गीता-तत्व को समझ कर उसे अपने जीवन में उतारने का प्रयत्न करें

By आरएन तिवारी | Nov 27, 2020

पिछले अंक में हमने गीता माहात्म्य पर प्रकाश डाला था, हमारे प्रभासाक्षी के पाठकों ने गीता माहात्म्य का आस्वादन लिया। आइए ! इस अंक में हम श्रीमद्भगवत गीता में प्रवेश करें, गीता-तत्व को समझें और उसे अपनी निजी जिंदगी में उतारने का प्रयास करें। भगवान श्री कृष्ण ने आज से लगभग छ: हजार वर्ष पूर्व कुरुक्षेत्र में एकादशी, रविवार के दिन करीब पैंतालीस मिनट तक अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। इससे पहले भगवान ने इसी गीता का गायन सूर्यदेव के समक्ष भी किया था, इसीलिए सूर्य नारायण फल की चिन्ता किए बिना निष्काम भाव से आज तक अपने कर्म में लीन हैं।

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श्रीमद्भगवत गीता में न केवल अन्य शास्त्रों की सारी बातें मिलेंगी बल्कि ऐसी बातें भी मिलेंगी जो अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं हैं। अस्तु -------


ऐसा माना जाता है कि गीता दर्शन की प्रस्तुति कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में हुई। द्वापर युग का कुरुक्षेत्र परम पवित्र तीर्थ स्थान रहा है। 


हमारे धर्म शास्त्रों में नैमिषारण्य को सतयुग का परम पवित्र तीर्थ स्थान माना गया है जहाँ एक पल के लिए भी अधर्म का वास न हो। ब्रह्मा जी ने सत्संग के लिए ही इसका निर्माण किया था। त्रेता युग का पवित्र स्थान पुष्कर को कहा गया है।


द्वापर का धर्म स्थल कुरुक्षेत्र और कलियुग का तीर्थ स्थान गंगा को माना गया है। परम पवित्र कुरुक्षेत्र में कौरवों और पांडवों की सेना महाभारत युद्ध के लिए तैयार खड़ी थी। धृतराष्ट्र के मन में संदेह का सागर उमड़ रहा था कि न जाने इस युद्ध का परिणाम क्या होगा?


उन्होने संजय से पूछा---

 

धृतराष्ट्र उवाच—

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सव:। 

मामका पांडवाश्चैवकिमकुर्वत संजय।।


हे संजय! धर्म की भूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध करने की इच्छा से इकट्ठे हुए मेरे तथा पांडु के पुत्रों ने क्या किया? 


कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में अर्जुन के पक्ष में श्रीकृष्ण स्वयम उपस्थित थे। कौरवों का पिता धृतराष्ट्र अपने अधर्मी पुत्रों को विजयी होते देखना चाहता  था किन्तु उसको इस विषय में संदेह था। वह अपने पुत्रों के विषय में आश्वस्त होना चाहता था। धृतराष्ट्र अत्यधिक भय-भीत था कि इस धर्म क्षेत्र के कुरुक्षेत्र में होने जा रहे युद्ध का विजेता कौन होगा? वह यह सच्चाई भी जानता था कि अर्जुन और पांडवों पर इस युद्ध का प्रभाव अनुकूल पड़ेगा क्योंकि वे स्वभाव से पुण्यात्मा थे।

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धर्म संस्थापनार्थाय संभावमि युगे-युगे 

 

भगवान का यह अमर संदेश जानते हुए भी धृतराष्ट्र जरूरत से ज्यादा पुत्र-मोह में डूबा हुआ था। भगवान धर्म को अमर करना चाहते हैं और धृतराष्ट्र अधर्म को अमर करना चाहता था। धृतराष्ट्र के जीवन की सबसे बड़ी भूल यही थी, कि वह धर्म युद्ध में अधर्म को विजयी होने का स्वप्न देख रहा था। हम सबके लिए गीता का यही संदेश है कि किसी भी परिस्थिति में अधर्म और अन्याय का साथ नहीं देना चाहिए।  


संजय महर्षि वेदव्यास का परम प्रिय शिष्य था। व्यास जी ने उसको दिव्य-दृष्टि प्रदान की थी, जिसके सहारे वह कुरुक्षेत्र में होने वाले युद्ध का सीधा प्रसारण live telecast कर सकता था। यहाँ हम सबको यह समझ लेना चाहिए कि live telecast आधुनिक खोज नहीं है बल्कि हमारे ऋषि-महर्षियों ने इसकी खोज बहुत पहले कर ली थी। हाँ! इसको और परिष्कृत modify करने का काम आधुनिक समाज ने जरूर किया है।

 

अस्तु ----


जय श्री कृष्ण -----------   


- आरएन तिवारी

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