By डॉ. प्रभात कुमार सिंघल | Apr 08, 2020
पर्यटन के क्षेत्र में दुनिया में अपना विशेष स्थान रखने वाले राजस्थान में बारां जिला पुरातत्व धरोहर की दृष्टि से महत्वपूर्ण जिला है। यहां अनेक धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व के स्थल पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं। जिनकी इतिहास एवं पुरातत्व में रुचि हैं उन्हें अवश्य ही इन स्थलों को देखने का कार्यक्रम बनाना चाहिए। बारां शहर में बूंदी की राजमाता रायकुँवर बाई द्वारा संवत 1537 में बनवाया गया श्री कल्याणराय जी का मंदिर अंचल का श्रद्धा का केन्द्र है। चैमुखा बाजार में स्थित सांवला जी का कलात्मक मंदिर कोटा के महाराव भीमसिंह प्रथम ने संवत 1766 में बनवाया था। डोल तालाब के समीप स्थित प्यारेलाल जी का मंदिर निज मंदिर है। मंदिर में लक्ष्मण जी, चारभुजा जी, राम-जानकी एवं भरत की प्रतिमाएं हैं। यहां रामानंदी सम्प्रदाय के गुदड़ी पंथ की पीठ रही है। भूतेश्वर, रघुनाथजी, सत्यनारायण जी मंदिरों सहित नगर में करीब 200 मंदिर हैं। प्राचीन 17वीं सदी का जोडला जैन मंदिर सहित नगर के पूर्व में स्थित दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र नसिया जी सिद्ध क्षेत्र माना जाता है।
सीताबाड़ी
बारां जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर दूर केलवाड़ा के समीप सीताबाड़ी नामक धार्मिक एवं रमणिक स्थल क्षेत्रीय लोगों की आस्था का विशेष केन्द्र है। यहां माता सीता, सूर्य, लक्ष्मण एवं बाल्मिकी के देवालय बने हैं। यहां बने सूर्य मंदिर एवं सूर्य कुण्ड तथा लक्ष्मण मंदिर एवं लक्ष्मण कुण्ड के प्रति श्रद्धालुओं की विशेष आस्था है, जो इन कुण्डों में स्नान कर दर्शन करते हैं। मान्यता है कि महर्षि बाल्मिकी का यहां आश्रम रहा होगा। माना जाता है कि यहां सीता ने अपना निवर्सन काल व्यतीत किया। मई-जून में प्रतिवर्ष यहां मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में स्थानीय जनजाति सहरिया विशेष रूप से बड़ी संख्या में भाग लेते हैं, जिस कारण इसे सहरियों का कुम्भ भी कहा जाता है। मेले में सहरिया जनजाति की संस्कृति भी देखने को मिलती है। यहां बने जलकुण्डों में श्रद्धालु स्नान कर मृतकों की आत्मा की शांति के लिए पिण्डदान करने की रस्म भी निभाते हैं।
कपिल धारा
नाहरगढ़ ग्राम किशनगंज से कुछ ही दूरी पर स्थित कपिल धारा एक धार्मिक महत्व का प्राकृतिक स्थल है। कार्तिक पूर्णिमा को यहां मेला भरता है। भगवान कपिल के तपोबल से गंगा की धारा उत्पन्न होने के कारण इसे कपिल धारा कहा जाता है। यहां पर्वत पर स्थित गौमुख से कपिल धारा गिरती है। शिवकुण्ड में भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित है। इस कुण्ड में पर्वत के झरने का पानी आता है। दर्शकों को शिव कुण्ड तक लगभग पचास फीट ऊपर चढना पड़ता है। शिव कुण्ड के समीप ही शिव मंदिर है।
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विलास (कन्यादेह)
