By अनन्या मिश्रा | Aug 18, 2023
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में नेहरु परिवार पर गांधी जी का काफी प्रभाव देखने को मिलता है। इनमें से एक प्रमुख नाम जवाहर लाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित का था। वह एक स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर जानी जाती थीं। आज ही के दिन यानी की 18 अगस्त को विजयलक्ष्मी पंडित का जन्म हुआ था। आजादी की लड़ाई में विजयलक्ष्मी पंडित कई बार जेल भी गईं। उन्होंने आजादी के बाद अंतरराष्ट्रीय मंचों पर संयुक्त राष्ट्र और दुनिया के कई देशों में अपने देश का प्रतिनिधित्व किया था।
आजादी के बाद उन्होंने भारतीय महिला शक्ति को एक नई पहचान देने का काम किया था। वहीं कई देशों की राजदूत व कुछ राज्यों की राजपाल होने के बाद भी विजयलक्ष्मी पंडित ने आपातकाल के दौरान अपनी भतीजी इंदिरा गांधी का विरोध किया था। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सिरी के मौके पर विजयलक्ष्मी पंडित के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म और शिक्षा
इलाहाबाद में 18 अगस्त 1900 में स्वरूप कुमारी का जन्म हुआ था। वह प्रसिद्ध वकील मोतीलाल नेहरू की दूसरी संतान और जवाहर लाल नेहरु की छोटी थीं। उनका शुरूआती जीवन एक राजकुमारी की तरह बीता था। उन्होंने अपने घर पर शुरूआती शिक्षा हासिल की। शिक्षा के अलावा उनका साहित्य, राजनीति व घुड़सवारी में उनकी खासी रुचि थी।
विवाह
स्वरूप कुमारी का विवाह फेमस वकील सीताराम पंडित से हुआ था। शादी के बाद स्वरूप कुमारी ने अपना नाम विजयलक्ष्मी पंडित रख लिया था। वह गांधी जी से काफी प्रभावित थीं। गांधी जी से प्रभावित होने के बाद उन्होंने राजनीति का रुख किया। देश में आजादी की लड़ाई के दौरान वह 1932-33, 1940 और 1942-43 में जेल गईं। विजयलक्ष्मी के पति भी आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेते रहे। साल 1944 में जेल में उनके पति का निधन हो गया था।
आजादी से पहले प्रभाव
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ही विजयलक्ष्मी का राजनैतिक प्रभाव दिखने लगा था। आजादी से पहले विजयलक्ष्मी कैबिनेट मंत्री बनने वाली पहली भारतीय महिला थीं। साल 1937 में हुए संयुक्त प्रांत के चुनावों में उन्होंने जीत हासिल की और स्थानीय स्वशासन और लोकस्वास्थ्य मंत्री बनीं। इसके बाद साल 1946 से लेकर 1947 तक उन्होंने लोक स्वास्थ्य मंत्री के पद की जिम्मेदारियां निभाईं।
विदेशों में बनीं भारतीय राजनयिक
विजयलक्ष्मी पंडित संविधान सभा की सदस्य के रूप में हुई थीं। वहीं देश की आजादी के बाद कूटनीतिक सेवाओं के पदों पर रहीं। बता दें कि आजादी के तीन साल पहले तक वह सोवियत संघ, साल 1951 में अमेरिका और मैक्सिको, साल 1955 से 1961 के बीच आयरलैंड, यूनाइडेट किंगडम और साल 1958 से 1961 तक स्पेन आदि देशों में भारतीय राजदूत बनकर रहीं।
राजनीति से संन्यास और फिर आपातकाल
60 के दशक में जब विजयलक्ष्मी भारत लौटी तो वह राजनीति में सक्रिय हो गईं। साल 1962 से 1964 तक वह महाराष्ट्र की राज्यपाल रहीं। इसके बाद साल 1968 में वह फूलपुर से लोकसभा सदस्य चुनी गईं। हालांकि इसके बाद उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया और देहरादून में रहने लगीं। लेकिन जब साल 1975 में उनकी भतीजी और देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की तो उन्होंने इसका विरोध किया। जिसके कारण आपातकाल के दौरान विजयलक्ष्मी पंडित पर खासी नजर रखी गई और उनके फोन टैप किए गए। वहीं उनसे मिलने वालों में भी कमी आ गई थी।
मौत
आपातकाल को दौरान विजयलक्ष्मी पंडित खुलकर इंदिरा गांधी के विरोध में आईं। उन्होंने कांग्रेस का साथ छोड़ जनता पार्टी को अपना समर्थन देना शुरू कर दिया। साथ ही वह राजनीति में फिर से सक्रिय हो गईं। इसके बाद उन्होंने 1977 में राष्ट्रपति चुनाव भी लड़ा। लेकिन नीलम संजीव रेड्डी के सामने उनको हार का सामना करना पड़ा। जिसके बाद उन्होंने फिर से राजनीति से दूरी बना ली। देहरादून में वह खाली समय में लेखन का कार्य करने लगी। वहीं 1 दिसंबर 1990 में विजयलक्ष्मी पंडित का निधन हो गया।