महाराष्ट्र असेंबली के नजीते चौंकानेवाले आए, जिन दलों के जीतने के कयास ज्यादा थे, वो पिछड़ गए और जिन्हें कमतर आक रहे थे, उन्होंने बाजी मैदान मार लिया।पिछड़ने वालों में शरद पवार की पार्टी ‘एनसीपी’ भी है, जो दहाई के आंकड़े को भी पार नहीं कर पाई। इसलिए ये नतीजे उनके लिए तो सबसे ज्यादा अचंभित करने वाले हैं। दरअसल, उन्हें तो सियासत का चाणक्य भी कहा जाता रहा है। उनकी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी कोई कमाल नहीं दिखा पाया। स्वयं उनके पोते रोहित राजेंद्र पवार ने भी जैसे-जैसे जीत हासिल की। रोहत ने कर्जत जामखेड विधानसभा से अपने विरोधी उम्मीदवार से मात्र 1243 मतों से जीते। कहां रह गई कमी, क्या गड़बड़ी की भी हैं संभावनाएं? आदि सवालों को लेकर डॉ. रमेश ठाकुर ने युवा विधायक रोहित पवार से की विस्तृत गुफ्तगू।
प्रश्नः चुनावी नतीजे आपको क्यों लगते हैं उम्मीदों से परे?
बीते लोकसभा चुनाव में जो पार्टी डबल डिजिट में भी नहीं थी जिनका स्ट्राइक रेट मात्र 30-32 फीसदी के आसपास रहा हो, तब सिर्फ 9 सीटें ही जैसे-तैसे जीती हों? मैदान में उतरे 23 उम्मीदवारों में 14 हार गए हों? वो अचानक मौजूदा विधानसभा में 10 प्रतिशत वोट वृद्धि के साथ रिकॉर्ड 132 सीटें जीतती हो? तो अचंभित होना बनता है। महा विकास अघाड़ी की हार को कोई भी नहीं पचा पा रहा है। पूरा चुनाव हमारे पक्ष में था, समूचे प्रदेश में आघाडी की लहर बह रही थी। भावनात्मक और सहानुभूति के रूप में भी। बावजूद विरोधी पार्टियां जीत जाती हैं। ताज्जुब वाली बात ये भी देखिए, कई ऐसे इलाके थे, जहां मौजूदा मुख्यमंत्री की रैलियों को जनता ने करने नहीं दिया, जमकर विरोध किया? उन सीटों के नतीजे भी उनके पक्ष में गए। इन तस्वीरों को देखकर कोई भी गड़बड़ी होने का शक करेगा।
प्रश्नः हारते-हारते तो आप भी बचे, जिस पर आपके चाचा अजीत पवार ने तंज भी कसा है?
मेरी विधानसभा में मुकाबला बहुत टफ था। पूरे प्रदेश की निगाहें थी। ये सच है, चाचा ने कहा है, अगर उनकी सभा कर्जत जामखेड क्षेत्र में होती तो मैं हार सकता था। देखिए, वो मेरे चाचा हैं मैं उनकी बातों को राजनीतिक तौर पर दिल पर नहीं लूंगा। जब उन्होंने ऐसा कहा, मैंने बदले में उनके पैर छूकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। मेरे अपोजिट बीजेपी के सीनियर उम्मीदवार राम शिंदे थे। हुआ ऐसा भी कि जब काउंटिंग के वक्त आखिरी राउंड में कुछ तकनीकी वजहों से मुझे एक बार तो हारते हुए टीवी पर दिखा भी दिया था। मुझे कुल 127676 वोट मिले। जबकि, राम शिंदे को 126433 वोट। ये सच है कि जीत का अंतर ज्यादा नहीं रहा। मेरी विधानसभा में कुल 11 उम्मीदवार थे, जो सभी पॉवरफुल थे। वोटों का डिविजन अच्छे से हुआ था। खैर, अंत में विजय मेरी ही हुई जिसका धन्यवाद आपके जरिए एक बार फिर इलाके की जनता को दूंगा।
प्रश्नः ऐसा क्या हुआ जो प्रदेश की जनता ने आघाडी को नकार कर महायुति को अपनाया?
प्रदेश ने देखा कि कैसे पूरे चुनावी तंत्र को भाजपा ने अपने कब्जे में किया हुआ था। विपक्षी उम्मीदवारों पर सरकारी तंत्र का पहरा था। हमारी जेबों से लेकर बैग्स तक चेक किए गए। उनके नेता सरेआम होटलों में करोड़ों रूपए बांटते पकड़े गए, उनका कुछ नहीं हुआ। ऐसे चुनाव थोड़ी न होते हैं। इससे अच्छा तो चुनावी व्यवस्था को बंद कर देना चाहिए। जैसे रूस में चुनाव होते हैं वैसे ही यहां भी करवा देने चाहिए। तंत्र की बदौलत मौजूदा हुकूमत ने हरियाणा का फार्मूला महाराष्ट्र में भी अपनाया। मुझे तो अब ऐसा प्रतीत होने लगा है कि जहां-जहां डबल इंजन की सरकारें हैं वहां विपक्ष कोई चुनाव नहीं जीत सकता। उनके पास पैसा, पॉवर, सरकारी ताकत व खुराफाती हरकतें भरपूर हैं।
प्रश्नः विपक्षी दलों की तरफ से एक दफे फिर 99 प्रतिशत ईवीएम चार्ज का मुद्दा उठाया गया है?
देखिए, हरियाणा चुनाव के बाद से ये मुद्दा तेजी से उभरा है। हमारी आपत्ती तब भी थी और अब भी? लोकसभा चुनाव में अघाड़ी के समक्ष समूची महायूति ने मात्र 17 सीटें ही जीती थी। इन 4 महीनों में राष्ट्र या प्रदेश में ऐसा क्या हो गया कि जनता का मन इतना परिवर्तित हो गया कि उन्हें भाजपा अच्छी लगने लगी। जबकि, महंगाई, बेरोजगारी, कानून-व्यवस्था से लेकर छात्र-किसानों के मुद्दों में भी केंद्र व राज्य सरकार विफल रही है। हम हार के सभी पहलुओं की समीक्षा में लगे हुए हैं। कुछ दिनों में तथ्य सहित ऐसे तमाम सबूत देश-प्रदेश की जनता के सामने रखेंगे जिससे महायुति को एक्सपोज करेंगे।
बातचीत में जैसा डॉ. रमेश ठाकुर को एनसीपी (शरद) विधायक रोहित पवार ने कहा।