By Anoop Prajapati | Jan 06, 2025
युद्ध में अपने माता पिता को खोकर अनाथ हुए बच्चों के प्रति दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के उद्देश्य से विश्व युद्ध अनाथ दिवस हर साल 6 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन अनाथ बच्चों द्वारा सहन किए गए आघात के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए कई जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इस दिवस का उद्देश्य जागरूकता फैलाना और युद्ध के अनाथ या संघर्ष में बच्चों द्वारा सामना किए गए संकटों को दूर करना है। कई बार देखा गया है कि अनाथालयों में बड़े होने वाले बच्चे अक्सर भावनात्मक और सामाजिक भेदभाव का सामना करते हैं। यह दुनिया भर में मानवीय और सामाजिक संकट बन गया है।
कोरोनो वायरस महामारी ने दुनिया भर में कई बच्चों के लिए खाद्य असुरक्षा और बुनियादी स्वास्थ्य और स्वच्छता सुविधाओं तक पहुंच जैसे मुद्दों को आगे बढ़ाया है। विश्व युद्ध अनाथ दिवस को ऐसे बच्चों के सामने आने वाले मुद्दों की याद दिलाने और दुनिया को यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी के रूप में चिह्नित किया जाता है कि ऐसे बच्चों को भी स्वास्थ्य और शैक्षिक अवसरों तक समान पहुंच प्राप्त हो। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि युद्ध में बहुत से लोगों की जान चली जाती है और कई बच्चे अपने माता-पिता और भाई-बहनों से वंचित रह जाते हैं।
जानिए यह दिन क्यों महत्वपूर्ण है?
पिछले साल दुनिया ने कई तीव्र संघर्ष देखे हैं, जैसे कि इज़राइल और हमास, रूस और यूक्रेन युद्ध, बांग्लादेश और पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता और अफ्रीका के कई देशों में गृह युद्ध। इन संघर्षों के परिणामस्वरूप युद्ध अनाथों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। विश्व युद्ध अनाथ दिवस इन अनाथ बच्चों की ज़रूरतों और कठिनाइयों की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने में मदद करता है। इन बाधाओं को पार करना शायद ही कभी इतना आसान हो, क्योंकि जो बच्चे अपने माता-पिता और भाई-बहनों को अपनी आँखों के सामने मरते हुए देखने के अकल्पनीय दर्द से पीड़ित होते हैं, उन्हें अपने आघात के कारण मुख्यधारा के समाज में घुलने-मिलने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
युद्ध अनाथ दिवस का इतिहास और आंकड़ा
फ्रांस के एसओएस एनफैंट्स एन डिट्रेसेस नाक संगठन ने विश्व युद्ध अनाथ दिवस की स्थापना की। ऐसे बच्चों के लिए संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) ही मुख्य सहारा है। यूनिसेफ के अनुसार पूर्वोत्तर देशों में ऐसे लगभग 9,00,000 बच्चे हैं, जो युद्ध से गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। इसके बाद उन्हें शिक्षा, आवास, भोजन और शारीरिक क्षति से गुजरना पड़ा है। मौजूदा वक्त में ऐसे अनाथों की संख्या अनुमानित आंकड़ों के अनुसार 150 मिलियन तक है, इनमें 52 मिलियन अफ्रीका में 10 मिलियन कैरेबियन और लैटिन अमेरिका में 63 मिलियन एशिया में 10 से 12 मिलियन मध्य एशिया और पूर्वी यूरोप में शामिल हैं। 95 प्रतिशत मामलों में सभी अनाथ बच्चों की उम्र 5 वर्ष के आसपास है। रूस-यूक्रेन युद्ध और इजरायल-हमास युद्ध के बाद ये आंकड़ा और बढ़ा है।
समझिए इस दिन का महत्व
यूनिसेफ का अनुमान है कि 2015 तक दुनिया भर में 140 मिलियन अनाथ बच्चे थे। 18वीं, 19वीं और 20वीं सदी में लड़े गए युद्धों में मरने वाले लगभग आधे लोग नागरिक थे। द्वितीय विश्व युद्ध में यह संख्या बढ़कर दो-तिहाई हो गई और 1980 के दशक तक लगभग 90% पीड़ित नागरिक थे। इसलिए, 1990-2001 के बीच अनाथों की अनुमानित संख्या में वृद्धि हुई है। हालाँकि, यूनिसेफ ने कहा कि यह संख्या धीरे-धीरे 0.7% प्रति वर्ष की दर से घट रही है, लेकिन इस संबंध में अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है, क्योंकि हर गुजरते साल के साथ नए संघर्ष सामने आ रहे हैं। अनाथों की सुरक्षा की आवश्यकता भी अधिक गंभीर होती जा रही है।
बच्चे ऐसे हमलों का मूक लक्ष्य बन जाते हैं और अक्सर उन पर किसी का ध्यान नहीं जाता। वे उथल-पुथल, विस्थापन, नस्लीय उथल-पुथल और संसाधनों की कमी के जीवन में बड़े होते हैं। युद्ध की स्थितियों में, बहुत से बच्चे यौन उत्पीड़न, जबरन मजदूरी और मानव तस्करी के भी शिकार होते हैं। युद्ध में अनाथ हुए बच्चों का विश्व दिवस उन सभी अन्यायों और चुनौतियों को उजागर करने में महत्वपूर्ण हो जाता है जिनका सामना वे अपने जीवन जीने में करते हैं।
मानसिक पीड़ा, आघात से उबारना होता है मुश्किल
युद्ध ग्रस्त बच्चों को इसकी पीड़ा से उबारना बेहद मुश्किल कार्य होता है। जिन बच्चों ने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया है या जिन्होंने सिर्फ अपनी माता या सिर्फ पिता को खोया है, उनकी मानसिक पीड़ा को महसूस करने मात्र से ही कलेजा फट जाता है। ये वही बच्चे होते हैं, जो पूरी तरह बेघर और बेसहारा हो जाते हैं। इस छोटी से उम्र में अपने माता या पिता को खो देते हैं। जिस घर या आंगन में उनके खेलने-कूदने की उम्र थी, उसे वह युद्ध की बमबारी में खो चुके होते हैं।
फिर उनके लिए पूरी तरह एक नई दुनिया तैयार करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। इनकी पढ़ाई-लिखाई से लेकर इनके लालन-पालन और लाड-प्यार की चिंता करने वाले माता-पिता के नहीं होने पर उनकी दुर्दशा को महसूस करने मात्र से ही दिल-दिमाग हिल उठता है। मगर ऐसे बच्चों की जिंदगी को ही फिर से पटरी पर लाने के लिए विश्वयुद्ध अनाथ दिवस मनाने की शुरुआत हुई।