By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Feb 05, 2021
नयी दिल्ली। केंद्रीय कृषि एवं कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने शुक्रवार को तीन नये कृषि कानूनों का पुरजोर बचाव करते हुए कहा कि ये किसानों के जीवन में ‘‘क्रांतिकारी परिवर्तन’’ लाने वाले और उनकी आय बढ़ाने वाले हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा इन कानूनों में किसी भी संशोधन के लिए तैयार होने का यह कतई मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि इन कानूनों में कोई खामी है।
राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर पेश धन्यवाद प्रस्ताव पर जारी चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए तोमर ने यह भी कहा कि किसान संगठनों और विपक्षी दलों द्वारा लगातार इन कानूनों को ‘‘काले कानून’’ की संज्ञा दी जा रही है किंतु अभी तक किसी ने यह नहीं बताया कि आखिर इन कानूनों में ‘‘काला’’ क्या है। उन्होंने विपक्षी दलों के उस दावे को भी खारिज कर दिया कि किसानों का आंदोलन देशव्यापी है और कहा कि यह एक राज्य का मसला है और वहां भी किसानों को बरगलाया गया है। तोमर ने चर्चा के दौरान जहां कृषि कानूनों के फायदे गिनाए, वहीं विपक्षी दलों पर जमकर निशाना भी साधा। कांग्रेस के आरोपों पर पलटवार करते तोमर ने यह तक कह दिया कि ‘‘खून से खेती तो सिर्फ कांग्रेस ही कर सकती है, भाजपा खून से खेती नहीं करती’’।
जाहिर तौर पर उनका इशारा कांग्रेस की ओर से तीन कृषि कानूनों के खिलाफ जारी पुस्तिका ‘‘खेती का खून’’ की ओर था। तीनों कृषि कानूनों को इस समय का एक ज्वलंत मुद्दा बताते हुए तोमर ने कहा कि इसे लेकर विपक्षी सदस्यों ने सरकार को कोसने में कोई कंजूसी नहीं की और इन कानूनों को ‘‘काला कानून’’ बताया। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन मैं बताना चाहता हूं कि किसान यूनियनों से भी दो महीने तक मैं यही पूछता रहा कि कानून में काला क्या है? एक (भी) मुझे बताओ तो? मैं उसको ठीक करने की कोशिश करूंगा, लेकिन मुझे वहां भी मालूम नहीं पड़ा।’’ तोमर ने कहा कि राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान भी विपक्षी सदस्यों ने कानूनों को खराब बताया और इन्हें वापस लेने की मांग की लेकिन किसी ने यह बताने की कोशिश नहीं की कि इन कानूनों के कौन से प्रावधान किसानों के प्रतिकूल हैं?
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सरकार किसानों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध हैं और नए कानूनों का मकसद किसानों की आय में वृद्धि करना है। उन्होंने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने लगातार कोशिश की है कि किसानों की आमदनी दोगुनी हो और किसानी का योगदान देश की जीडीपी में तीव्र गति से बढ़े।’’ तीनों कृषि कानूनों को इस दिशा में उठाया गया एक ‘‘महत्वपूर्ण कदम’’ करार देते हुए तोमर ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों के लिए समर्पित हैं और रहेंगे। कृषि सुधार कानून किसानों के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाले हैं, उनकी आमदनी बढ़ाने वाले हैं। देश आगे बढ़े, किसान आगे बढ़ें और देश का इकबाल पूरी दुनिया में बुलंद हो, इस उद्देश्य के साथ मोदी सरकार काम कर रही है।’’ तोमर ने नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन को एक राज्य का मसला बताया और कहा कि नए कानूनों में ऐसे कोई प्रावधान नहीं हैं जिनसे किसानों की जमीन छिन जाने का खतरा हो।
कांग्रेस के दीपेन्द्र हुड्डा सहित अन्य विपक्षी सदस्यों ने कृषि मंत्री के इस दावे का विरोध किया और इसे लेकर तोमर के साथ उनकी नोकझोंक भी हुई। उन्होंने कहा कि कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएमसी) के भीतर राज्य सरकार का टैक्स है और एपीएमसी के बाहर केंद्र सरकार का टैक्स है। उन्होंने कहा, ‘‘केंद्र सरकार का कानून एक कर को खत्म करता है और राज्य सरकार का कानून कर देने के लिए बाध्य करता है...तो जो कर ले रहा है और लगा रहा है और बढ़ा रहा है, आंदोलन उसके खिलाफ होना चाहिए या जो कर मुक्त कर रहा है उसके खिलाफ होना चाहिए।’’ उन्होंने कहा, ‘‘देश में उलटी गंगा बह रही है।’’
ज्ञात हो कि कृषि कानूनों को लेकर पिछले दो महीने से अधिक समय से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं। किसान संगठनों और सरकार के प्रतिनिधियों के बीच अब तक 11 दौर की वार्ता हुई है लेकिन नतीजा नहीं निकल सका है। तोमर जब बोल रहे थे तो कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कोई टिप्पणी की जो सुनी नहीं जा सकी। इसके जवाब में कृषि मंत्री ने आरोप लगाया, ‘‘पानी से खेती होती है, खून से खेती सिर्फ कांग्रेस ही कर सकती है। भाजपा खून से खेती नहीं कर सकती।’’ तोमर ने किसान संगठनों के साथ हुई वार्ता का जिक्र करते हुए कहा कि सरकार ने पूरी संवेदनशीलता के साथ किसानों से बातचीत की और कभी भी किसानों के खिलाफ एक शब्द तक नहीं बोला।
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन हमने यह जरूर कहा है कि कानूनों के प्रावधानों में कहां गलती है, यह बताइये। उनकी चिंताओं से संबंधित विषयों पर प्रस्ताव दिए गए लेकिन मैंने साथ में यह भी कहा, अगर भारत सरकार किसी भी संशोधन के लिए तैयार है, इसके मायने ये नहीं लगाने चाहिए कि कृषि कानूनों में कोई गलती है।’’ प्रदर्शनकारी किसानों का आरोप है कि इन कानूनों से मंडी व्यवस्था और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद की प्रणाली समाप्त हो जाएगी और किसानों को बड़े कॉरपोरेट घरानों की ‘कृपा’ पर रहना पड़ेगा।