By रमेश सर्राफ धमोरा | Oct 25, 2023
राजस्थान में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने अभी तक दो सूचियों में 124 प्रत्याशियों के नामों की घोषणा की है। भाजपा की पहली सूची में 41 व दूसरी सूची में 83 नाम घोषित किए गए हैं। पहली सूची में जहां भाजपा ने कर्नाटक फार्मूला अपनाते हुए कई दिग्गजों के टिकट काट दिए थे। वैसा कुछ दूसरी सूची में देखने को नहीं मिला। पहली सूची में भाजपा ने छह लोकसभा सदस्य, एक राज्यसभा सदस्य व दो पूर्व सांसदों को भी मैदान में उतारा था। मगर दूसरी सूची में किसी भी सांसद को प्रत्याशी नहीं बनाया गया।
राजनीतिक क्षेत्रों में चर्चा है कि भाजपा की पहली सूची जारी होने के साथ ही शुरू हुआ विवाद अभी तक थमने का नाम नहीं ले रहा है। दूसरी सूची में शामिल बहुत से प्रत्याशियों का भी विरोध हो रहा है। पहली सूची में तो जालौर से सांसद देवजी पटेल को सांचैर से प्रत्याशी बनाने का इतना अधिक विरोध हुआ की स्थिति मारपीट तक पहुंच गई। देवजी पटेल की गाड़ी को रास्ते में रोक कर उनके साथ मारपीट तक करने का प्रयास किया गया था। वहां पर पिछली बार दानाराम चौधरी चुनाव में हार गये थे। इस बार जीवाराम चौधरी दावेदारी जता रहे थे। देवजी पटेल को प्रत्याशी बनाने से दोनों नेता मिलकर विरोध कर रहे हैं।
जयपुर के विद्याधर नगर सीट से मौजूदा विधायक नरपत सिंह राजवी का टिकट काट कर राजसमंद से सांसद दिया कुमारी को दिया गया था। उसके बाद से राजवी के समर्थक दीया कुमारी का विरोध कर रहे थे। मगर दूसरी सूची में राजवी को चित्तौड़गढ़ से प्रत्याशी बनाकर उनका विरोध शांत कर दिया गया है। मगर चित्तौड़गढ़ से दो बार के मौजूदा विधायक चन्द्रभान सिंह आक्या अपनी टिकट कटने से इतने अधिक नाराज हैं कि आने वाले समय में वह निर्दलीय भी ताल ठोक सकते हैं। आक्या का कहना है कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी से मेरी पुराने समय से राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता है। जिस कारण जोशी ने मेरी टिकट काटी है।
राजसमंद से विधायक दीप्ती माहेश्वरी का भी जमकर विरोध हो रहा है। दीप्ती माहेश्वरी अपनी माता किरण माहेश्वरी के निधन के बाद हुए उपचुनाव में जीत कर विधायक बनी थीं। अब पार्टी ने उन्हें दूसरी बार प्रत्याशी बनाया है तो स्थानीय लोग उनके खिलाफ मुखर होकर विरोध कर रहे हैं। वहां के अन्य दावेदारों का कहना है कि बाहरी प्रत्याशी को कब तक सहेंगे। असम का राज्यपाल बनाए जाने से खाली हुई उदयपुर शहर विधानसभा सीट पर पार्टी ने पूर्व जिला अध्यक्ष ताराचन्द जैन को प्रत्याशी बनाया है। वहां से टिकट के दावेदारी कर रहे उदयपुर नगर निगम के उप महापौर पारस सिंघवी ने मोर्चा खोल दिया है। सिंघवी ने आरोप लगाते हुए कहा कि पार्टी की तरफ से उदयपुर में ऐसे व्यक्ति को टिकट दिया गया है जो सनातन विरोधी हैं और पूजा पद्धति में विश्वास नहीं रखता है। सिंघवी का कहना है कि असम के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया ने मेरी टिकट कटवा कर जैन को प्रत्याशी बनवाया है।
जयपुर की झोटवाड़ा सीट पर पूर्व मंत्री राजपाल सिंह शेखावत का टिकट काटकर पूर्व केंद्रीय मंत्री व जयपुर ग्रामीण सीट से दूसरी बार के सांसद राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को मैदान में उतारा गया है। इस सीट पर भी राज्यवर्धन राठौड़ को राजपाल समर्थकों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा द्वारा घोषित 124 प्रत्याशियों में से तीन दर्जन प्रत्याशियों को अपने प्रतिद्वंद्वियों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ रहा है। कई सीटों पर तो स्थिति इतनी खराब हो रही है कि पार्टी पदाधिकारियों की भी कोई नहीं सुन रहा है।
