By अभिनय आकाश | Jun 17, 2021
भारत सरकार ने सोशल मीडिया के दुरुपयोग और फेक न्यूज की फैक्ट्री चलाने वालों को इम्यनुटी देने वाली प्रोटेक्शन शील्ड को हटा दिया है। इंटरमीडियरी प्लेटफॉर्म का दर्जा छीन जाने पर कैसे ट्विटर का भारत में लीगल प्रोटेक्शन समाप्त हो जाएगा? सरकार के आईटी एक्ट के नए नियम को लागू करवाने के सख्त रुख से कैसे भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले लगभग 70 करोड़ लोगों की जिंदगी बदल जाएगी, या फिर साफ सुथरी और शांतिपूर्ण हो जाएगी। आज के इस विश्लेषण में इसकी बात करेंगे। साथ ही आपको बताएंगे कि क्या है आईटी एक्ट का सेक्शन 79 और ट्विटर और सरकार को लेकर क्यों मचा है घामासान इसके बारे में भी चर्चा करेंगे।
जब भी आप सोशल मीडिया पर जाते हैं तो माहौल बड़ा जहरीला होता है। आपमें से बहुत सारे लोगों को ये शिकायत होती है कि जब आप सोशल मीडिया पर जाते हैं तो आपको समझ नहीं आता कि कहां फेक न्यूज चल रही है, कहां सही बात चल रही है। ऐसा ही कुछ वाक्या बीते दिनों देखने को मिला जिसके परिणाम स्वरूप 15 जून 2021 को कुछ पत्रकारों के साथ-साथ ट्विटर के खिलाफ भी एक एफआईआर दर्ज की गई। मामला एक वायरल वी़डियो से जुड़ा हुआ है। गाजियाबाद के लोनी इलाके में एक बूढ़े मुस्लिम व्यक्ति के मारपीट का वीडियो ट्विटर पर वायरल हुआ और लोगों ने इसको लेकर तरह-तरह के दावे किए। स्वरा भास्कर और अन्य तथाकथित लिबरल ब्रिगेड की तरफ से इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश भी की गई। अब यूपी पुलिस कह रही है कि इस वीडियो को वायरल करने में ट्विटर भी पार्टी है। ऐसा पहली बार हुआ है कि ट्विटर को किसी दूसरे के किए ट्वीट का जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। आखिर ऐसा क्या हुआ कि ट्विटर पर मामला दर्ज कर लिया गया। पहले ऐसा कौन सा सुरक्षा कवच था जो ट्विटर को बचाता रहा। क्या सरकार के पास ऐसा करने की कोई नई कानूनी ताकत आ गई है।
ट्विटर के खिलाफ ऐसा एक्शन क्यों?
सोशल मीडिया, डीजिटल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म को लेकर 25 फरवरी को मोदी सरकार नए नियम लेकर आई। सादी भाषा में कहे तो फेसबुक, ट्विटर, अमेजन प्राइम वीडियो, नेटफ्लिक्स के लिए गाइडलाइंस। मतलब आप क्या पोस्ट करेंगे, क्या ट्वीट करेंगे और मनोरंजन के लिए क्या देख पाएंगे उसके लिए गाइडलाइंस। इसे लागू करने के लिए तीन महीने की समयसीमा निर्धारित की गई। नए नियमों में सभी सोशल मीडिया कंपनियों जिनका यूजर बेस 50 लाख के पार है उनको रेसिडेंट कंप्लेन ऑफीसर, चीफ कंप्लाइंस ऑफीसर और नोडल संपर्क अधिकारी की नियुक्ती करनी है। नए नियमों में शिकायत समाधान, आपत्तिजनक कंटेट की निगरानी, कंप्लाइंस रिपोर्ट और आपत्तिजनक सामग्री को हटाने जैसी बाते हैं। बता दें कि इंटरनेट पर मौजूद सामग्री को लेकर बहुत स्पष्ट नियम नहीं थे, इसलिए सोशल मीडिया, एप्स और बाकी सभी चीजों का काम रविशंकर प्रसाद का मंत्रालय देखता था। यहां आपको एक चीज और याद दिला दें कि जब चीन के एप पर बैन लगा था तब भी आईटी एक्ट का इस्तेमाल हुआ था। सोशल मीडिया इंटरमीडियरी यानी फेसबुक, ट्विटर जैसी कंपनियों को लेकर नियम सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने बनाए। लेकिन ट्विटर ने इन नियमों को लागू नहीं किया। हालांकि फिर भी सरकार ने सख्ती दिखाने की बजाय ट्विटर को वक्त दिया। 5 जून को केंद्र ने एक नोटिस देकर सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को नियम लागू करने को कहा। 6 जून को ट्विटर ने सरकार को बताया कि उसने भारत में नोडल और शिकायत अधिकारी के रूप में एक व्यक्ति की नियुक्ति की है. लेकिन सरकार ने कहा कि वो कंपनी का कर्मचारी नहीं है और एक लॉ फर्म में काम करने वाला वकील है। बाद में जब ट्विटर की खींचाई हुई तो उसने कहा कि वो कर्मचारी कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट पर है। सरकार ने इसे भी मान लिया। लेकिन उसके बावजूद ट्विटर की ओर से अनुपालन अधिकारी की नियुक्ति नहीं की गई। इस वजह से केंद्र सरकार की ओर से ट्विटर को मिलने वाली कानूनी सुरक्षा अपने आप ही खत्म हो गई।
इम्युनिटी हटाने पर सरकार का जवाब
सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने देश के नये सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियमों की जानबूझकर अवहेलना करने और उनका पालन करने में विफल रहने के लिए ट्विटर की आलोचना की। इसके साथ ही ट्विटर ने भारत में मध्यस्थ प्लेटफार्म को मिलने वाली छूट हकखो दिया है और उपयोगकर्ताओं के किसी भी तरह की गैरकानूनी सामग्री डालने पर वह उसकी जिम्मेदार होगी। ट्विटर ने कथित रूप से नये नियमों का पूरी तरह पालन नहीं किया। नये नियमों यानी मध्यस्थ दिशानिर्देशों के तहत सोशल मीडिया कंपनियों के लिए शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना और कानून प्रवर्तन के साथ समन्वय के लिए अधिकारी नियुक्त करना जरूरी है। प्रसाद ने कहा कि ट्विटर मध्यस्थ नियमों का पालन करने में विफल रहा और उसने कई अवसर मिलने के बावजूद ‘‘जानबूझकर’’ इनका पालन ना करने का रास्ता चुना। उन्होंने कहा कि अगर किसी विदेशी इकाई को लगता है कि वह देश के कानून का पालन करने से बचने के लिए भारत में खुद को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के ध्वजवाहक के तौर पर पेश कर सकती है तो इस तरह की कोशिशें व्यर्थ हैं।
ट्विटर ने कहा- अंतरिम मुख्य अनुपालन अधिकारी नियुक्त
ट्विटर ने कहा कि उसने भारत के लिए अंतरिम मुख्य अनुपालन अधिकारी नियुक्त कर लिया है और जल्द ही अधिकारी का ब्यौरा सीधे सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ साझा किया जाएगा। ट्विटर के एक प्रवक्ता ने कहा कि कंपनी नये दिशानिर्देशों का पालन करने की हर कोशिश कर रही है और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को प्रक्रिया के हर कदम पर प्रगति की जानकारी दी जा रही है। उन्होंने कहा कि एक अंतरिम मुख्य अनुपालन अधिकारी नियुक्त किया गया है और इससे जुड़ा ब्यौरा जल्द ही मंत्रालय के साथ साझा किया जाएगा।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और उसके नियम
फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम ऐसा सोशल मीडिया प्लेटफार्म जहां आप पोस्ट या फोटोज डालकर ये बता सकते हैं कि क्या कर रहे हैं, क्या सोच रहे हैं। भारत में 44 करोड़ से ज्यादा सोशल मीडिया यूजर्स बताए जाते हैं। जहां इन सोशल साइट्स पर कोई भी उनके नियम-कायदे मानकर ही अपना अकाउंट बना सकता है। उसके बाद वो अपने विचार पोस्ट या फोटो की शक्ल में वहां रख सकता है। इस पूरे सिस्टम में कुल मिलाकर तीन लोग इनवाल्व हैं।
पहला- सोशल मीडिया कंपनी
दूसरा- सरकार
तीसरा- वो जिसने सोशल मीडिया पर अकाउंट बनाया
सोशल मीडिया पर कोई खुराफात करता है तो क्या होगा
कोई फेक न्यूज, दंगा भड़काने की कोशिश, अश्लील सामग्री सोशल मीडिया पर डालता है तो कौन जिम्मेदार होगा? इसे तय करने का जिम्मा सरकार के ऊपर है, वही इसके लिए नियम-कायदे बनाती है।
क्या है आईटी एक्ट की धारा 79
इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट का सेक्शन 79 के अनुसार जब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म किसी संदेश को एक से दूसरे व्यक्ति के पास ट्रांसफर करता है और सोशल मीडिया उस संदेश को ट्रांसफर करने में सिर्फ एक ब्रिज की तरह काम करता है तो उसपर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी। इसका मतलब यह है कि जब तक एक मंच किसी भी तरह से अपनी सामग्री में हस्तक्षेप किए बिना Aसे B तक संदेश पहुंचाने वाले संदेशवाहक के रूप में कार्य करता है, यह संदेश प्रसारित होने के कारण लाए गए किसी भी कानूनी अभियोजन से सुरक्षित रहेगा। हालांकि सरकार और उसकी एजेंसी के कहे जाने पर मैसेज को हटाने में नाकामयाब रहने पर उसे कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को इंटरमीडियरी का दर्जा कैसे मिला
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को सुरक्षा मुहैया करवाने को लेकर अमेरिका के 1996 कम्युनिकेशंस डीसेंसी एक्ट की धारा 230 का हवाला दिया जाता है। इस धारा के अनुसार इंटरैक्टिव कंप्यूटर सर्विस सेवा को सिर्फ प्रकाशक या मंच के तौर पर देखा जाएगा, जो किसी दूसरे की विषय वस्तु को सिर्फ पहुंचाने का काम करता है। भारत में केंद्र सरकार की ओर से आईटी एक्ट की धारा 79 के तहत ये सुरक्षा मुहैया कराई जाती है।
वाट्सअप, फेसबुक, गूगल समेत अन्य कंपनियों ने किया पालन, ट्विटर का क्या?
