वाराणसी का महाश्मशान : 'मणिकर्णिका' जहां जलती चिताओं के बीच होता है नृत्य

By सूर्या मिश्रा | Nov 22, 2022

वैसे तो बनारस के सभी 84 गंगा घाट अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है। सबका अपना एक अलग ही इतिहास है अलग ही महत्ता है सभी की अपनी विशेषतायें है। किसी घाट की सुबह प्रसिद्व है तो किसी की शाम, किसी गंगा घाट की आरती लोगो को भाती है तो किसी गंगा घाट का स्नान लोगो आनंददायी लगता है। कुछ घाट ऐसे है जहां केवल दाह संस्कार किये जाते है। उन्ही घाटों में से एक है 'मणिकर्णिका घाट


शिव का वरदान है यह घाट 

इस घाट को अंतिम संस्कार के लिए बहुत ही पवित्र माना  जाता है। यहां चिता की आग हमेशा जलती रहती है अर्थात यहां हर समय किसी ना किसी का अंतिम संस्कार हो रहा होता है। कहते है भगवान शिव ने इस घाट को वरदान दिया है कि इस घाट पर जिनका अंतिम संस्कार होगा उन्हें असीम अनंत शांति की प्राप्ति होगी।

 

मणिकर्णिका नाम कैसे पड़ा 

इस घाट के नाम के पीछे भी एक पौराणिक कथा प्रचलित है कहते है एक बार माँ पार्वती ने भगवान शिव से काशी भ्रमण की इच्छा व्यक्त की काशी भ्रमण के दौरान शिव जी ने स्नान के लिए एक कुंड खोदा, उस कुंड में स्नान के समय पार्वती जी के कान की बाली का एक मणि टूट कर गिर गया तभी से इस कुंड का नाम मणिकर्णिका पड़ गया। 

 

स्नान वर्जित है इस घाट पर 

गंगा के सभी घाटों में स्नान किया जा सकता है लेकिन मणिकर्णिका में स्नान वर्जित है। लेकिन कार्तिक मास की बैकुण्ठ चतुर्दशी को यहाँ स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। मणिकर्णिका घाट पर वैशाख स्नान करने से भी मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

महाश्मशान है यह घाट 

हिन्दू धर्म में शाम के समय अंतिम संस्कार नहीं किये जाते किन्तु मणिकर्णिका घाट की विशेषता है कि यहां 24 घंटे अंतिम संस्कार होते रहते है।इसीलिए महाश्मशान भी कहते है। आमेर के राजा सवाई मान  सिंह ने इस घाट का निर्माण 1585 में कराया था। तभी से यहां रोज़ 200 -300 तक अंतिम संस्कार होते है। कहते है कि भगवान विष्णु ने भी इसी घाट पर भगवान् शिव की आराधना की थी और वरदान माँगा कि काशी को कभी भी नष्ट नहीं किया जाये। सृष्टि के विनाश के समय भी काशी अविनाशी रहे।

इसे भी पढ़ें: भारत में स्थित हैं यह प्रसिद्ध शनि मंदिर, दूर-दूर से दर्शन करने आते हैं लोग

माता सती का हुआ था अंतिम संस्कार 

इस घाट की एक और मान्यता है माता सती का अंतिम संस्कार भी इसी घाट पर भगवान शिव द्वारा किया गया था इसीलिए इसे महाश्मशान भी कहते है।


जलती चिताओं के बीच करते है नृत्य 

जीवन की इस नश्वरता का इस श्मशान में त्यौहार भी मनाया जाता है। साल में एक बार जलती चिताओं के बीच महोत्सव भी मनाया जाता है। काशी की सभी नगरवधुएं इसमें हिस्सा लेती है और नृत्य करती है। ऐसा करके वो भगवान नटराज को साक्षी मानकर यह कामना करती है की अगले जन्म में उन्हें नगरवधू बनने का कलंक न झेलना पड़े। यह परम्परा अकबर काल में राजा सवाई मान सिंह के से समय से शुरू होकर अब तक चली आ रही है। 


चिता की राख से होली 

इस घाट पर फाल्गुन एकादशी को चिता की राख से होली खेलने की परम्परा है। मान्यता है की इसी दिन भगवान शिव ने माता पार्वती का गौना कराया था।प्रतीकात्मक रूप से जब माता पार्वती की डोली यहां से गुजरती है तो उनका स्वागत नाच गाने और रंगो से किया जाता है और चिता की राख से होली खेली जाती है। इस दिन यहां सभी अघोरी जमा होते है। 

प्रमुख खबरें

Delhi की हालत देख परेशान हुए उपराज्यपाल, Arvind Kejriwal ने दिया आश्वासन, कहा- कमियों को दूर करेंगे

PM Modi को Kuwait के सर्वोच्च सम्मान द ऑर्डर ऑफ मुबारक अल कबीर से किया गया सम्मानित

PM Narendra Modi के कुवैत दौरे पर गायक मुबारक अल रशेद ने गाया सारे जहां से अच्छा

Christmas Decoration Hacks: क्रिसमस सजावट के लिए शानदार DIY हैक