विधानसभा चुनाव में टिकटों की घोषणा से पूर्व भाजपा द्वारा बार-बार सामूहिक नेतृत्व व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने की बात कही जा रही थी। भाजपा आलाकमान बार-बार इस बात का संकेत भी दे रहा था कि राजस्थान में पुराने नेताओं के स्थान पर नए लोगों को मौका दिया जाएगा। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी लगातार हाशिये पर धकेली जा रही थीं। सभी राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना था कि इस बार के चुनाव में भाजपा आलाकमान वसुंधरा राजे व उनके समर्थकों को तवज्जो नहीं देगा।
मगर पहली सूची जारी होने के बाद मचे बवाल को शांत करने के लिए दूसरी सूची में वसुंधरा राजे व उनके करीबन दो दर्जन समर्थकों को टिकट दिया गया है। वसुंधरा राजे को भी उनकी परंपरागत झालरापाटन सीट से ही पांचवीं बार प्रत्याशी बनाया गया है। भाजपा की दूसरी सूची को देख कर लगता है कि भाजपा आलाकमान ने अपने रुख में बदलाव कर लिया है। भाजपा ने दूसरी सूची में 51 मौजूदा विधायकों को टिकट दिया है। इसके साथ ही इस सूची में 27 सीटें ऐसी हैं जिन पर 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा हार गई थी। 16 सीटों पर प्रत्याशी बदले गए हैं।
भाजपा ने दूसरी सूची में आठ विधायकों के टिकट काटे हैं। इसमें सूरसागर से सूर्यकांता व्यास, सांगानेर से अशोक लाहोटी, चित्तौड़गढ़ से चंद्रभान सिंह आक्या, सूरजगढ़ से सुभाष पूनिया, नागौर से मोहन राम चौधरी, मकराना से रूपाराम, बड़ी सादड़ी से ललित कुमार ओस्तवाल, व घाटोल से हरेंद्र नीनामा शामिल हैं। नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ की सीट बदल कर उन्हें चूरू की बजाय तारानगर से टिकट दी गई है। वे पहले भी तारानगर से चुनाव लड़ कर जीत चुके हैं। कुछ दिन पहले ही भाजपा में शामिल हुए उदयपुर राजघराने के सदस्य विश्वराज सिंह मेवाड़ को नाथद्वारा से टिकट दिया गया है। उनका मुकाबला विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीपी जोशी से होगा। दिग्गज जाट नेता रहे नाथूराम मिर्धा की पोती व नागौर से कांग्रेस सांसद रही डॉ. ज्योति मिर्धा को नागौर सीट से प्रत्याशी बनाया गया है।
भाजपा की अभी तक जारी की गई सूची को देखकर लगता है कि सबसे अधिक टिकट वसुंधरा समर्थकों को दी गई है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, राज्यसभा सांसद डॉक्टर किरोडीलाल मीणा, केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के समर्थकों को भी प्रत्याशी बनाया गया है। भाजपा प्रत्याशियों की सूची पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छाप भी दिखाई दे रही है। संघ से जुड़े कई लोगों को प्रत्याशी बनाया गया है।
भाजपा की सूची को देखकर लगता है कि भाजपा आलाकमान द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को प्रदेश की राजनीति से दूर करने के प्रयास सफल नहीं हो पाए हैं। वसुंधरा राजे राजस्थान में भाजपा की मजबूरी बन गई हैं। वसुंधरा समर्थक उन विधायकों के नाम भी सूची में शामिल हो गए हैं जिन पर गहलोत सरकार पर आये संकट के दौरान पार्टी लाइन से अलग रहने के आरोप लगे थे। हाड़ौती, मेवाड़ क्षेत्र में वसुंधरा राजे ने अपने ज्यादातर समर्थकों के टिकट क्लियर करवा कर भाजपा आलाकमान को झुका कर यह दिखा दिया है कि राजस्थान में वसुंधरा है तो भाजपा है। वसुंधरा के बिना राजस्थान में भाजपा की सरकार बनना मुश्किल ही नहीं असंभव है।
-रमेश सर्राफ धमोरा
(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होते रहते हैं।)