काश ! काशी को समझना भी उतना ही आसान होता जितना उस पर राजनीति करना

By नेहा मेहता | Nov 18, 2019

134 साल पुराने अयोध्या मंदिर-मस्जिद विवाद पर अब सुप्रीम कोर्ट ने तो अपना फैसला सुना दिया और साथ ही चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने भी सर्वसम्मति से यह फैसला दे दिया कि अयोध्या की 2.77 एकड़ की पूरी विवादित जमीन राम मंदिर के निर्माण के लिए दे दी जाये। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बहुत स्पष्ट रूप से यह कह दिया कि ढहाया गया ढांचा ही भगवान राम का जन्मस्थान है और हिंदुओं की यह आस्था निर्विवादित है। लेकिन अब अयोध्या के बाद हिन्दुओं की आस्था के कई और स्थल भी सुप्रीम कोर्ट से ऐसे ही सकारात्मक फैसले की उम्मीद लगाये बैठे हैं। 

 

श्रीराम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद दबे स्वर में कहीं न कहीं यह आवाज़ उठने लगी है कि क्या अब अगली बारी काशी और मथुरा की होगी? यह सवाल लोगों के ज़हन में आने लगा है कि क्या इसके बाद वाराणसी और मथुरा की विवादित मस्जिदों को लेकर भी आंदोलन शुरू होंगे?

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इस समय इन सवालों के जवाब देना तो शायद उचित न हो लेकिन आज हम आपके लिए इतिहास के उन पन्नों को पलटेंगे जिनसे आपको महादेव की पावन नगरी काशी के बारे में बहुत कुछ नया जानने को मिलेगा। 


क्या है काशी में ख़ास?

वैसे तो काशी, बाबा भोलेनाथ का ऐसा दिव्य लोक है जिसे किसी भी परिचय की ज़रूरत नहीं है। यह उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित पौराणिक नगरी है जिसे संसार के सबसे पुराने नगरों में गिना जाता है। यह प्राचीन नगरी गंगा के वाम (उत्तर) तट पर वरुणा और असी नदियों के बीच बसी हुई है जिस कारण से इसे वाराणसी भी कहा जाता है।

 

काशी में वर्तमान समय में लगभग 1500 मंदिर हैं, जिनमें से काशी विश्वनाथ, संकटमोचन और माँ दुर्गा के मंदिर भारत भर में प्रसिद्ध हैं।

 

भगवान विश्वनाथ के मूल मंदिर की परंपरा इतिहास के अज्ञात युगों तक चली गई है जबकि वर्तमान मंदिर अधिक प्राचीन नहीं है। वहीं पवनपुत्र के संकटमोचन मंदिर की स्थापना गोस्वामी तुलसीदास ने की थी और माँ दुर्गा के मंदिर को 17वीं सदी में मराठों ने बनवाया था। अगर काशी के घाटों की बात करें तो गंगा के तट पर भी अनेक मंदिर बने हुए हैं जिनमें से सबसे प्राचीनतम मंदिर गहड़वालों का बनवाया राजघाट का 'आदिकेशव' मंदिर है।

 

अगर बात करें काशी के बाबा विश्वनाथ मंदिर की तो यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है और हिन्दुओं का एक विशिष्ट धर्म स्थल है। हिन्दू मान्यता के अनुसार ऐसा भी कहा जाता है कि जो एक बार इस मंदिर के दर्शन कर पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेता है उसे मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है। इस नगरी में सभी देवी देवताओं के अभ्रंश रूपों के मंदिर होने के कारण ऐसा भी कहा जाता है कि जो लोग शारीरिक और आर्थिक रूप से असमर्थ हैं वह अगर इस मंदिर के दर्शन कर लें तो उन्हें चार धाम यात्रा करने की ज़रूरत नहीं है। 

 

कैसे बसी काशी नगरी?

