By नीरज कुमार दुबे | Dec 13, 2023
कृतज्ञ राष्ट्र ने आज संसद हमले के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की और आतंकवाद को कतई बर्दाश्त नहीं करने की नीति पर चलते रहने का प्रण भी लिया। संसद हमले की 22वीं बरसी पर संसद परिसर में आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और अन्य नेताओं ने शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी और अन्य नेताओं ने भी हमले में अपने प्राणों का बलिदान देने वाले जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित की।
इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के साथ शहीदों के परिजनों से मुलाकात की। इससे पहले, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद हमले के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उनका साहस और बलिदान देश की स्मृति में हमेशा अंकित रहेगा। मोदी ने 'एक्स' पर लिखा, ‘‘आज, हम 2001 में संसद हमले में शहीद हुए बहादुर सुरक्षाकर्मियों को याद करते हैं और उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि देते हैं। खतरे का सामना करते हुए उनका साहस और बलिदान हमेशा हमारे देश की स्मृति में अंकित रहेगा।’’ प्रधानमंत्री ने संसद हमले की वर्षगांठ पर संसद भवन में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में हिस्सा लेने के बाद इस कार्यक्रम से जुड़ी तस्वीरें भी साझा कीं।
उधर, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा है कि 2001 में संसद पर हुए आतंकवादी हमले में अपनी जान गंवाने वाले वीर सुरक्षा कर्मियों का राष्ट्र हमेशा ऋणी रहेगा। मुर्मू ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा, ‘‘बहादुर सुरक्षाकर्मियों ने 22 साल पहले आज ही के दिन देश के शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व को खत्म करने और हमारे लोकतंत्र के मंदिर को नुकसान पहुंचाने की आतंकवादियों की नापाक साजिश को नाकाम कर दिया था। इन बहादुर जवानों में मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले नौ लोग भी शामिल थे।’’ उन्होंने कहा कि राष्ट्र सदैव उनका ऋणी रहेगा। राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘उनके बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने दिया जाएगा क्योंकि हम हर जगह मानव जाति के लिए खतरा बन चुके आतंकवाद के सभी रूपों को खत्म करने की अपनी प्रतिज्ञा आज दोहराते हैं।''
जहां तक भारत के लोकतंत्र पर हुए हमले की बात है तो आपको बता दें कि 13 दिसंबर 2001 को लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों ने संसद पर हमला किया था। इस हमले में आतंकवादियों का मुकाबला करते हुए दिल्ली पुलिस के पांच जवान, केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल की एक महिला कर्मी और संसद के दो कर्मी शहीद हुए थे। एक कर्मचारी और एक कैमरामैन की भी हमले में मौत हो गई थी।
देखा जाये तो भारत ने सीमापार से आतंकवाद का एक बुरा दौर झेला है। ये वो दौर था जब सीमापार से आतंकी बेधड़क घुस कर भारत में आतंकी वारदातों को अंजाम दे दिया करते थे लेकिन समय ने करवट बदली और आज भारत हमलावरों को उनके घर में घुसकर मारता है। लेकिन अतीत की कुछ ऐसी यादें हैं जिनके जख्म सदा हरे रहेंगे। हम आपको याद दिला दें कि 13 दिसंबर 2001 की सुबह आतंक का काला साया देश के लोकतंत्र की दहलीज तक आ पहुंचा था। देश की राजधानी के बेहद महफूज माने जाने वाले इलाके में शान से खड़े संसद भवन में घुसने के लिए आतंकवादियों ने सफेद रंग की एम्बेसडर का इस्तेमाल किया था और सुरक्षाकर्मियों की आंखों में धूल झोंकने में कामयाब रहे थे, लेकिन उनके कदम लोकतंत्र के मंदिर को अपवित्र कर पाते उससे पहले ही सुरक्षा बलों ने उन्हें ढेर कर दिया। बाद में संसद हमले के साजिशकर्ताओं को भी न्याय के कठघरे में लाया गया और अफजल गुरु को 9 फरवरी 2013 को फांसी पर लटका दिया गया था।
हम आपको याद दिला दें कि उस दिन संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था, जब आतंकी घुसे उस समय दोनों सदनों की कार्यवाही 40 मिनट के लिए स्थगित चल रही थी। कार्यवाही स्थगित होने के चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्ष की तत्कालीन नेता सोनिया गांधी अपने अपने सरकारी निवास पर चले गये थे। उस समय तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी अपने कई साथी मंत्रियों और लगभग 200 सांसदों के साथ लोकसभा में ही मौजूद थे। अचानक से एक सफेद एंबेस्डर कार संसद परिसर में घुसी और तेजी से आगे बढ़ने लगी, सुरक्षाकर्मी उसे रोकने के लिए दौड़े। अचानक ही गाड़ी में बैठे पांच फिदायीन बाहर निकलते हैं और अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर देते हैं। पांचों आतंकवादी एके-47 से लैस थे और पांचों के पीठ और कंधे पर बैग थे। गोलियों की आवाज से दहशत फैल चुकी थी। संसद भवन के अंदर चारों तरफ अफरा-तफरी का माहौल था, जिसे जिधर कोना दिखाई दे रहा था वो उधर भाग रहा था। लालकृष्ण आडवाणी और रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज समेत तमाम वरिष्ठ मंत्रियों को फौरन सुरक्षित जगहों पर ले जाया गया। इसके बाद सुरक्षाकर्मियों ने सदन के अंदर जाने वाले तमाम दरवाजे बंद कर दिये और अपनी अपनी पोजीशन ले ली। एक आतंकवादी ने गोली लगते ही खुद को उड़ा दिया, बाकी आतंकी बीच-बीच में सुरक्षाकर्मियों पर हथगोले भी फेंक रहे थे। सारे आतंकवादी चारों तरफ से घिर चुके थे और आखिरकार कुछ देर बाद एक-एक कर सभी ढेर कर दिये गये।
बहरहाल, देखा जाये तो संसद परिसर में घुसे पांच आतंकवादियों ने 45 मिनट में लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर माने जाने वाले संसद परिसर के भीतर गोलीबारी कर पूरे हिंदुस्तान को झकझोर दिया था। संसद हमले के बाद से संसद की सुरक्षा को अभेद्य तो बना दिया गया है लेकिन 13 दिसंबर 2001 का दिन एक जख्म की तरह है जो आज तक नहीं भरा है।