तिरुपति बालाजी- सनातन धर्मियों की मांग भावनाओं से खिलवाड़ करने वालों को मिले सख्त सज़ा

By दीपक कुमार त्यागी | Sep 23, 2024

आंध्रप्रदेश के तिरुमाला पर्वत पर स्थित पहाड़ियां शेषनाग के 7 फनों के आधार पर बनीं हुई है, उनको 'सप्तगिरि' कहा जाता है। इन पहाड़ियों की 7वीं पहाड़ी पर ही भगवान तिरुपति वेंकटेश्वर या बालाजी का दिव्य मंदिर स्थित है, जो कि 'वेंकटाद्री' के नाम से भी प्रसिद्ध है। वैसे तो इस अद्भुत भगवान तिरुपति वेंकटेश्वर या बालाजी के मंदिर की महत्ता को देश व दुनिया में अधिकांश लोग जानते है। इसी दिव्य महिमा के चलते ही देश व दुनिया से हर वर्ष करोड़ों श्रद्धालु इस दिव्य मंदिर के दर्शन पाने के लिए आते हैं। इस भव्य दिव्य मंदिर में स्थापित भगवान वेंकटेश्वर या बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। सनातन धर्म संस्कृति व परंपराओं में ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु ने कुछ समय के लिए इस क्षेत्र के ही 'स्वामी पुष्करणी' नामक सरोवर के किनारे निवास किया था, यह सरोवर तिरुमाला के पास ही स्थित है। इस दिव्य अद्भुत मंदिर के संदर्भ में मान्यता है कि यहां आने के पश्चात व्यक्ति के जीवन भर के सभी पाप धुल जाते हैं और उसको जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है और वह भगवान के तिरुपति बालाजी के श्री चरणों में स्थान प्राप्त करके मोक्ष प्राप्त करता है। 


भारत की आज़ादी से पहले वर्ष 1933 में तिरुपति बालाजी के इस मंदिर का पूरा प्रबंधन मद्रास सरकार ने अपने हाथ में ले लिया था और रोजमर्रा के कार्य संपन्न करने के लिए एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति 'तिरुमाला-तिरुपति' का गठन करके उसके हाथ में इस मंदिर का प्रबंधन सौंप दिया गया था। लेकिन जब आंध्रप्रदेश राज्य का गठन हुआ तो इस प्रबंध समिति का पुनर्गठन किया गया और इस मंदिर की प्रबंध समिति में आंध्र प्रदेश सरकार के एक प्रशासनिक अधिकारी को प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त कर दिया गया, जब से ही इस प्रबंध समिति 'तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी)' के द्वारा मंदिर से जुड़े हुए हर प्रकार के कार्यों को निर्बाध रूप से संपन्न किया जा रहा है। यहां आपको बता दें कि इस दिव्य अलौकिक मंदिर में रोजाना भक्तों की भारी भीड़ अपने आराध्य के दर्शन के लिए उमड़ती है, इस मंदिर में लगभग 50 हजार से भी अधिक श्रद्धालु देश व दुनिया से दर्शन करने के लिए आते हैं। इन सभी श्रद्धालुओं की देखरेख की पूरी जिम्मेदारी टीटीडी की होती है। मंदिर के श्रीवारी लड्डू का प्रसाद इतना प्रसिद्ध है कि वह देश व दुनिया में बसे हुए करोड़ों भक्तों के पास रोजाना लाखों लड्डू की संख्या में जाता है और यह प्रसाद मंदिर प्रबंध समिति के द्वारा स्वयं की रसोई में खुद ही बनाया जाता है। मंदिर में रोजाना भक्तों की भारी भीड़ होने के चलते मंदिर प्रबंध समिति के पास रोजाना ही भारी मात्रा में धन दौलत व खाने पीने और इस्तेमाल करने का सामान आता है, उस सबके बावजूद भी मंदिर प्रबंध समिति सनातन धर्म के करोड़ों अनुयायियों की आस्था की रक्षा करने में नाकाम रही है।

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एक रिपोर्ट के अनुसार मंदिर का  लड्डुओं का यह प्रसिद्ध प्रसाद घी की जगह जानवरों की चर्बी व मछ्ली के तेल में बन रहा है, इस लड्डू के प्रसाद ने दिव्य मंदिर  की प्रवित्रता को चोट पहुंचाते हुए ना जाने सनातन धर्म के कितने शाकाहारी अनुयायियों का धर्मभ्रष्ट करने का दुस्साहस किया है। लेकिन अफसोस हर माह प्रभु भक्तों से करोड़ों रुपए कमाने वाली मंदिर प्रबंध समिति उस अपार धन खाने पीने की वस्तुओं का टेस्ट करने वाली एक स्थाई लैब तक निर्माण भी आजतक नहीं कर पाई। प्रसाद में जानवर की चर्बी व तेल की मिलावट का यह खेल हिन्दू धर्म के भक्तों की भावनाओं से खिलवाड़ का एक बहुत बड़ा उदाहरण है।


