संतुष्ट जीवन के नुस्खे (व्यंग्य)

By संतोष उत्सुक | Nov 18, 2020

संतुष्ट जीवन बिताने के कौन से नुस्खे हैं, यह भेद अभी पूरी तरह खुला नहीं, लेकिन इधर महंगे रंगीन मास्क गले में लटकाए विकासजी ने कुदरत द्वारा रचे खूबसूरत पर्यावरण को अपनी योजनाओं से मालामाल कर रखा है जिससे हर तरफ बहार है। खिले हुए फूलों के सामने मोर नाच रहे हैं । इलेक्ट्रोनिक खेत में नियमित उगने वाले डाटा ने जीवन में खासी खुशियां पैदा की हैं। कारनामों में व्यस्त कर इतना सुख पहुंचा देता है डाटा कि भूख बेहोश हो जाती है।

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ऑनलाइन शोपिंग, मनचस्प फ़िल्में, वीडियो, व्ह्त्सेप कक्षा ने सारे गम भुला दिए हैं। इन्टरनेट पर घंटों बिताने के बाद कुछ और करना, सोचना व समझना बिल्कुल स्वादिष्ट नहीं लगता। पेट में जीवित रहने लायक खाद्य हो और विशवास पिला दिया हो कि कहीं न कहीं से, कुछ न कुछ खाने का प्रबंध होता रहेगा, बिना बुलाए कोई आकर मीठी मीठी बातें करता, सुन्दर सपने दिखाता रहेगा तो तन और मन संतुष्ट रहता है। तन और मन संतुष्ट रहने लगें तो जीवन, जीवन के सर्वश्रेष्ठ मार्ग यानी आध्यात्मिक रास्ते पर तेज़ी से चल पड़ता है और भूख बहुत कम लगने लगती है। जब व्यक्ति सांसारिक तत्वों से ऊपर उठने लगे तो आत्मिक आनंद की स्थिति की ओर अग्रसर होना स्वाभाविक है।

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हमारी सभ्यता, संस्कृति व सामाजिक मान्यताएं सदियों से सादगी, सरलता की समर्थक रही हैं, वे भौतिकवाद पसंद नहीं करती। इस मामले में आज तक, आम लोगों से लेकर राष्ट्रीय व्यक्तियों के मुख्य प्रेरक गांधीजी रहे हैं। अनेक सुअवसरों पर हमारे राष्ट्रीय नायकों ने देशवासियों को गांघी के रास्ते पर चलने के लिए उद्वेलित किया है क्यूंकि वे आत्मसंतुष्टि का सबसे आसान, विश्वसनीय और सस्ता रास्ता हैं। ऐसा कर हम हिन्दुस्तानी बहुत संतुष्ट भी होते हैं। हमारी सामाजिक व धार्मिक मान्यताएं, हमें इतिहास बदलते रहने, उत्सव प्रियता बनाए रखने, दर्जनों किस्म की बहसों में अपना कीमती समय व्यतीत करने के लिए प्रेरित करती हैं। राजनीतिक विश्वास इतना गहरा रोपित है कि ज़रा सी संतुष्टि प्राप्त कर हम अपना कीमती मत बेचकर खुश हो जाते हैं। 


ऐसा तंत्र विकसित करने वाले अपने यशस्वी नायकों को हम कैसे नकार सकते हैं जिन्होंने हमारी इस विशेषता को अच्छी तरह से समझ लिया है कि आम जनता को बहुत मुश्किल से मिलने वाला एक मात्र जीवन कैसे खुशहाल किया जा सकता है। उन्होंने बहुत मेहनत कर ऐसी योजनाएं पैदा की हैं, उचित परिस्थितियों का निर्माण किया है। उनका प्रशासन व अनुशासन इतनी कर्मठता व संजीदगी से लागू है कि मज़ाल है संतुष्टि इधर से उधर हो जाए। संतुष्ट जीवन के रास्ते ज्यादा हो जाएं तो दिमाग भी निरंतर स्वस्थ रहता है और कोई नकारात्मक विचार उसमें प्रवेश नहीं कर सकता। 


- संतोष उत्सुक

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