प्रियंका गांधी की यूपी में सक्रियता से परेशान सपा मुकाबले में डिंपल यादव को उतारेगी

By संजय सक्सेना | Oct 22, 2021

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा की ‘तेजी’ ने समाजवादी पार्टी को हैरान-परेशान कर दिया है। कुछ समय पहले तक समाजवादी पार्टी के जो नेता यह समझ रहे थे कि अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में सपा-भाजपा के बीच सीधे टक्कर होगी, अब उन्हें डर सताने लगा है कि प्रियंका वाड्रा की ‘तेजी’ के चलते यूपी विधानसभा चुनाव में मुकाबला कहीं त्रिकोणीय नहीं हो जाए। यदि ऐसा हुआ तो समाजवादी पार्टी को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। कांग्रेस आज इस स्थिति में भले नहीं हो कि वह यूपी की सत्ता हासिल कर सके, लेकिन दूसरों का खेल बिगाड़ने की ताकत तो कांग्रेस रखती ही है। प्रियंका के चलते अगर समाजवादी पार्टी का दो-तीन प्रतिशत वोट भी इधर-उधर हो गया तो इससे सपा की 20-25 सीटें कम हो सकती हैं, जो सत्ता की बांट जोह रहे अखिलेश के लिए शुभ संकेत साबित नहीं होगा।


सपा को प्रियंका की सक्रियता से तो बेचैनी है ही इसके अलावा जिस तरह से प्रियंका महिला वोटरों को अपने पाले में खींचने में लगी हैं, उससे भी सपा नेताओं की पेशानी पर बल पड़ गए हैं। प्रियंका द्वारा पहले 40 फीसदी महिलाओं को टिकट देने की बात और अब उनके द्वारा छात्राओं को स्कूटी और स्मार्टफोन देने की घोषणा ने चुनाव का विमर्श ही बदल दिया है। प्रियंका लगतार यूपी में दौड़ लगा रही हैं, जहां कहीं भी उन्हें वोट बैंक की सियासत चमकाने का मौका मिलता है, वह वहां पहुंच जाती हैं। उन्नाव से लेकर हाथरस, लखीमपुर खीरी, आगरा की घटनाएं इसकी सबसे बड़ी मिसाल हैं। प्रियंका हर हादसे को महिलाओं के स्वाभिमान से जोड़ देती हैं। वहीं महिलाओं के सम्मान और महंगाई के मुद्दे के सहारे भी प्रियंका आधी आबादी के वोटरों को लुभाने और योगी सरकार को कटघरे में खड़ा करने में लगी हैं, जिस तेजी से प्रियंका बिना मजबूत संगठन होते हुए भी मीडिया से लेकर आमजन का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं, उतनी सक्रियता मजबूत संगठन होने के बाद भी अखिलेश यादव नहीं दिखा पा रहे हैं।

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योगी सरकार को घेरने में लगे सपा प्रमुख अखिलेश यादव के बयानों में भी एक रूपता दिखाई देती है, जबकि प्रियंका एक मुद्दा उठाती हैं और उसको हवा में उछालने के बाद आगे बढ़कर दूसरा मुद्दा तलाशने में लग जाती हैं। प्रियंका अपनी सक्रियता से योगी सरकार की पुलिस को भी इतना बेबस कर देती हैं कि वह उन्हें कभी नजरबंद कर देती है तो कभी कहीं से जबरन वापस भेज देती है। लखीमपुर कांड के बाद जब प्रियंका को पुलिस ने वहां नहीं जाने दिया और उन्हें सीतापुर में पीएसी के गेस्ट हाउस में नजरंबद कर दिया तो वहां प्रियंका ने झाड़ू लगाकर सुर्खियां बटोर लीं। बाद में दबाव के चलते प्रशासन को प्रियंका को राहुल संग लखीमपुर जाने की इजाजत देनी पड़ ही गई। आगरा में भी ऐसा ही हुआ जहां एक सफाई कर्मी अरूण की पुलिस कस्टडी में मौत हो गई थी। पुलिस ने धारा 144 लगे होने का हवाला देते हुए पहले तो प्रियंका को आगरा नहीं जाने दिया, परंतु जब वह नहीं मानी तो उन्हें हिरासत में ले लिया गया। लेकिन बाद में प्रियंका की जिद्द के चलते उन्हें अरूण के परिवार को सांत्वना देने अरूण के घर जाने की इजाजत देनी ही पड़ गई। यह सब ड्रामा करीब तीन घंटे तक चला, लेकिन जीत प्रियंका की ही हुई। योगी सरकार की तब और भी किरकिरी देखने को मिली जब प्रियंका वाड्रा को रोकने के लिए ड्यूटी दे रहीं महिला पुलिस कर्मी उनको हिरासत में लेने की बजाए उनके साथ सेल्फी लेने को ज्यादा आतुर दिखीं। सेल्फी के चक्कर में सरकार की जो फजीहत हुई उसी के चलते पुलिस कमिश्नर डीके ठाकुर ने ऐसी महिला पुलिस कर्मियों को चिन्हित करके उनके खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने को कहा है। 