तिरुपति के प्रसादम के श्रीवारी लड्डू से जुड़े कुछ तथ्य -


प्रसादम के श्रीवारी लड्डू को पहली बार 2 अगस्त 1715 को मंदिर में प्रसाद के रूप में भक्तों को बंटवाया गया था। हालांकि कुछ प्राचीन शिलालेखों के अनुसार 1480 से लड्डू के अस्तित्व की जानकारी मिलती है। लेकिन छः बदलाव के बाद आज वर्तमान स्वरूप के रूप में प्रसादम का यह श्रीवारी लड्डू का प्रसाद भक्तों के लिए उपलब्ध है।


प्रसादम के लड्डू बनाने में हर महीने 42 हजार किलो देशी घी, 22 हजार 500 किलो काजू, 15 हजार किलो किशमिश व 6 हजार किलो इलायची लगती हैं।


प्रसादम के यह प्रसिद्ध लड्डू प्रतिदिन मंदिर की रसोई में ही बनता है, जिसे पोटू कहते हैं और लड्डू तैयार करने की प्रक्रिया को दित्तम कहते हैं।


प्रसादम के इस श्रीवारी लड्डू के तीन साइज हैं, छोटा 40 ग्राम, मध्यम 175 ग्राम और बड़ा 750 ग्राम का होता है। छोटे लड्डू को मंदिर में दर्शन करने वाले भक्तों को प्रबंध समिति के द्वारा निशुल्क प्रदान किया जाता है।


प्रसादम का यह प्रसिद्ध श्रीवारी लड्डू हर दिन तीन लाख बनाकर के भक्तों को वितरित किये जाते है और इस लड्डू की बिक्री से तिरुपति बालाजी मंदिर को 500 करोड़ रुपए की भारी-भरकम वार्षिक आय होती है।

 

लेकिन आज विचारणीय तथ्य यह है कि 'सनातन धर्म' के अनुयायियों के अपने ही प्यारे देश में ही उनकी आस्था पर बार-बार प्रहार किया जा रहा है। कभी उनकी तुलना मच्छर से की जाती है। कभी उनके धार्मिक परंपराओं, रीति-रिवाजों व संस्कृति पर प्रश्नचिन्ह लगाया जाता है। कभी पूरी धर्म को पाखंड बताने का दुस्साहस किया जाता है। कभी कहा जाता है कि ऐसा कोई धर्म ही नहीं है। कभी सनातन धर्म में पूजनीय गाय माता को कसाईखाना में काटा जाता है। कभी राजनेताओं के द्वारा अपने क्षणिक स्वार्थों को पूरा करने के लिए सनातन धर्म के अनुयायियों में जाति के नाम पर फूट डालकर के उन लोगों को जातियों में बांटने की साज़िश रची जाती है। कभी तिरुपति बालाजी जैसे विश्व प्रसिद्ध मंदिर के प्रसाद में जानवरों की चर्बी व मछ्ली के तेल की मिलावट करके उनको धर्मभ्रष्ट करने की गंभीर साज़िश का खुलासा होता है। कभी उनके मठ मंदिरों को मिलने वाले दान का उपयोग दूसरे धर्म के लोगों के विकास पर किया जाता है। कभी सनातनियों पर अपने ही देश में तरह-तरह का अंकुश लगाया जाता है। कभी उनको सप्लाई किये जाने वाला दुध, सब्जी जूस आदि तक को भी दूषित करके धर्मभ्रष्ट करने की साज़िश रची जाती है।


