गरमी ज़्यादा हो तो चुनाव प्रचार के दीवाने नाश्ते पर ही आ जाते हैं। पांच महिलाएं पार्टी पटका डाले आ गई। पत्नी से पूरे जोश, खरोश और होश से मिली मानों मेरी पत्नी को रोज़ मिलती हों। उन्हें अपने गरीबखाने पर बुलाया, हमारे दौलतखाने में फुर्सत से आने का वायदा किया। पत्नी का हाथ पकड़कर साथ चलने के लिए कहा, आप हाउस लेडी हैं प्रचार करने चलिए। जेब खर्च, चलने का खर्च भी पार्टी देगी। टाइम पास के लिए नौकरी की इच्छा है तो ‘डन’ करवा देंगे।
मैंने कहा, अच्छे ऑफर्स एक साथ मुफ्त मिल रहे थे क्यूं नहीं गई। पता नहीं कौन, कैसा टाइप का बंदा जीतेगा, इसलिए किसी को भी ओपनली सपोर्ट न करना ही सुरक्षित है। मैं तो हर बार की तरह, हर उम्मीदवार के समर्थकों के सामने, हाथ पूरे जोड़कर, दो तीन बार झूठी स्माइल के साथ, ‘ज़रूर ज़रूर’ बोल देती हूं, पत्नी बोली। साथ में कोई पड़ोसी हो तो आइए बैठिए, चाय पीजिए भी बोलना पड़ता है। वैसे आजकल कोई आता नहीं लेकिन मुश्किल यह है कि माहौल ठीक मानकर कोई पसर ही जाए तो चाय पिलानी पड़ती है।
एक्टिंग करना सीख गई आप, मैंने कहा। अभिनय युग है जनाब, अधिकांश लोग डर, अविश्वास, स्वार्थ, धोखा, झूठ और उदंडता को छिपाकर निडरता, विशवास, निस्वार्थ, भरोसा, सच, सौम्यता का अभिनय कर रहे हैं। बेचारी जनता चुप रहकर बोल रही है। अगर कोई उसकी भाषा समझे तो वह किसी के साथ नहीं है। अखबार, चैनल, मीडिया और नामचीन हस्तियां समझा चुकी हैं कि गधों को नहीं घोड़ों को घास डालें।
नेता ज़्यादा वोट चाहते हैं मगर उन्होंने ही तो मतदाताओं के उत्साह को मुद्दों की उदासी में गुम कर दिया है। वोटर ने मान लिया है कि स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस की तरह ही वोट दिवस भी एक पेड होलीडे है। उसे किसी ऐसे व्यक्ति के लिए भला क्यूं नष्ट करना जो लाखों खर्च कर करोड़ों कमाना चाहता है। सब कुछ अपने और अपनों के लिए करके उसे इलाके, प्रदेश और देश के लिए बताने वाला है। चुनाव में करोड़पति दिग्गज इसलिए उतरे हैं ताकि ताक़तपति बनने के मौके हथिया लें। चुनाव कोई भी लड़ सकता है लेकिन यह मौक़ा हर किसी को पटाने और बाद में राजनीतिक व्यवसाय करने का होता है।
आज इन सबके दिल से पूछो तो भरपूर दौलत और शोहरत के बावजूद यह सभी, दूसरों से कम अपनी करतूतों से ज्यादा डरे हुए हैं। सब अभिनेता हैं इसलिए काफी कुछ छिपाए हुए हैं। मैंने पूछा, आपको खुश होना चाहिए ज़्यादा महिलाएं चुनाव में भाग्य आज़माना चाहती हैं। क्यों खुश होऊं भला, उनमें से कोई भी हमारे जैसों की रसोई में आकर देखना नहीं चाहेगी कि दाल रोटी जुटाने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं। पत्नी की बातों से लगा वह भी राजनीति में है।
- संतोष उत्सुक