो से निकालने की कोशिश करेंगे या समर्थन कम करके नाटो की प्रभावशीलता को कमतर कर देंगे। वहीं एशिया महाद्वीप की बात की जाए तो ट्रंप ने हाल में कहा था कि ताइवान को अमेरिका की ओर से मिल रही सुरक्षा के लिए भुगतान करना चाहिए। ट्रंप की इस टिप्पणी से यह संकेत मिलता है कि ताइवान की रक्षा के प्रति अमेरिकी प्रतिबद्धता कमजोर हो सकती है।
इसके अलावा, इस तरह की रिपोर्टें भी सामने आई हैं कि अमेरिका में आंतरिक व्यवस्था में भी अब बदलाव देखने को मिल सकता है। हम आपको बता दें कि अमेरिका में दक्षिणपंथ की ओर झुकाव रखने वाले एक थिंकटैंक ने ‘प्रोजेक्ट 2025’ तैयार किया है। अगर डोनाल्ड ट्रंप यह प्रोजेक्ट लागू करते हैं तो नौकरशाही में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। इस प्रोजेक्ट के लागू होने पर संविधान के प्रति निष्ठा रखने वाले 50 हजार अधिकारियों को हटाकर उनकी जगह ट्रंप के प्रति वफादार अधिकारियों को नियुक्त किया जा सकता है। बताया जा रहा है कि ट्रंप प्रशासन न्याय, ऊर्जा और शिक्षा विभाग के साथ-साथ एफबीआई और फेडरल रिजर्व जैसी असंख्य संघीय एजेंसियों को भंग कर सकता है और अपने नीतिगत एजेंडे को लागू करने के लिए कार्यकारी शक्तियों का इस्तेमाल कर सकता है।
जहां तक भारत के साथ अमेरिका के संबंधों की बात है तो इसमें किसी बड़े बदलाव की उम्मीद करना बेमानी होगा। ट्रंप के साथ व्यापार और आव्रजन को लेकर बातचीत में कठिनाइयां सामने आ सकती हैं हालांकि कई अन्य मुद्दों पर उनके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ संबंध बहुत अच्छे हैं। इसके अलावा, ट्रंप जानते हैं कि भारत अगले 20-30 वर्षों में किसी समय दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा इसलिए वह इसकी अनदेखी करने का जोखिम नहीं उठाएंगे। ट्रंप की जीत के तत्काल बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बधाई देते हुए ट्वीट करते हुए कहा है कि मेरे मित्र डोनाल्ड ट्रंप को ऐतिहासिक चुनावी जीत पर हार्दिक बधाई। उन्होंने कहा कि जैसा कि आप अपने पिछले कार्यकाल की सफलताओं को आगे बढ़ा रहे हैं, मैं भारत-अमेरिका व्यापक वैश्विक और रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने के लिए हमारे सहयोग को नवीनीकृत करने के लिए तत्पर हूं। प्रधानमंत्री ने बधाई संदेश के साथ ट्रंप और अपनी कुछ तस्वीरें भी साझा की हैं।
बहरहाल, इसमें कोई दो राय नहीं कि अमेरिका ने 1776 में अपनी स्थापना के समय से ही लोकतंत्र के माध्यम से दुनिया को आकर्षित एवं प्रेरित किया है। हालांकि, इस समय लोकतंत्र पर जो खतरा मंडराता दिख रहा था, वैसा खतरा पहले कभी नहीं देखा गया था। चुनाव परिणाम दर्शाते हैं कि कराधान, आव्रजन, गर्भपात, व्यापार, ऊर्जा और पर्यावरण नीति तथा दुनिया में अमेरिका की भूमिका समेत कई मामलों पर अमेरिकी मतदाता बहुत हद तक विभाजित दिखे।
-नीरज कुमार दुबे