विलासगढ़ को प्राचीन समय में “कृष्ण विलास” कहा जाता था। यह स्थल भंवरगढ़ से पहली रामपुरिया गांव से करीब चार किलो मीटर दूरी पर है। यह रास्ता पैदल पार करना होता है। कन्यादेह से विलासगढ़ तक आसपास करीब तीन किलोमीटर क्षेत्र मे ध्वस्त पुरातत्व महत्त्व के प्राचीन मंदिरों की श्रृंखला देखी जाती हैं। विलास नदी के बांई ओर स्थित है विलासगढ़। माना जाता है 7वीं-8वीं शताब्दी में विलास नगर वैभवशाली नगर रहा होगा। कन्यादेह के नाम से आज भी स्थल प्रसिद्ध है। यह एक प्राकृतिक एवं रमणिक स्थल है। यहां के मंदिर हिन्दू और जैन धर्म से सम्बंधित हैं। मुख्य स्मारक छीपों की चांदनी, चारखंभा मंदिर, जैन मंदिर तथा प्रतिमाएं हैं। चार कलात्मक खंबों की भव्यता अत्यंत लुभावनी है। यहां एक छोटा सा स्थल संग्रहालय भी बना दिया गया है। इसमें यहां से प्राप्त मूर्तियों एवं कलात्मक प्रस्तर खण्ड रखे गये हैं। यहां के स्मारक केन्द्रीय पुरातत्व विभाग के अधीन संरक्षित कर दिये गये हैं।
भण्डदेवरा (मिनी खजुराहो)
बारां से करीब 40 किलोमीटर दूर किशनगंज तहसील में रामगढ़ की पहाडिय़ों की तलहटी में 10 वीं शताब्दी में मलयवर्मन द्वारा निर्मित भण्डदेवरा मंदिर स्थित है। मेढ़वंशीय शासकों द्वारा 13वीं सदी में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया। मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। किन्नर, देवी-देवता, अप्सराएं, गधर्व, युगल मूर्तियां यहां खूबसूरती से कलात्मक रूप में देखने को मिलती हैं। खजुराहो सदृश्य होने से इस मंदिर को राजस्थान का 'मिनी खजुराहो' कहा जाता है। रामगढ़ की पहाड़ी पर किशनई माता का प्रसिद्ध मंदिर है। यहां तक पहुंचने के लिए झाला जालिम सिंह ने 715 सीढिय़ों का निर्माण कराया था।
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शेरगढ़ किला
बारां से करीब 45 किलोमीटर दूर शेरगढ़ एक प्राचीन स्थल है जिसका पूर्व नाम कोशवर्द्धन था। बरखेड़ी दरवाजे के बांई ओर सीढ़ियों के नीचे एक ताख से शुद्ध संस्कृत में लेख है जिसमें देवदत्त नामक बौद्धमतानुयायी नागवंशी राजा द्वारा एक विहार बनवाने का उल्लेख है तिथि माघ सुदी 6, संवत् 847 वि. (790. ई.) है। शेरगढ़ में लक्ष्मीनारायण के मन्दिर पर विक्रम की 11 वीं शताब्दी के दो शिलालेख हैं, जिनमें एक में धार के परमार राजाओं की वाक्पतिदेव से महाराज उदयादित्य देव तक की वंशावली दी हुई है। किला मध्यकालीन है, इतिहासकारों का मानना है कि 16 वीं शती के मध्य में शेरशाह सूरी ने इसे जीता और अपने नाम पर शेरगढ़ नाम दिया। सबसे बाहर की दीवार और नगर प्राचीर दोनों ही झाला जालिम सिंह की बनवाई हुई हैं। डॉ. मथुरालाल शर्मा लिखते है, ‘‘दुर्ग के मध्य की दीवार शेरशाह की बनवाई हुई मालूम होती है। इसमें एक पत्थर लगा हुआ है जिस पर ग्यारहवीं शताब्दी की लिपि में वाक्यांश है। इससे स्पष्ट होता है कि यह पत्थर अन्य स्थान से उखाड़ कर यहां लगाया गया है, और यह दीवार 11 वीं शताब्दी के बाद बनी हुई है। किले में बारूदघरों और तोपों के अवशेष हैं। एक तोपखाने में सात तोपें रखी जाती थीं। जल संग्रहण के लिए बावड़ियां थी, जिनमें से दो आज भी अच्छी स्थिति में हैं। मुख्य द्वार के पास अस्तबल है। उम्मेदसिंह प्रथम ने इस किले का जीर्णोद्धार करवाया था। पर्यटन विभाग इस स्थल को प्रचारित कर रहा है। यहां एक होटल भी खोला गया है। किले की साइट खूबसूरत होने से यहां फिल्मों की शूटिंग भी होने लगी है।
काकूनी के मंदिर
बारां जिला मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूर छीपाबड़ौद तहसील में सारथल गांव के समीप 10वीं से 12वीं शताब्दी के मध्य परवन नदी के किनारे काकूनी में शैव, वैष्णव एवं जैन मंदिरों के भग्नावशेष पुरातत्व की अमूल्य धरोहर है। यहां सहस्त्रमुखी शिवलिंग एवं 15 फुट ऊंची गणेश प्रतिमा एवं मंदिरों की कारीगरी दर्शनीय है।
सौरसन संरक्षित क्षेत्र
