By नीरज कुमार दुबे | Dec 03, 2021
दिसम्बर 2019 में चीन के वुहान शहर में कोरोना वायरस के मामले सबसे पहले सामने आये थे उस लिहाज से देखें तो दिसम्बर 2021 में दुनिया को कोरोना वायरस से लड़ते-लड़ते दो साल पूरे हो चुके हैं। इन दो सालों में कोविड-19 ने रूप बदल-बदल कर दुनियाभर में जान-माल का काफी नुकसान किया है। आधिकारिक आंकड़ों को ही देख लें तो अब तक दुनियाभर में कोरोना से 52 लाख लोगों की मौत हो चुकी है। यह तो वह संख्या है जो सरकारों के पास दर्ज है, मौत के ऐसे भी लाखों मामले होंगे जो दर्ज ही नहीं हुए होंगे। कोरोना ने किसी की जान अचानक से ले ली तो किसी की जान तड़पा-तड़पा कर ली, कोरोना ने किसी की नौकरी ले ली, किसी का परिजन छीन लिया, किसी के सिर से माता-पिता का साया उठा लिया तो किसी को जिंदगी भर के लिए तमाम अन्य रोगों से लड़ने के लिए छोड़ दिया। आज लॉकडाउन और तमाम तरह की पाबंदियों के चलते दुनियाभर की अर्थव्यवस्था को जो नुकसान उठाना पड़ा वह अलग है। लेकिन इतने भर से कोरोना संक्रमण का मन नहीं भरा है वह अब भी रूप बदल-बदल कर पहले से ज्यादा घातक स्वरूप में आकर विभिन्न देशों में कहर बरपा रहा है। अभी यूरोप और अफ्रीकी देश इसके निशाने पर हैं लेकिन कब यह एशिया या दक्षिण एशिया या अन्य क्षेत्रों में कहर बरपाना शुरू कर दे इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।
क्या दिन थे वह?
दुनिया के कुछ देशों ने कोरोना रोधी वैक्सीन तो बना ली लेकिन अब भी विश्व आबादी का बड़ा हिस्सा वैक्सीन के लिए तरस रहा है। जिन देशों में वैक्सीन लगी है वहां व्यस्क आबादी को तो कुछ सुरक्षा मिल गयी है लेकिन बच्चों के लिए अब भी सुरक्षित टीकों का इंतजार है। यही नहीं कोरोना की वजह से बिना मास्क और बिना सोशल डिस्टेंसिंग वाले जीवन की कल्पना करना अब मुश्किल हो गया है। कोरोना ने स्कूली बच्चों को ऑनलाइन कक्षा में भाग लेने पर मजबूर कर दिया, कोरोना ने कार्यालयों की संस्कृति बदल कर वर्क फ्रॉम होम का माहौल ला दिया और अब जिस तरह से यह नया स्वरूप लेकर फैलना शुरू हुआ है उससे लॉकडाउन और तमाम तरह की पाबंदियां फिर शुरू हो गयी हैं। कहीं अंतरराष्ट्रीय यात्राओं पर पाबंदी लग रही है तो कहीं शहरों को बंद किया जा रहा है। यह सब कुछ दिन और चला तो विश्व अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ेगा।
टीके के प्रति झिझक कैसे मिटाएं?
लगभग सभी देशों में यह भी एक बड़ी समस्या है कि कोविड रोधी टीकाकरण के प्रति लोगों के मन में झिझक है और यह झिझक सिर्फ गरीब देशों में ही नहीं बल्कि समृद्ध पश्चिमी देशों में भी है। इसीलिए अब विभिन्न सरकारों ने अपना रुख भी कड़ा कर लिया है जैसे यूनान से खबर है कि वहां टीकाकरण कराने से इंकार कर रहे 60 साल से अधिक उम्र के लोगों के खिलाफ मासिक जुर्माना लग सकता है और इससे उनकी पेंशन की एक-तिहाई राशि कट सकती है। वहां के नेताओं का कहना है कि इस कठोर नीति से वोट घटेंगे पर लोगों की जान बचाने में मदद मिलेगी। दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति सिरील रामफोसा भी देश के नागरिकों से टीका लगवाने की अपील कर रहे हैं। जर्मनी ने तो ऑस्ट्रिया की राह पर चलते हुए सख्त पाबंदियां लागू कर दी हैं। जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने कहा है कि टीका नहीं लगवाने वाले लोगों को सार्वजनिक गतिविधियों में भाग नहीं लेने दिया जाएगा और संसद टीकाकरण को अनिवार्य बनाने के लिये एक आदेश जारी करने पर विचार कर रही है। वहीं, स्लोवाकिया सरकार 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों को टीकाकरण कराने पर 500 यूरो (568 डॉलर) देने की पेशकश कर रही है।
पाबंदियों का दौर लौटा
कई देशों में तो हालात ऐसे हो गये हैं कि सरकारें कोरोना संक्रमण पर नियंत्रण के लिए अगर पाबंदियां लगाती हैं तो लोग विरोध प्रदर्शन करने लगते हैं। यूरोप के कई देशों से हाल में ऐसे घटनाक्रम सामने आये। नीदरलैंड में भी लॉकडाउन और अन्य पाबंदियों के खिलाफ साप्ताहिक प्रतिबंधों ने हिंसक रूप ले लिया है। दक्षिण कोरिया ने भी सामाजिक दूरी संबंधी नियमों को कड़ा करने का फैसला किया है जिसके विरोध में आवाजें उठ रही हैं।
ओमीक्रॉन कितना घातक?