बहरहाल, प्रियंका की सक्रियता से बेचैन समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव कांग्रेस नेत्री को समाजवादी तरीके से जवाब देने के लिए अपनी पत्नी और पूर्व सांसद डिंपल यादव को आगे करने का मन बना रहे हैं। इसकी बानगी दशहरा वाले दिन देखने को मिली थी, जब डिंपल ने योगी सरकार पर जबर्दस्त हमला बोला था। डिंपल के कंधों पर महिलाओं से जुड़ी समस्याओं को हाईलाइट करने की जिम्मेदारी डाली जा रही है। इसी कड़ी में समाजवादी पार्टी रसोई गैस के बढ़ते दामों के खिलाफ मोर्चा खोलने जा रही है। ‘महिलाओं की रसोई में, महंगाई का तड़का’ स्लोगन के सहारे सपा इसे महिलाओं के बीच राजनैतिक मुद्दा बनाएगी। समाजवादी पार्टी की महिला सभा सप्ताह में चार दिन महिलाओं से उनके घर पर संवाद करेगी। इस दौरान बढ़ते दामों को लेकर महिलाओं की नाराजगी से मुददे को धार देने की तैयारी है। जिला संगठन की महिला सभा ने घर-घर महिलाओं से संवाद की शुरुआत भी कर दी है।


सपा डिंपल के सहारे आधी आबादी को साधने के लिए अपनी महिला ब्रिगेड को मजबूती प्रदान कर रही है। पार्टी की महिला कार्यकर्ताओं से पूर्व सांसद डिंपल यादव ने संपर्क तेज कर दिया है। जबकि महिला कार्यकर्ताओं की संख्या बढ़ाने के लिए सदस्यता अभियान की शुरुआत भी हो गई है। वहीं दूसरी तरफ महिला मतदाताओं तक पहुंच बनाकर महंगाई के मुद्दे को भुनाने का प्रयास भी तेजी पकड़ने लगा है। इसी के साथ समाजवादी पार्टी अपनी सरकार के समय महिलाओं के लिए किए गए कामों को भी गिनाएगी। सपा की महिला कार्यकर्ता हर विधानसभा क्षेत्र के गांवों में जाएगी। जहां वह महिलाओं व गृहणियों से संवाद करेगी। महिला सभा जहां पिछली सपा सरकार में महिलाओं के लिए शुरू हुई 1090 हेल्पलाइन सेवा जैसी योजनाओं की उपलब्धि गिनाएगी। वहीं महंगाई से उन पर पड़ रहे आर्थिक बोझ के जरिए सरकार को घेरने का प्रयास भी करेगी। सपा महिला सभा, लखनऊ की जिलाध्यक्ष प्रेमलता यादव ने बताया कि सप्ताह में चार दिन विधानसभावार पार्टी की महिला प्रकोष्ठ की कमेटी घर-घर जाकर महिलाओं से संवाद करेगी। उनके साथ महंगाई जैसे मुद्दों पर चर्चा होगी। इसकी शुरुआत महिला सभा ने शुरू कर दी है।