लोक कथा के अनुसार भगवान शंकर से विवाहोपरांत जब माँ पार्वती अपने मायके गयीं तो उनकी सहेलियों ने उन्हें भोलेनाथ से विवाह करने के उनके निर्णय को लेकर बहुत खरी खोटी सुनाई। उन्होंने यह भी कहा कि विवाह के बाद भी तुम तो अपने पिता के घर ही रहती हो क्योंकि कैलाश जहाँ भगवान शंकर वास करते है, वह भी हिमालय का ही हिस्सा है। ऐसा सुनकर माँ पार्वती कुछ नहीं बोलीं लेकिन जब वह कैलाश वापस आयीं तब उन्होंने भोलेनाथ से कहा कि अब उन्हें अपना स्वयं का घर ढूंढ़ लेना चाहिए। 

 

इस बात को सुन पहले तो भोलेनाथ परेशान हो गए लेकिन जब नारद जी ने उन्हें इसका हल ढूंढ़ने का आश्वासन दिया तब उनकी परेशानी कुछ कम हुई। नारद जी और बाकी सभी देवी देवताओं ने मिलकर भू-खण्ड पर यह आलौकिक स्थान ढूंढ़ा जहाँ भोलेनाथ ने अपनी दिव्य नगरी बसायी और जिसे आज काशी के नाम से जाना जाता है। काशी की इस नगरी को दो भागों में बंटा गया है, पहला है विश्वेश्वर खण्ड जिसका संचालन भैरव जी करते हैं और दूसरा है केदार खण्ड जहाँ माँ गौरी की विशेष कृपा बसती है। 

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ऐसा कहा जाता है कि भगवान शंकर के काशी आने से पहले माँ पार्वती ने उनके समक्ष दो शर्तें रखीं थीं। पहली यह कि आप कभी भी इस भू-लोक को छोड़कर नहीं जाएंगे और दूसरी कि जो भी काशी में आएगा आप उसको मुक्ति अवश्य देंगे। इसी कारण कहते हैं कि जो भी अन्त समय में काशी आता है प्रभु उसे जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त कर देते हैं। 


काशी का इतिहास

यह तो थी इस मंदिर के इतिहास से जुड़ी लोक कथा जिसका शास्त्रों में भी वर्णन है। इसके अलावा हमारे इतिहासकार ऐसा बताते हैं कि ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने सबसे पहले भगवान विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और उसके बाद सम्राट विक्रमादित्य ने भी एक बार फिर उसी मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। इतिहासकारों के अनुसार इसी भगवान शंकर के भव्य मंदिर को सन् 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था। इसे फिर से बनवाया गया, लेकिन एक बार फिर इसे सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया। 

 

इतिहास में यह वर्णन आता है कि पुन: सन् 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से पं. नारायण भट्ट द्वारा इसी स्थान पर एक बार फिर से भोलेनाथ के भव्य मंदिर का निर्माण किया गया परंतु सन् 1632 में शाहजहां ने इसे तोड़ने का आदेश दे दिया। शाहजहां की सेना हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण भगवान विश्वनाथ मंदिर के केंद्रीय मंदिर को तो नहीं तोड़ सकी, लेकिन उसने काशी के 63 अन्य मंदिर तोड़ दिए।

 

इसके बाद टोडरमल ने मंदिर का पुनर्निर्माण 1585 में करवाया और एक बार फिर 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। औरंगजेब के आदेश का पालन करते हुए इस मंदिर को तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया। 

 

सन् 1752 से लेकर सन् 1780 के बीच मराठा सरदार दत्ताजी सिंधिया व मल्हारराव होल्कर इस ने मंदिर को मुक्त कराने के अथक प्रयास किए। उसके बाद सन् 1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा इस वर्तमान मंदिर का निर्माण करवाया गया।

 

...तो इस तरह हमने आपको काशी के बारे में बता तो दिया लेकिन काशी की कहानी सिर्फ इतनी नहीं है। इस आलौकिक नगरी के चप्पे-चप्पे में बहुत कुछ बसा और छिपा हुआ है। दुनिया के सबसे पुराने शहरों में से एक काशी के पास अपने भक्तों को देने के लिए बहुत कुछ नया भी है। तो आप कब जा रहे हैं काशी की दिव्यता का अनुभव करने?

 

नोट: इस आलेख के कई हिस्सों का वर्णन राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित और सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के वैदिक अध्ययन विभाग के प्रमुख प्रो. वाई. के. मिश्रा जी ने किया है। प्रोफेसर वाई. के. मिश्रा जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर के पूर्व कुलपति भी हैं।

 

- नेहा मेहता

 

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