मेरठ। उत्तर प्रदेश में खासकर आगरा, अलीगढ़, एटा, मथुरा, फिरोजाबाद, कासगंज, हाथरस, इटावा, मेरठ, गाजियाबाद, सहारनपुर, बुढ़ाना, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, बुलंदशहर इन जिलों में सावन में घेवर का बेहद चलन है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 24 जिलों में सावन शुरू होने से पहले ही हलवाई घेवर बनाने लगते हैं। उत्तर प्रदेश में इस बार सावन में घेवर की मिठास घटी है। कोरोना के चलते 2020 की तरह इस साल घेवर की मांग कमजोर है। उत्तर प्रदेश में वीकेंड लॉकडाउन के कारण मिठाई विक्रेताओं ने कम घेवर बनाने का फैसला लिया है।
विक्रेताओं के अनुसार पांच दिन दुकान खुलेगी ऐसे में घेवर बेचने में मुनाफा 30 फीसद घटा है। कोरोना से कारोबार मंदा है, उस पर घाटा सहने की गुंजाइश नहीं है। इसलिए घेवर का उत्पादन घटा है। समय के साथ घेवर की गुणवत्ता, जायकों और पैकिंग में बड़ा बदलाव आया है। शादी समारोह, बड़ी दावतों में घेवर का स्टॉल लगता है। सावन, हरियाली तीज और रक्षाबंधन में होटल के मेन्यू में घेवर मिलता है। उपहार स्परूप घेवर का प्रचलन है।सावन में बेटी के ससुराल में घेवर भेजा जाता है। मवाना के वेदप्रकाश सिंघल कहते हैं अब कोरोना के कारण शहर, गांव में सिनदारा नहीं बल्कि कैश दे रहे हैं। इसलिए घेवर की मांग घटी है।
मेरठ में थापर नगर के घेवर विक्रेता सुदीप पटनी कहते है कि घेवर तैयार करने में दो दिन लगते हैं। अब दो दिन बनाओ और तीन दिन में खत्म करो इस पर बाजार चल रहा है। सूखा घेवर तो चार से पांच दिनतक भी बेच लेते हैं। तीन दिन में कितना माल खत्म होगा। लागत पूरी लगेगी। जब घेवर बने तो कारीगर कुछ और नहीं बनाता, घेवर के कारीगर भी कम हैं। इसकी पैकिंग का खर्च दूसरी मिठाईयों से 5 फीसद ज्यादा है। लागत ज्यादा और मांग न होने के कारण इस बार घेवर कम बनाएंगे। एक अनुमान के मुताबिक मेरठ में सामान्य दिनों में प्रतिदिन 350 से 400 किलो घेवर की खपत है। जो अब घटकर 300 किलो पर आ चुकी है।मेरठ में 100 साल पुरानी मिठाई शॉप राम चंद्र एंड संस के संचालक तुल्ला हलवाई कहते हैं कि अब सख्ती ज्यादा और डिमांड कम है। कोरोना के बाद से लगातार घाटा हो रहा है। लोग ताजी मिठाई के बजाय बेकरी आयटम, चॉकलेट, फल पसंद कर रहे हैं। मिठाई की मांग 35 फीसद तक गिरी है। खाद्य पदार्थों की बिक्री तय समय में करने का नियम सख्ती से लागू है, 6 घंटे भी ज्यादा हुए तो ग्राहक सामान नहीं लेता। गोकुल स्वीट्स के संचालक श्यामबिहारी कहते हैं मिठाई की लागत बढ़ी है, बिजनेस कम है इसलिए कारोबारी घाटा नहीं उठा सकता। इस बार उतना ही घेवर बनाएंगे, जितनी डिमांड आती है।मवाना में अमन स्वीट्स संचालक सुन्दर कहते हैं कि गांव से शहर तक सावन में कुंतलों से घेवर बिकता था। हम हर साल 60 किलो मैदा का घेवर एक महीने में बेच लेते थे। पिछले साल बाजार बंद रहा, इस बार भी पांच दिन दुकान खोलनी है। इसलिए कम माल बनाएंगे। इस बार अभी तो पूरा घेवर बनाना शुरू भी नहीं किया। हर साल सावन के 10 दिन पहले घेवर से दुकान सज जाती थी। घेवर की मांग पिछले वर्षों के मुकाबले मात्र 20-25 प्रतिशत रह गई है। कारीगरों, स्टाफ के खर्चे भी नही निकल रहे। लाला मटरू ने बताया कि मजबूरी में आधे कारीगरों को हटा दिया गया है।