Vinoba Bhave Birth Anniversary: महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी कहे जाते थे विनोबा भावे

By अनन्या मिश्रा | Sep 11, 2024

आज ही के दिन यानी की 11 सितंबर को भूदान आंदोलन के प्रणेता, राष्ट्रीय शिक्षक और महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी कहलाने वाले विनोबा भावे का जन्म हुआ था। उनका जीवन ज्ञान, कर्म और भक्ति का अनोखा संगम था। कुछ लोग विनोबा भावे को संसार का आध्यात्मिक गुरु कहते थे। तो वहीं कुछ उनको 'जय जगत' कहकर अभिवादन करते थे। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर आचार्य विनोबा भावे के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

 

जन्म

महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र के गागोदा गांव के एक धर्मपरायण चितपावन ब्राह्मण परिवार में 11 सितंबर 1895 में जन्म हुआ था। शायद ही किसी ने सोचा होगा कि विनोबा भावे के जीवन की दिशा इतनी अधिक बदल जाएगी कि वह सत्य के अनुसंधान के लिए संन्यासी बनते-बनते गांधी जी के सान्निध्य में जाकर अप्रतिम सत्याग्रही बन जाएंगे। विनोबा भावे महात्मा गांधी से प्रभावित होकर सत्य व अहिंसा के प्रयोगों के अभिन्न सहचर हो गए।

इसे भी पढ़ें: Mahadevi Verma Death Anniversary: हिंदी साहित्य की प्रमुख कवियत्री थीं महादेवी वर्मा, जानिए जीवन से जुड़ी कुछ बातें

महात्मा गांधी ने दिया यह नाम

विनोबा भावे के माता-पिता ने उनका नाम विनायक नरहरि भावे रखा था। लेकिन उनकी माता उन्हें विन्या कहती थीं। बताया जाता है कि 25 मार्च 1916 को वह 12वीं की परीक्षा देने मुंबई जा रहे थे। तभी अचानक से उनको संन्यासी बनने की ऐसी साध लगी कि वह सूरत में उतर गए और हिमालय की ओर चल पड़े। लेकिन जब वह काफी पहुंचे तो महात्मा गांधी को काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हो रहे एक जलसे में देखा। यहीं से विनायक की राह बदल गई और वह महात्मा गांधी के होकर रह गए। महात्मा गांधी ने ही उनको विनोबा नाम दिया था।


जब अंग्रेजों द्वारा देश को जबरन दूसरे विश्व युद्ध में धकेला जा रहा था। तो महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ साल 1940 में सत्याग्रह का आह्वन किया। जिसमें विनोबा भावे पहले सत्याग्रही बनें। आम तौर पर उनको विशद अध्ययन, विलक्षण स्मृति और तीन बड़ी देश सेवाओं के लिए जाना जाता है। विनोबा भावे की यह तीन सेवाएं स्वतंत्रता सेनानी, भूदान आंदोलन के सूत्रधार और 'सर्वोदय' व 'स्वराज' के व्याख्याकार के रूप में की।


भाषाओं के प्रति सम्मान

अहिंदी भाषी होने के बावजूद विनोबा कहा कहते थे कि वह सभी भाषाओं का सम्मान करते हैं। लेकिन देश में हिंदी का सम्मान हो, यह उनसे सहन नहीं होता है। वह देवनागरी की भी विश्वलिपि जैसी प्रतिष्ठा चाहते थे। बता दें कि 'भूदान यज्ञ' के दौरान विनोबा भावे दिन में दो बार प्रवचन करते और हर प्रवचन में नयी-नयी बातें कहते थे।


विवादों से रहे दूर

विनोबा भावे किसी भी काम की शुरूआत में देर नहीं करते थे और किसी भी काम को शुरू करने के बाद उसे पूरा करके ही छोड़ते थे। उनका कहना था कि जिसने ज्ञान को आचरण में उतार लिया, उसी ने ईश्वर को मूर्तिमान कर लिया। सिर्फ एक प्रसंग को छोड़कर उन्होंने अपने पूरे जीवन में कभी किसी विवाद का सामना नहीं किया। दरअसल, जब साल 1975 में देश की तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई थी, तो विनोबा भावे ने इसको 'अनुशासन पर्व' बता दिया था।


मृत्यु

विनोबा भावे ने 15 नवंबर 1982 को आखिरी सांस ली। इससे पहले साल 1958 में उनको पहले रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वहीं साल 1983 में विनोबा भावे के मरणोपरान्त उनको 'भारत रत्न' से भी सम्मानित किया गया।

प्रमुख खबरें

Sports Recap 2024: जीता टी20 वर्ल्ड कप का खिताब, लेकिन झेलनी पड़ी इन टीमों से हार

यहां आने में 4 घंटे लगते हैं, लेकिन किसी प्रधानमंत्री को यहां आने में 4 दशक लग गए, कुवैत में प्रवासी भारतीयों से बोले पीएम मोदी

चुनाव नियमों में सरकार ने किया बदलाव, इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के सार्वजनिक निरीक्षण पर प्रतिबंध

BSNL ने OTTplay के साथ की साझेदारी, अब मुफ्त में मिलेंगे 300 से ज्यादा टीवी चैनल्स