कौशिक ने कहा कि संग्रहण केंद्रों के अलावा प्रदेश सरकार इस ख़रीफ़ सत्र में ख़रीदे गए धान का अभी तक ख़रीदी केंद्रों से उठाव नहीं करा पाई है जिसके कारण ख़रीदी केंद्रों में धान खुले में पड़ा है और बारिश में भीगकर सड़ रहा है। प्रदेश सरकार को राष्ट्रीय सम्पदा की इस बर्बादी का कोई रंज ही नहीं है। कौशिक ने कहा कि यदि प्रदेश सरकार समय पर पिछले वर्ष कस्टम मिलिंग का काम करा लेती तो संग्रहण केंद्रों में ज़गह बनती और स्थानाभाव के चलते ख़रीदी का काम प्रभावित भी नहीं होता। लेकिन प्रदेश सरकार बहानेबाजी करके अपने निकम्मेपन पर पर्दा डालने का काम करती रही है। कौशिक ने कहा कि कोरोना और लॉकडाउन काल में शराब की कोचियागिरी करती प्रदेश सरकार चाहती तो मई-जून 2020 में धान की कस्टम मिलिंग करा सकती थी, लेकिन कमीशनखोरी में मशगूल प्रदेश सरकार ने वह काम नहीं किया और उसका ख़ामियाजा हाल के बीते ख़रीफ़ सत्र में किसानों को भोगना पड़ा और अब धान के सड़ने और जलने से हो रही क्षति के तौर पर प्रदेश को भोगना पड़ रहा है।