जहां तक दक्षिण अफ्रीका से सामने आये वायरस के नये स्वरूप ओमीक्रान की बात है तो विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ओमीक्रोन के केंद्र गौतेंग प्रांत में निगरानी के उपायों में तेजी लाने और वायरस के संपर्क में आए लोगों की पहचान के लिए अधिकारियों का एक दल भेजा है। उल्लेखनीय है कि ओमीक्रोन का मामला पहली बार दक्षिण अफ्रीका में ठीक एक हफ्ते पहले सामने आया था जो अब दुनिया भर के कम से कम 30 देशों में पहुँच चुका है। जहां भी ओमीक्रान के मामले सामने आये हैं वहां पर संक्रमित व्यक्ति की हालत गंभीर होने की सूचना नहीं है। विशेषज्ञ अभी भी इस बात का अध्ययन कर रहे हैं कि यह वास्तव में कितना घातक स्वरूप है। लेकिन इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि यह बहुत तेजी से फैलता है।
बूस्टर डोज कितनी जरूरी?
दूसरी ओर, अब टीका कंपनियों ने अपने टीके को उन्नत बनाने की दिशा में तेजी से काम शुरू कर दिया है। फाइजर ने भी कहा है कि नया टीका सौ दिन में तैयार हो जाएगा। फाइजर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. एल्बर्ट बोउर्ला ने हाल ही में यहाँ तक कहा था कि आने वाले कई वर्षों तक लोगों को संक्रमण से बचाव से किए सालाना टीकाकरण कराना पड़ सकता है। कई देशों ने तो अपने यहां बूस्टर डोज लगवाना शुरू भी कर दिया है। भारत में भी सीरम इंस्टीट्यूट ने बूस्टर डोज देने की इजाजत मांगी है। भारत में इस पर विचार हो रहा है कि क्या हैल्थवर्कर्स और गंभीर बीमारियों से पीड़ित लोगों को बूस्टर डोज दिया जाना चाहिए? दुनियाभर में कोरोना से बचाव के लिए औषधियों पर भी नये-नये शोध हो रहे हैं। इसी कड़ी में एक खुशखबरी यह आई है कि ब्रिटेन के औषधि नियामक ने कोविड-19 के एक नये एंटीबॉडी उपचार को मंजूरी दे दी, जिसके बारे में उसका मानना है कि यह ओमीक्रोन जैसे नये स्वरूप के खिलाफ भी कारगर होगा। औषधि एवं स्वास्थ्य देखभाल उत्पाद नियामक एजेंसी ने कहा है कि सोट्रोविमैब, कोविड के हल्के से मध्यम संक्रमण से पीड़ितों के लिए है। सोट्रोविमैब एक खुराक वाली एंटीबॉडी है और यह दवा कोरोना वायरस के बाहरी आवरण पर स्पाइक प्रोटीन से जुड़कर काम करती है। इससे यह वायरस को मानव कोशिका में प्रवेश करने से रोक देती है।
नयी कोविड गाइडलाइन
वहीं अगर भारत की बात करें तो केंद्र सरकार के अलावा विभिन्न राज्यों ने भी नयी कोरोना गाइडलाइन जारी करना शुरू कर दिया है। हवाई अड्डों पर अंतरराष्ट्रीय यात्रा करने वालों पर निगरानी की जा रही है खासकर 'रिस्क' वाले देशों से आ रहे यात्रियों की कोविड जाँच की जा रही है। हाल के दिनों में 'रिस्क' वाले देशों से जो यात्री आये हैं उनकी पहचान कर उनकी तथा उनके संपर्क में आये लोगों की जाँच की जा रही है। भारत ने कोरोना की दूसरी खतरनाक लहर का जिस तरह सामना किया उसकी दर्दनाक यादें आज भी खौफ पैदा करती हैं इसलिए बहुत सतर्कता तथा सावधानी बरते जाने की जरूरत है।
बहरहाल, हमें याद रखना है कि कोरोना कहीं गया नहीं है वह इंतजार सिर्फ इसी बात का कर रहा है कि हम मास्क उतारें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन छोड़ें या हाथ सैनेटाइज ना करें। अगर हम किसी खुशफहमी में हैं या खुद को बहुत बहादुर समझ रहे हैं तो जरा अमेरिका का हाल देख लें जहां आज भी रोजाना एक लाख से ज्यादा संक्रमण के मामले और 1000 से ज्यादा मौतें प्रतिदिन हो रही हैं। जरा यूरोप का हाल देख लें जहां केसों में वृद्धि के चलते अस्पतालों पर बोझ बढ़ता जा रहा है और लोग एक बार फिर अपने घरों के भीतर बंद होने को मजबूर हो रहे हैं, जरा चीन का हाल देख लें जहां कई शहरों में सख्त पाबंदियां लगा दी गयी हैं।
-नीरज कुमार दुबे