अगर किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को इंटरमीडियरी का दर्जा मिलता है तो वह किसी भी तरह की कानूनी कार्रवाई से बच सकता है। मसलन अगर कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति द्वारा किए गए किसी पोस्ट के खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाता है तो उसमें उस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाएगी यानी प्लेटफॉर्म पूरी तरह से सुरक्षित रहेगा। इन प्लेटफॉर्म्स को क्रिमिनल और सिविल दोनों तरह के लाइबिलिटी से छूट मिलती है यानी अगर कोई व्यक्ति किसी सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर मानहानि का दावा करता है तो कोर्ट उस पोस्ट करने वाले के साथ-साथ सोशल मीडिया कंपनी को भी इसमें तलब कर सकती है। इसके बाद कंपनी और इस पोस्ट करने वाले दोनों व्यक्ति पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है। वाट्सअप, फेसबुक, गूगल और कू समेत कई कंपनियों ने नए नियमों का पालन शुरू कर दिया था लेकिन ट्विटर जिद पर अड़ा रहा। इंटरनेट मीडिया के नए नियम में ही यह प्रविधान है कि जो इंटरनेट मीडिया इन नियमों का पालन नहीं करेगा वह इंटरमीडियरी सुविधा खो देगा। ट्विटर के साथ यही हुआ है। इस धारा के तहत सुरक्षा न मिल पाने की वजह से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के कर्मचारियों को भी जवाबदेह बनाए जाने का खतरा है।
आगे की राह नहीं होगी आसान
इन सारी बातों का असर दिखने भी लगा है और कई मुकदमें दर्ज भी हो चुके हैं। दिल्ली में बुजुर्ग की पिटाई के वायरल वीडियो को लेकर बॉलीवुड एक्ट्रेस स्वरा भास्कर, ट्विटर इंडिया के मनीष माहेश्वरी समेत अन्य लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई है। गाजियाबाद पुलिस इस मामले में पहले ही ट्विटर, ट्विटर इंडिया समेत अन्य लोगों पर एफआईआर दर्ज कर चुकी है, जिसको लेकर काफी विवाद हो रहा है।
नीली चिड़िया की मनमानी वाली उड़ान
दरअसल, लगातार ट्वीटर पर मनमानी करने और भारत सरकार के नए आईटी कानून को मानने को लेकर टालमटोल के आरोप लग रहे थे। इसके अलावा नीला टीक हटाना फिर बहाल करने जैसे कदम उठाकर सरकार को एक तरह से चैलेंज देने की भी कोशिश की जा रही थी। ट्विटर ने सरकार के साथ टकराव के बीच भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू और संघ प्रमुख मोहन भगवत समेत कई दिग्गजों के अकाउंट को अनवेरिफाइड श्रेणी में डाल दिया था। इससे पहले बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा के ट्लकिट वाले ट्वीट को मैन्युपुलेटेड मीडिया का टैग लगा दिया था। लद्दाख के कुछ हिस्सों को चीन के हिस्से के रूप में दिखाया था। कोरोना के इंडियन वैरिएंट वाले ट्वीट पर कोई कार्रवाई नहीं किया जाना। किसान आंदोलन के दौरान संस्पेंड किए गए अकाउंट को फिर से एक्टिव कर देना। लोगों को भड़काने वाले ट्वीट्स और हैशटैग चलाने की अनुमति देना।
नया नहीं है टकराव