लेकिन अब विचारणीय तथ्य यह है कि आखिर कब तक यूं ही अपने ही प्यारे देश में हम सभी सनातन धर्म के अनुयायियों के साथ छल होता रहेगा और फिर भी हमारे देश के ताकतवर हिन्दू धर्म के ठेकेदार व नीति-निर्माता राजनेता हमारे सनातन धर्म को संवैधानिक संरक्षण देने से बचते रहेंगे। लेकिन देश में जिस तरह से बार-बार सनातन धर्म के विरुद्ध एक नकारात्मक माहौल बनाया जाता है, उसके चलते अब वह समय आ गया है जब सनातनियों को संवैधानिक सरंक्षण देने के लिए केंद्रीय व राज्य के स्तर पर 'सनातन धर्म कार्य मंत्रालय' जो कि सनातन धर्म के हित से जुड़े हुए सभी मामलों को देखें और उनके हितों की रक्षा करें जरूरी है। वहीं केंद्र सरकार के इस मंत्रालय के अधीन 'सनातन धर्म रक्षा बोर्ड का गठन हो, जो सनातन धर्म से जुड़ी प्राचीन संस्कृति, परंपराओं आदि की रक्षा करते हुए धर्म की रक्षा करने का कार्य करें। वहीं देश व दुनिया में सनातन धर्म के सभी छोटे-बड़े, प्राचीन व नये धार्मिक स्थलों की रक्षा के लिए 'देवस्थान रक्षा बोर्ड' का गठन होना जरूरी हो गया है, जिससे इन सभी स्थानों का सही ढंग से रखरखाव हो और भक्तों को सही ढंग से सुविधाएं प्राप्त हो पाएं और फिर कभी किसी साज़िश या लापरवाही से से किसी सनातनी का धर्मभ्रष्ट ना हो। अब वह समय आ गया है जब देश में उपरोक्त सभी संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा देते हुए उनको जल्द अस्तित्व में लाया जाए और उनके द्वारा सनातन धर्म को संवैधानिक रूप से संरक्षण देकर के देश व विदेश के स्तर पर बार-बार रची जा रही साज़िशों से भविष्य में बचाया जाए। 


वैसे भी विश्व के सबसे प्राचीन धर्म सनातन धर्म के अनुयायियों का धर्मभ्रष्ट करने की साज़िश हजारों वर्षों से होती आ रही हैं। लेकिन फिर भी सनातन धर्म अपने धार्मिक मूल्यों और अपनी दैवीय शक्ति के दम पर पूरी दुनिया में अपना एक अहम विशिष्ट स्थान आज भी बनाएं हुए है। सनातन धर्म के लगातार देशी विदेशी षड्यंत्रकारियों के निशाने पर रहने के बावजूद भी उसकी धर्म ध्वजा आदिकाल से गर्व से लहराती आ रही हैं। जिसकी वज़ह से ही कुछ विधर्मी लोग सनातन धर्म को बदनाम करने के लिए तरह-तरह की साज़िश रचते रहते हैं, अभी हाल ही में विश्व प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी मंदिर में मिलने वाले प्रसादम के लड्डू में जानवर की चर्बी व मछ्ली का तेल युक्त घी मिलने की घटना भी लोगों को उस तरह की किसी साज़िश का हिस्सा ही लगती है। इस धर्मभ्रष्ट करने की घटना पर अब पूरे देश में हंगामा बरपा हुआ है। इस मिलावटखोरी की घटना को लेकर देश व दुनिया में बसे हुए सनातन धर्म के अनुयायियों में बेहद गुस्सा व्याप्त है, वह यह जानना चाहते हैं कि देवालय के प्रसाद को निशाना बनाकर के धर्मभ्रष्ट करने का दुस्साहस करने की यह गंभीर साज़िश किसकी है। जब से सनातनियों की आस्था के केंद्र तिरुपति बालाजी के प्रसाद में मिलावट की रिपोर्ट सार्वजनिक हुई है, तब से ही करोड़ों सनातन धर्म के प्रेमियों की आंखें उस षड्यंत्रकारी को ढूंढ रही हैं। आंध्रप्रदेश के साथ पूरे देश में सनातन धर्म को बचाने के लिए धार्मिक व राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की चर्चाओं का जबरदस्त युद्ध छिड़ गया है। चर्चाओं का आलम यह हो गया है कि मंदिर के प्रसाद के लड्डू में मिलावट के इस मामले में लोग हकीकत जानने के लिए सीबीआई जांच तक की मांग कर रहे हैं, वह दोषियों को फांसी देने मांग तक कर रहे हैं। सनातन धर्म के लोग आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू से दोषियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करने की मांग कर रहे हैं। खैर तिरुपति बालाजी जैसे मंदिर में प्रसाद में घी की जगह मछली का तेल और जानवरों की चर्बी मिलाई जाने पर विवाद अब भी जारी है। लेकिन इस मामले के बाद आज विचारणीय तथ्य यह है कि क्या सनातन धर्म के अनुयायियों की आस्था से खिलवाड़ करने वाले लोगों के खिलाफ इस बार धरातल पर कोई ठोस कार्रवाई होगी या हर बार-बार की तरह आस्था से खिलवाड़ करने वाले गुनेहगार एक बार फिर अपने भ्रष्ट जुगाड़ों के दम पर साफ बच जायेंगे।


- दीपक कुमार त्यागी

वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार व राजनीतिक विश्लेषक

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