By नीरज कुमार दुबे | Nov 11, 2023
देश हमारा, धर्म हमारा, देवी-देवता हमारे और पर्व-त्योहार हमारे तो पैसा चीन क्यों कमाए? यह सवाल हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि हाल के वर्षों तक भारतीय बाजारों में देखने को मिलता था कि खिलौने से लेकर मोबाइल तक, पर्वों-त्योहारों पर मूर्तियों से लेकर मिट्टी के दीये और अन्य सजावटी सामान तक, डाइपर से लेकर वाइपर तक, टीवी से लेकर कम्यूटर तक... सबकुछ मेड इन चाइना मिला करता था। ऐसे में भारतीय व्यापारियों का माल नहीं बिक पाने से उनको तो नुकसान होता ही था साथ ही भारतीय सामान की मांग नहीं होने के चलते श्रमिकों को भी काम नहीं मिलता था। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को आत्मनिर्भर बनाने का अभियान छेड़ते हुए 'वोकल फॉर लोकल' की जो अपील की वह देखते ही देखते एक बड़ा जन-आंदोलन बन गया। सरकारी समर्थन के चलते स्वरोजगार की राह पर भारतीय इतना आगे बढ़ गये कि ऐसे तमाम उत्पाद भारत में ही बनने लगे जोकि कल तक चीन से आयात किये जाते थे। कम लागत और उच्च गुणवत्ता के चलते भारतीय उत्पाद देसी बाजारों के अलावा अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी छाने लगे गये हैं। भारतीय बाजारों से जिस तेजी से चीनी माल गायब होता जा रहा है उसको देखते हुए कहा जा सकता है कि मोदी ने भारतीय बाजारों से चीन का कब्जा समाप्त करने में सफलता पाई है।
आप चाहे शहरों की बात कर लें या गांवों की, हर जगह यही देखने को मिलेगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'वोकल फॉर लोकल' और 'मेड फॉर ग्लोबल' या 'मेक फॉर वर्ल्ड' जैसी अपीलें सुपरहिट साबित हुई हैं। आज दीपावली पर जिस तरह ऑनलाइन बिक्री मंचों से लेकर बड़े-बड़े मॉलों, सुपरमार्केटों और स्थानीय दुकानों तक पर सिर्फ और सिर्फ मेड इन इंडिया उत्पादों की मांग है उसने मोदी को वोकल फॉर लोकल अभियान के ब्रांड एंबेसडर के रूप में भी स्थापित कर दिया है। यह मोदी के नेतृत्व का ही कमाल है कि उन्होंने भारतीयों में आत्मनिर्भर बनने का ऐसा उत्साह जगा दिया है कि युवाओं में स्टार्टअप खोलने या अपना व्यवसाय खड़ा करने की होड़ लग गयी है। वोकल फॉर लोकल अभियान की सफलता दर्शाती है कि मोदी भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिनका दिया हर नारा लोगों के बीच असर करता है, मोदी भारत के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो हर भारतीय को एक उद्यमी के रूप में देखना चाहते हैं और इसके लिए लोगों को प्रोत्साहित भी करते हैं।
मोदी की अपीलें क्या और कितना असर करती हैं इसका उदाहरण अगर देखें तो प्रधानमंत्री ने रक्षा बंधन से पहले 'मन की बात' कार्यक्रम के जरिये लोगों को वोकल फॉर लोकल मंत्र की याद दिलाई तो बाजार से चीनी राखियां गायब हो गयीं और हर ग्राहक सिर्फ भारतीय राखियां मांग रहा था। नवरात्रि और दीपावली से पहले देश में कारोबार को गति देने के लिए प्रधानमंत्री ने 'मन की बात' में एक बार फिर वोकल फॉर लोकल की याद दिलाई तो चाहे ऑनलाइन सेल हो या स्थानीय बाजारों की महासेल, सभी जगह सिर्फ और सिर्फ भारतीय सामान की ही मांग रही। मोदी चूंकि कुशल संगठनकर्ता भी हैं इसलिए वह अपने हर अभियान से बड़ी संख्या में लोगों को जोड़ना भी जानते हैं। जैसे अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के जरिये उन्होंने पूरी दुनिया को योग से जोड़ दिया। इसी प्रकार वोकल फॉर लोकल अभियान से हर भारतीय को जोड़ने के लिए उन्होंने इस दिवाली पर स्थानीय स्तर पर विनिर्मित उत्पाद खरीदने और उस उत्पाद या उसके निर्माता के साथ एक सेल्फी ‘नमो ऐप’ पर साझा करने का आह्वान किया जोकि सुपरहिट तो रहा ही साथ ही इसने किसी एक अभियान के दौरान सेल्फी लेने का नया रिकॉर्ड भी बना दिया। साथ ही स्थानीय विनिर्माताओं को जो आर्थिक लाभ हुआ सो अलग है।
यही नहीं, प्रधानमंत्री सभी से यह अपील भी करते हैं कि आप जब भी घूमने या तीर्थयात्रा पर जाएं तब स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाए गए उत्पाद जरूर खरीदें। प्रधानमंत्री लोगों से लेन-देन के दौरान यूपीआई डिजिटल भुगतान प्रणाली का अधिक इस्तेमाल करने का आग्रह भी करते हैं क्योंकि एक तो ऑनलाइन भुगतान प्रणाली सरल है, दूसरा इससे हर प्रकार की वित्तीय पारदर्शिता भी बनी रहती है।
बहरहाल, दीपावली पर कारोबारी जगत के रिकॉर्ड बनाते आंकड़ों को देखकर और वोकल फॉर लोकल अभियान को मिले भारी जन समर्थन को देखकर प्रधानमंत्री के आलोचक भी प्रभावित दिख रहे हैं और भले घुमा-फिराकर ही सही, वह भी इसकी अपार सफलता को स्वीकार कर रहे हैं।
-नीरज कुमार दुबे