भारत सहित कई देशों में सोशल मीडिया के साथ टकराव के पीछे मुख्य कारण यह है कि वहां की सरकार द्वारा अपने-अपने स्तर पर नियम बनाया जाना। ऑस्टेलिया की स्कॉट मॉरीशन सरकार और फेसबुक के बीच का विवाद तो अभी कुछ ही महीने पुराना है जब फेसबुक ने ऑस्ट्रेलिया में सभी मीडिया कंटेंट को ब्लॉक कर दिया था। तब वहां के प्रधानमंत्री ने दो टूक कहा था कि वे दुनिया को बदल रहे हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि वे अब दुनिया को चलाएंगे भी। हम बड़ी टेक कंपनियों के धमकियों से डरने वाले नहीं है। इसी तरह 2021 के जून के महीने में नाइजीरिया के राष्ट्रपति के एक पोस्ट को हटाने से नाराज सरकार ने देश में ट्विटर को अनिश्चित काल के लिए बैन कर दिया था। भारत ने भी हाल ही में सोशल मीडिया के नए कानून बनाएं हैं। जिसके बाद से केंद्र और ट्विटर के बीच तनातनी चल रही है। वैसे यह टकराव अचानक शुरू नहीं हुआ। यूपीए-2 के समय ही आईटी एक्ट की धारा 66 ए को लेकर सोशल मीडिया पर अंकुश लगाने पर पहला टकराव हुआ था। हालांकि तब सोशल मीडिया कंपनियों से अधिक इसका उपयोग करने वाले यूजर्स पर अंकुश लगा था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने ने इस कानून को खत्म कर दिया। मोदी सरकार सत्ता में आई तो सबसे पहले 2016-17 में टकरा हुआ। तब सरकार ने नए कानून बनाने की भी पहल की थी, जिसमें कहा गया कि सभी मीडिया कंपनियों को भारतीय यूजर्स का डाटा भारत में रखना होगा और उन्हें यहां अलग से लाइसेंस भी लेना होगा। सरकार का यह तर्क है कि कंपनियां देश के अंदर कानूनी प्रक्रिया से इसलिए बच जाती है क्योंकि उन्होंने लाइसेंस देश के अंदर नहीं लिया। लेकिन इसके लिए भी सोशल मीडिया कंपनियां आज तक तैयार नहीं हुई। इसके बाद सरकार का टकराव फेसबुक से हुआ। इस सोशल मीडिया कंपनी पर राजनीतिक दलों के साथ काम करने वाले कैंब्रिज एनालिटिका के साथ मिलकर चुनावी सभा के लिए डाटा लीक करने का आरोप लगा था। मोदी सरकार ने फेसबुक को चेतावनी दी थी कि अगर उसने डाटा चोरी के जरिए चुनाव को प्रभावित करने का कोई प्रयास किया तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। फेसबुक के अधिकारी मार्क जुकरबर्ग को भी नोटिस भेजा गया था। लेकिन बाद में फेसबुक पर भरोसा दिलाने के बाद विवाद शांत हो गया। देश में आम चुनाव से पहले ट्विटर से भी टकरा हुआ था तब चुनाव से ठीक पहले शिकायत मिलने के बाद संसदीय समिति ने सोशल मीडिया कंपनी के अधिकारियों को नोटिस भेजा था कि दक्षिणपंथी विचारों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जानबूझकर टारगेट किया जा रहा है।
अब ये तो हो सारा निचोड़ हमने आपके सामने रख दिया। अब आप कह रहे होंगे कि ट्विटर बनाम सरकार में हमारा स्टैंड क्या है। तो आपको बता दें कि सोशल मीडिया बनाम सरकार में सारा विवाद फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन की बहस में उलझकर रह जाता है। लेकिन इससे इतर इसे देखने की कोशिश करेंगे तो पाएंगे कि वर्तमान दौर में सोशल मीडिया जाने-अंजाने में अधिकांश लोगों की जिंदगी का अपरिहार्य हिस्सा बन गया है तो इसके सकारात्मक और नकारात्मक पहलू भी सामने आए हैंं। बच्चों का पॉर्न कंटेट सोशल मीडिया के माध्यम से फैलाए गए, जिस पर देश की सर्वोच्च अदालत को हस्तक्षेप करना पड़ा। कश्मीर को अव्यवस्थित करने के लिए विभिन्न जगहों से सोशल मीडिया के उपयोग की बातें सामने आईं। बच्चा पकड़ने वाली खबर फैलने के बाद भीड़ द्वारा कुछ निर्दोष लोगों की हत्या तक इसी अफवाह के चलते कर दी। सरकार का अपना तर्क है कि ऐसी तमाम चीजों पर लगाम लगाने के लिए और इस पर वक्त रहते एक्शन लेने के लिए कुछ कायदें-कानून मानने होंगे। लेकिन सोशल मीडिया कंपनियों को तमाम जगहों पर कानून की आड़ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम लगाने की मंशा नजर आ रही है। -अभिनय आकाश