Tipu Sultan Death Anniversary: मैसूर के टाइगर कहे जाते थे टीपू सुल्तान, दुनिया से आज ही के दिन हुए थे विदा

By अनन्या मिश्रा | May 04, 2024

आज ही के दिन यानी की 04 मई को सुल्तान फतेह अली खान सहाब यानी कि टीपू सुल्तान की मौत हो गई थी। उनको भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के तौर पर याद किया जाता है। बता दें कि टीपू सुल्तान को हमेशा अपनी बहादुरी और निडरता के लिए जाना जाता था। टीपू सुल्तान ने दक्षिण भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का पुरजोर विरोध किया था। वह मैसूर के राजा थे, जिस कारण उनको 'मैसूर का टाइगर' भी कहा जाता था।


टीपू सुल्तान को एक ऐसे शासक के रूप में जाना जाता था। जो अपनी सेना और और जनता के लिए नई चीजों का प्रयोग करते थे। टीपू सुल्तान के पिता का नाम हैदर अली और माता का नाम फातिमा फखरू निशा था। टीपू सुल्तान ने अपने शासनकाल के दौरान प्रशासनिक बदलाव करते हुए नई राजस्व नीति को अपनाने के अलावा अन्य भी कई प्रयोग किए थे। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर टीपू सुल्तान के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...

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जन्म और शिक्षा

कर्नाटक के देवनहल्ली शहर में 20 नवंबर 1750 को टीपू सुल्तान का जन्म हुआ था। इनके पिता हैदर अली दक्षिण भारत में मैसूर के साम्राज्य के एक सैन्य अफसर थे। मैसूर के साम्राज्य के वास्तविक शासक के रूप में टीपू सुल्तान के पिता साल 1761 में सत्ता में आए। हालांकि टीपू के पिता अधिक पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपने बेटे टीपू सुल्तान को अच्छी शिक्षा दी थी।


बांस के रॉकेट का आविष्कार

बता दें कि टीपू सुल्तान ने अपने शासनकाल में सबसे पहले बांस से बने रॉकेट का आविष्कार किया था। बांस से बने यह रॉकेट हवा में करीब 200 मीटर की दूरी तय कर सकते थे। वहीं इनको उड़ाने के लिए 250 ग्राम बारूद का इस्तेमाल किया जाता था। बांस के बाद टीपू ने लोहे के इस्तेमाल से रॉकेट बनाना शुरू कर दिया। जिसकी वजह से यह पहले के मुकाबले अधिक दूरी तय कर सकते थे। हालाँकि लोहे वाले रॉकेट में बारूद का इस्तेमाल अधिक किया जाता था। इससे विरोधियों का ज्यादा नुकसान होता था।


लड़ाई में रॉकेट का इस्तेमाल

टीपू ने अपने शासनकाल में कई तरह के प्रयोग किए थे। उनके इस बदलाव की वजह से उनको एक अलग राजा की उपाधि भी प्राप्त है। टीपू के पिता हैदर अली के पास करीब 50 से भी ज्यादा रॉकेटमैन थे। इन रॉकेटमैन का वह अपनी सेना में बखूबी इस्तेमाल किया करते थे। दरअसल, इनको रॉकेटमैन इसलिए भी कहा जाता था, क्योंकि इनको रॉकेट चलाने में महारथ हासिल थी। वह युद्ध के दौरान अपने दुश्मनों पर ऐसे निशाने लगाते थे, जिससे विरोधियों को काफी नुकसान होता है। बताया जाता है टीपू सुल्तान के शासनकाल में पहली बार लोहे के केस वाली मिसाइल रॉकेट बनाई गई थी।


टीपू सुल्तान की मौत

जानकारी के मुताबिक चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध के दौरान हैदराबाद और मराठों के निजाम ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शाही बलों को अपना समर्थन दिया था। इसके बाद उन्होंने टीपू सुल्तान को हराया था। वहीं 04 मई 1799 में टीपू सुल्तान की हत्या कर दी गई थी।

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