सैलानियों का हब बन रहा है उत्तर प्रदेश

By उमेश चतुर्वेदी | Jul 01, 2024

देश का दिल है उत्तर प्रदेश। भगवान राम और कान्हा की जन्मस्थली इसी प्रदेश में हैं। बाबा भोलेनाथ की नगरी, तीन लोकों में न्यारी काशी नगरी भी इसी प्रदेश में है। नाथ संप्रदाय के प्रमुख गुरू गोरखनाथ की नगरी भी इसी प्रदेश में है। अट्ठासी हजार ऋषियों ने जिस नैमिषारण्य में बैठकर देवताओं में श्रेष्ठ कौन है, जैसे महत्वपूर्ण प्रश्न पर विचार किया था, वह तीर्थस्थल भी इसी प्रदेश में है। और तो और, तीर्थों का तीर्थ प्रयागराज भी उत्तर प्रदेश में ही है। भगवान बुद्ध ने जिस सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था, वह भी यहीं है। जिस कुशीनगर में उन्होंने निर्वाण लिया, वह भी यहीं है। तीर्थ स्थलों की जहां भरमार हो, वहां सैलानी और तीर्थयात्री ना आएं, तो अचम्भा ही माना जाएगा। ऐसा अचम्भा यहां होता रहा है। लेकिन सात साल के योगी शासन में यहां की स्थिति ऐसी बदली कि अब यहां तीर्थयात्रियों की भरमार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वजह से वाराणसी में विकसित काशी विश्वनाथ कोरीडोर के बाद तो वाराणसी भी पर्यटन और तीर्थ के मानचित्र में नए सिरे से उभर आया है। यही वजह है कि यहां सैलानियों की बाढ़ आ गई है। राज्य सरकार ने हाल ही में जो आंकड़े जारी किए हैं, उसके अनुसार पिछले साल राज्य में 48 करोड़ पर्यटक आए थे। यह संख्या राज्य की कुल आबादी की दोगुनी से दो करोड़ ज्यादा है। 


दुनिया में जहां भी पर्यटन ज्यादा है, वहां सबसे ज्यादा सैलानी सैर-सपाटे के लिए आते हैं। जबकि उत्तर प्रदेश आने वाले ज्यादातर पर्यटक आध्यात्मिक पर्यटन के लिए आए थे। साल 2023 में अकेल काशी आने वाले तीर्थयात्रियों और सैलानियों की संख्या 10 करोड़ से अधिक थी। जबकि मथुरा-वृंदावन में साढ़े सात करोड़ और अयोध्या में पांच करोड़ से ज्यादा पर्यटक पिछले साल आए। 500 वर्षों के बाद अयोध्या में श्रीराम के विराजमान होने के बाद यहां आने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या कई गुना बढ़ गई है। यहां प्रतिदिन करीब डेढ़ से दो लाख पर्यटक आ रहे हैं। इन तथ्यों से राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का उत्साहित होना स्वाभाविक है। तीर्थयात्रियों और आम सैलानियों में एक अंतर होता है। आम सैलानियों की तुलना में तीर्थयात्री प्रकृति और ईश्वर के प्रति अलग तरह की आस्था रखते हैं। शायद यही वजह है कि अब योगी सरकार राज्य में इको टूरिज्म की संभावनाओं में राज्य का भविष्य देखने लगी है। ऐसी संभावनाओं वाले तीर्थस्थलों में सबसे ज्यादा लखनऊ के नजदीक हैं। जिनमें नैमिषारण्य और चित्रकूट हैं। इसी तरह शुकतीर्थ, विंध्यवासिनी धाम, मां पाटेश्वरी धाम, मां शाकंभरी धाम सहारनपुर, बौद्ध तीर्थ स्थल कपिलवस्तु, सारनाथ, कुशीनगर, श्रावस्ती, संकिसा, जैन व सूफी परंपरा से जुड़े स्थलों में भी आध्यात्मिक तीर्थाटन की संभावनाएं ज्यादा है। उत्तर प्रदेश में मानव सृष्टि और जीव सृष्टि के उद्गम स्थल के भी प्रमाण मिलते हैं। सोनभद्र के फासिल्स पार्क की आयु उतनी ही है, जितनी जीव सृष्टि की है। लगभग डेढ़ सौ करोड़ वर्ष पूर्व के फासिल्स वहां पाए जाते हैं। ऐसे अनेक स्थल, प्राकृतिक सरोवर, ताल यहां मिलेंगे। यहां का करीब 15 हजार वर्ग किमी का क्षेत्रफल केवल वन संपदा है। यूपी में पौराणिक काल के वन हैं। यूपी के तराई क्षेत्र के बहराइच, लखीमपुर खीरी, श्रावस्ती, बलरामपुर और पीलीभीत में वन सुरक्षित हैं। इन वनों में भी घूमने वालों का अब तांता लगा रहता है। इसी तरह चूका, दुधवा, पीलीभीत टाइगर रिजर्व आने वाले टूरिस्टों की भीड़ बढ़ रही है। इसे देखते हुए चित्रकूट व बिजनौर के अमानगढ़ टाइगर रिजर्व को का विकास किया जा रहा है। 

