बाइडन ने 21वीं सदी का सबसे बड़ा कलंक अमेरिका के माथे पर लगवा दिया है

By नीरज कुमार दुबे | Aug 18, 2021

अमेरिका का राष्ट्रपति अपने देश का संवैधानिक प्रमुख तो होता ही है साथ ही उसे पूरी दुनिया के सबसे ताकतवर नेता के रूप में भी देखा जाता है। लेकिन इस साल अमेरिका की कमान सँभालने वाले जो बाइडन सबसे कमजोर राष्ट्रपति माने जा रहे हैं। पूरी दुनिया में उनकी आलोचना हो रही है क्योंकि बाइडन ने इतनी बड़ी गलती कर दी है जिसके लिए इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा। बाइडन ने अमेरिका के माथे पर 21वीं सदी का सबसे बड़ा कलंक लगवा दिया है। अफगानिस्तान में अमेरिका लड़ाई जिस तरह हारा है उसका ठीकरा सिर्फ बाइडन सरकार पर नहीं फोड़ा जायेगा बल्कि हर अमेरिकी के साथ यह बात दर्ज हो गयी है कि उसका देश जिस तरह वियतनाम से पीठ दिखा कर भागा था वैसा ही उसने अफगानिस्तान में भी किया। अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों के सुरक्षित भागने की होड़ इतिहास के पन्नों पर अमेरिका की बड़ी हार के रूप में दर्ज हो गयी है।


दुनियाभर में बढ़ेगा आतंकवाद


तालिबान का राज हो जाने से अफगानिस्तान एक बार फिर आतंकवादियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बनेगा और दुनियाभर में आतंकवाद बढ़ सकता है। जिस तरह पहले अल कायदा या अन्य आतंकवादी संगठनों के केंद्र अफगानिस्तान में थे वही स्थिति अब दोबारा हो सकती है। कहा जा सकता है कि बाइडन ने सिर्फ अफगानिस्तान ही नहीं पूरी दुनिया को खतरे में डाल दिया है। खुद अमेरिका के लिए आने वाले समय में मुश्किलें बढ़ सकती हैं क्योंकि तालिबान पर चीन और पाकिस्तान का प्रभाव ज्यादा है और इन दोनों ही देशों से अमेरिका के संबंध सहज नहीं हैं। अमेरिकी फौजों के पूरी तरह निकलने के बाद तालिबान पहले तो उन लोगों को सबक सिखायेगा जिन्होंने पिछले दो दशक में अमेरिकियों का साथ दिया उसके बाद दुनिया भर में अमेरिकी प्रतिष्ठान भी निशाने पर आ सकते हैं। वैसे भी तालिबान की इस जीत से दुनिया के कोने-कोने में मौजूद आतंकी तत्वों का हौसला बढ़ा हुआ है।

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अमेरिका ने अफगानियों को बिलखने को छोड़ा


अमेरिका मानवाधिकारों के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करता है। दुनियाभर में किस देश का मानवाधिकारों के सम्मान की दृष्टि से कौन-सा स्थान है इसकी रैंकिंग जारी करता है। लेकिन जिस तरह से अफगान लोगों के मानवाधिकारों को अमेरिका ने खतरे में डाल दिया है उसके लिए उसे कभी माफ नहीं किया जा सकता। जो बाइडन राष्ट्रपति बनने से पहले बराक ओबामा के कार्यकाल के दौरान आठ साल देश के उपराष्ट्रपति भी रह चुके हैं। अनुभवी राजनेता और प्रशासक होने के बावजूद उनसे इतनी बड़ी गलती हुई है जिसे अब वह ढंकने का प्रयास कर रहे हैं अमेरिकी राष्ट्रपति अगर यह कहें कि हमें इतनी जल्दी काबुल की हार का अंदाजा नहीं था तो साबित होता है कि वहां प्रशासन किस तरह चलाया जा रहा है। बाइडन ने जो फैसला किया उससे अफगानिस्तान की आधी आबादी के लिए संकट खड़ा हो गया है, उनके भविष्य के सपने टूट गये हैं। बड़ी संख्या में अफगानिस्तान में महिलाएं बैंकों, सरकारी दफ्तरों, मीडिया आदि क्षेत्रों में नौकरी कर रही थीं। विदेशी मदद से बनाये गये स्कूलों, कॉलेजों में पढ़ रही थीं, तमाम प्रकार के वाणिज्यिक कोर्स इत्यादि कर बेहतर भविष्य का सपना बुन रही थीं। लेकिन एक झटके में सब तबाह हो गया। शुरुआती आकलन के मुताबिक बाइडन के एक फैसले की वजह से अफगानिस्तान की 20 लाख से ज्यादा लड़कियों का स्कूल, कॉलेज छूट गया है। तालिबान भले महिलाओं को सत्ता में भागीदारी की बात कर रहा हो लेकिन वह सब दिखावा ही है क्योंकि तालिबानी मानसिकता काबुल की सड़कों पर साफ नजर आ रही है जहां ब्यूटी पार्लरों और दुकानों के बाहर बनी महिलाओं की तस्वीरों पर कालिख पोती जा रही है। मस्जिदों से ऐलान किये जा रहे हैं कि महिलाएं इस्लाम के नियमों का कड़ाई से पालन करें।