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विजयादशमी के मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी और पूर्व सांसद डिंपल यादव ने मां विंध्यवासिनी के दरबार में मत्था टेका। वाराणसी में उन्होंने मीडिया से बात करते हुए भाजपा पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि भाजपा किसी को भी आतंकवादी घोषित कर सकती है। उन्होंने इस दौरान यूपी भाजपा के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह पर भी निशाना साधा। डिंपल ने कहा कि भाजपा ने किसानों को भी आतंकवादी कहा, जो देश के लिए और इनके खुद के लिए घातक होगा।


खैर, यूपी विधानसभा चुनाव में महिलाओं का वोट तो सभी दल चाह रहे हैं, लेकिन यूपी की राजनीति में महिलाओं की स्थिति कभी संतुष्ट करने वाली नहीं रही। इस बार जरूर प्रियंका गांधी वाड्रा के 40 फीसदी महिलाओं को टिकट देने के ऐलान के बाद सभी दलों में जिताऊ महिला कैंडिडेट की डिमांड बढ़ गई है। प्रियंका के महिला दांव के बाद सभी पार्टियों को टिकट वितरण के लिए नये सिरे रणनीति बनानी पड़ रही है। बात अतीत की कि जाए तो अभी तक भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस सहित प्रमुख दलों ने हमेशा ही महिलाओं को टिकट देने के मामले में कंजूसी बरती है। आंकड़े बताते हैं कि यूपी में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा महिलाओं को टिकट देने का औसत करीब दस फीसदी ही रहा है। 2017 के विधानसभा चुनाव में करीब 24 फीसदी यानी 96 महिलाओं को टिकट दिये गये, जिनकी जीत का औसत 40 फीसदी रहा था। 2017 में भाजपा ने सबसे ज्यादा 46 महिलाओं को टिकट दिया था, जिनमें से 34 विधायक चुनी गईं। तब समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था। सपा ने अपने हिस्से की 289 में से 34 और कांग्रेस ने 114 में से 12 टिकट महिलाओं को दिया था। वहीं बहुजन समाज पार्टी ने भी 21 महिलाओं को चुनाव मैदान में उतारा था। भारतीय जनता पार्टी में पूर्व मंत्री व सांसद रीता बहुगुणा जोशी व उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य सक्रिय महिला नेता हैं। इनके अलावा स्वाति सिंह, नीलिमा कटियार और गुलाबो देवी योगी सरकार में मंत्री हैं।

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कांग्रेस में महिला नेत्रियों की बात की जाए तो यहां प्रियंका गांधी के अलावा आराधना मिश्रा ही कांग्रेस में बड़ा महिला चेहरा हैं। वर्तमान में वह प्रतापगढ़ जिले की रामपुर खास से विधायक व कांग्रेस नेता विधानमंडल दल हैं। 2017 में रायबरेली से विधायक चुनी गईं अदिति सिंह भी बड़ा चेहरा थीं, लेकिन बीच में ही उन्होंने पार्टी से बगावत कर ली।


बात यूपी के क्षेत्रीय राजनैतिक दलों सपा-बसपा में महिला नेत्रियों की स्थिति की जाए तो समाजवादी पार्टी में डिंपल यादव पार्टी की एकमात्र बड़ा महिला चेहरा हैं। दूसरा किसी महिला का जिक्र होता है तो वह हैं समाजवादी महिला सभा की राष्ट्रीय अध्यक्ष जूही सिंह। वह लगातार सक्रिय रहती हैं, लेकिन अब सपा अपनी महिला विंग को मजबूत करने में लग गया है। बसपा में सिर्फ मायावती ही बड़ा महिला चेहरा हैं, जिनके नाम पर पार्टी को वोट मिलते हैं। वह पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं।


-संजय सक्सेना

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