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उत्तर प्रदेश में आध्यात्मिक पर्यटन के साथ ही के साथ ही हैरिटेज व ईको टूरिज्म की संभावनाओं को देखते हुए उनके प्रति आकर्षण बढ़ाने की राज्य की ओर से कोशिश तेज की जा चुकी है। उत्तर प्रदेश आने वाले तीर्थयात्रियों और सैलानियों का मनोरंजन हो, उनका ज्ञान बढ़े, अतीत व इतिहास के साथ उन्हें जुड़ने का अवसर प्राप्त हो, इस दिशा में भी काम किए जा रहे हैं। इसे देखते हुए राज्य में उत्तर प्रदेश ईको टूरिज्म डेवलपमेंट बोर्ड गठित किया जा चुका है। इस दिशा में काम को आगे बढ़ाते हुए लखनऊ में कुकरैल के पास नाइट सफारी बनाया जा रहा है। इसके पहले लगभग विलुप्त हो चुकी कुकरैल नदी को जीवित करने की तैयारी है। कभी कुकरैल गोमती की सहायक नदी थी। कुकरैल नदी को लोगों ने कब्जा करके नाला बनाकर रख दिया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस पर हुए आठ हजार से अधिक अनधिकृत कब्जों को हटा जा चुका है। इसका असर दिख रहा है कि जब गर्मी में जल स्रोत सूख रहे थे, तब कुकरैल में जल के नए स्रोत बन रहे थे। 


ध्यान रखना चाहिए कि जब सैलानी आते हैं तो अनेक लोगों के लिए रोजगार सृजन होता है। ईको टूरिज्म के क्षेत्र में लोगों ने अलग-अलग कार्य प्रारंभ किए हैं। सोहगीबरवा, दुधवा, चूका, पीलीभीत टाइगर रिजर्व के क्षेत्र में लोग आ रहे हैं और प्रकृति को देखकर खुद को समझ रहे हैं। तीर्थयात्रियों और सैलानियों को लुभाने के लिए तीर्थस्थलों और पर्यटन केंद्रों की कनेक्टिविटी बढ़ाने की कोशिश हो रही है। लखीमपुर में पुरानी एयरस्ट्रिप का एयरपोर्ट के रूप में विकास करने की तैयारी है। पिछले साल यहां के लिए होलीडे ट्रेन चलाई गई थी। इसके साथ ही जगह-जगह स्थानीय निवासियों को गाइड के रूप में प्रशिक्षित करने की तैयारी है। इससे उन्हें रोजगार मिलेगा और तीर्थयात्रियों और सैलानियों का ज्ञानवर्धन भी होगा। 


पर्यटन न केवल मनोरंजन का माध्यम बन सकता है, बल्कि आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देने में भी मददगार हो सकता है। इसे देखते हुए राज्य के हैरिटेज टूरिज्म स्थलों मसलन बुंदेलखंड के किलों या जहां-तहां पड़ीं ऐतिहासिक इमारतों का ना सिर्फ विकास हो रहा है तो कहीं- कहीं उन्हें होटल या पर्यटन केंद्र के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है या उनका विकास किया जा रहा है। सैलानियों की सहूलियत और स्थानीय लोगों के रोजगार को बढ़ावा देने के लिहाज से काशी, अयोध्या, मथुरा-वृंदावन में स्प्रिचुअल दृष्टि से होम स्टे की व्यवस्था करने की तैयारी है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में भी रोजगार सृजन की संभावना बनेगी। बांदा के कलिंजर, जालौन व बस्ती में ऐसे कार्यक्रम प्रारंभ हो चुके हैं। पीलीभीत, खीरी, बहराइच, सोनभद्र, चंदौली, चित्रकूट समेत कई दूसरे जनपदों में भी ऐसी संभावना मूर्त रूप ले सकती है। राज्य के इको, स्पिरिचुअल और हैरिटेज तीनों तरह के पर्यटन को एक साथ जिस तरह विकसित किया जा रहा है, एक जनपद, एक उत्पाद को जिस तरह बढ़ावा दिया जा रहा है, अगर ईमानदारी पूर्वक इन योजनाओं पर काम हो, पूरे सूबे में सैलानियों की बाढ़ और बढ़ेगी। हर आने वाला सैलानी जब यूपी आएगा तो यूपी को कुछ देकर ही जाएगा। यूपी की आर्थिकी को नई गति देगा। घनी जनसंख्या वाले राज्य की अर्थव्यवस्था को तेजी देगा। इसके लिए राज्य की सड़कों को और बेहतर बनाना पड़ेगा। कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर रह गई खामियों को दूर करना होगा और लोगों को भरोसा दिलाना होगा।


-उमेश चतुर्वेदी

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)

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