चूक करते रहे हैं बाइडन


ऐसा नहीं है कि जो बाइडन से चूक पहली बार हुई हो बल्कि साल 2018 में एक टीवी कार्यक्रम में उन्होंने स्वीकार किया था कि मैं चूक करने वाली मशीन हूँ। अफगानिस्तान से हट कर जरा अमेरिका में कोरोना की स्थिति को ही देख लीजिये। राष्ट्रपति चुनावों के दौरान बाइडन ने कोरोना के हालात को ठीक से नियंत्रित नहीं कर पाने को लेकर तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर जमकर निशाना साधा था लेकिन खुद सत्ता में आने के बाद वह भी ज्यादा कुछ नहीं कर पाये बल्कि स्थिति को उन्होंने बिगाड़ दिया। अभी जब विशेषज्ञ चेता रहे हैं कि मास्क को नहीं हटाना है तब बाइडन ने व्हाइट हाउस में खुद मास्क हटा दिया, जहां टीकाकरण हो चुका है वहां मास्क की अनिवार्यता खत्म कर दी और ऐलान कर दिया कि हम लड़ाई जीत गये हैं। टीकाकरण की गति जरूर तेजी से आगे बढ़ी लेकिन आज भी कोरोना के हालात अमेरिका में विकट हैं और रोजाना सवा लाख से ज्यादा संक्रमण के नये मामले सामने आ रहे हैं।

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अफगान में भ्रष्टाचार पर भी आंखें मूंदे रहे बाइडन


अफगानिस्तान पर ही लौटें तो अमेरिका किस कदर वहां विफल रहा जरा इसकी बानगी देखिये। अमेरिका की ओर से अफगानिस्तान को करोड़ों डॉलर की मदद दी जा रही थी लेकिन इस मदद का कहां इस्तेमाल हो रहा है इस पर कोई निगरानी नहीं थी। नतीजतन अफगान सरकार भ्रष्टाचार में डूबी हुई थी। आज जब यह बात सामने आ रही है कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी चार गाड़ियों में कैश भरकर भागे हैं तो साबित हो जाता है कि वहां सरकार किस तरह चलाई जा रही थी। अफगान सरकार और कमांडर कागजों में हेरफेर कर अपनी सेना की संख्या को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा रहे थे और अमेरिका से पैसे ऐंठ रहे थे। इसीलिए जब युद्ध की नौबत आई तो कई इलाकों में सेना ही नहीं थी तो लड़ता कौन? इस तरह तालिबान ने सप्ताह भर के अंदर ही पूरे देश पर कब्जा कर लिया और अमेरिका देखता रह गया। कहने को भले अमेरिका ने तीन लाख अफगान सैनिकों को प्रशिक्षित किया लेकिन सैनिकों की यह संख्या वास्तव में इससे बहुत कम थी।


बहरहाल, अफगानिस्तान के इतिहास के सबसे लंबे युद्ध में इस विफलता का बोझ अमेरिका तो ढोयेगा ही साथ ही दक्षिण, पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका का हर कोना किसी न किसी तरह से प्रभावित होगा। अमेरिका की इस करारी हार में उसके नाटो सहयोगी और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भी बराबर के साझेदार हैं। हमें यह भी याद रखना होगा कि अमेरिका की विफलता ऐसे समय सामने आई है जब रूस और चीन वैश्विक राजनीति में प्रभाव जमाने के प्रयास कर रहे हैं। इसके साथ ही अमेरिका जिसकी इराक और सीरिया में अब भी सैन्य उपस्थिति है, उसके लिए अब वहां भी मुश्किलें पैदा हो सकती हैं।


-नीरज कुमार दुबे

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