बारां जिले की अन्ता तहसील के अमलसरा गाँव के समीप काले हिरणों एवं चिंकारों को झुण्ड में विचरण करते एवं कुलालें भरते भागते हुये देखना है तो चले आइये सौरसन संरिक्षत क्षेत्र। यह स्थल कोटा-बारां मार्ग पर पलायथा से अमलसरा के रास्ते पर स्थित है। यह क्षेत्र गोडावण के लिए भी जाना जाता है। यहां भेडिया, लोमड़ी, सियार, जंगली सुअर, जंगली खरगोश एवं लंगूर भी पाये जाते हैं। समीप बहने वाली परवन नदी में मगरमच्छ तथा मैदानी भाग में सर्प, गोह आदि रेंगने वाले जीव भी देखे जा सकते हैं। यहां करीब 100 से अधिक प्रकार के स्थानीय और अप्रवासी पक्षी पाये जाते हैं। सारस, जांघिल, तीतर, बतख, बटेर तथा इंडियन कोर्सर स्थानीय पक्षियों सहित रियर्स, यूरोपीयन सारस, तिल्लतौर आदि प्रवासी पक्षी देखे जाते हैं। उपवन संरक्षक (वन्य जीव) से अनुमति प्राप्त कर उसे देखा जा सकता है।
ब्रह्माणी माता का मंदिर
जिले की अन्ता तहसील में सोरसन गांव में स्थित ब्रह्माणी माता के मंदिर का महत्व इस बात से है कि संभवतः पूरे देश में माता का यह पहला ऐसा मंदिर है, जहां देवी की पीठ पूजी जाती है, जिसका श्रृंगार किया जाता है। चारों ओर ऊंचे परकोटे से घिरा यह शैलाश्रय गुफा मंदिर है। यहां प्रतिदिन देवी की पीठ की पूजा-अर्चना की जाती है। विगत 450 वर्षों के अधिक समय से अखण्ड ज्योत प्रज्जवलित है। मंदिर परिसर में प्राचीन शिव मंदिर एवं गौड़ ब्राह्मणों का सती चबूतरा भी बनाया गया है।
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शाहबाद का किला
बारां से करीब 82 किलोमीटर दूर स्थित शाहबाद का किला आज खण्डर होकर अपने वैभवशाली अतीत की कहानी सुनाता है। यह दुर्ग राज्य के ही नहीं भारत के सुदृढ दुर्गों में माना जाता है। प्राकृतिक स्थिति रणथम्भौर के दुर्ग के समान है। बताया जाता है कि चैहान राजा मुघुटमणी राज ने 1521 ई. में इसका निर्माण शुरू करवाया था। ऊँचे पर्वत पर बने दुर्ग के दो तरफ “कुण्ड खो” नामक पानी का चश्मा है जो प्राकृतिक खाई का कार्य करता है। तीसरी ओर एक तालाब है। चौथी ओर पहाड़ी मार्ग दुर्ग तक जाता है। खण्डर होकर भी दुर्ग का परकोटा काफी सुरक्षित स्थित में है। यहां करीब 10 भग्न मंदिर, बारूदखाना, बावड़ी आदि बने हैं। बताते हैं कि किले की बुर्जो पर 18 तोपें रहती थी। ज्ञात होता है जब यहां किला बनाया गया करीब 60 हजार की व्यवस्थित बसावट हो गई थी। शाहबाद का का नाम शेरशाह या ओरंगजेब का दिया माना जाता है। मुगल साक्ष्य से पता चलता है कि यहां का राजा मुगलों का मनसबदार था। चौहान शासक इन्द्रमन के समय राजसी भवन ''बादल महल'' का निर्माण कराया गया। इसके अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं।
जामा मस्जिद
शाहबाद नगर के मध्य स्थित जामा मस्जिद की निर्माण कला देखते ही बनती है। यह राजस्थान की बड़ी मस्जिदों में गिनी जाती है। मस्जिद की 150 फीट ऊँची मीनारें देखते ही बनती हैं। मीनारों के ऊपर आकर्षक छतरियां बनाई गई हैं।
बारां राजस्थान का जिला मुख्यालय है जो प्रमुख नगर कोटा से 70 किलोमीटर दूरी पर है। पश्चिम-मध्य रेलवे मण्डल की कोटा-बीना रेलवे लाइन पर स्थित बारां प्रमुख जंक्शन है। बारां 10 अप्रैल 1991 को नए जिले के रूप में सामने आया। दर्शनीय स्थलों को देखने के लिये बारां से बस एवं टेक्सी की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
डॉ. प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार