Lok Sabha Elections: समाजवादी पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग की परीक्षा भी है यह चुनाव

By संजय सक्सेना | May 14, 2024

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में एनडीए और इंडी गठबंधन के अलावा बहुजन समाज पार्टी भी मैदान में पूरी दमखम के साथ ताल ठोक रही है,। भारतीय जनता पार्टी जहां एनडीए का हिस्सा है तो वहीं समाजवादी पार्टी इंडी गठबंधन के बैनर तले पूरी ताकत के साथ और अपनी रणनीति के तहत यूपी में फोकस कर रही है। बसपा अपने दम पर ताल ठोंक रही है। चार चरणों का मतदान सम्पन्न होने तक यूपी में भाजपा-सपा के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है। कहीं-कहीं बीएसपी भी लड़ती हुई नजर आ रही है। मायावती का वोट बैंक इतना सालिड है कि उनको कोई हल्के में नहीं ले सकता है।


भाजपा जहां ब्राह्मण, क्षत्रिय और कुर्मी समुदाय के वोटरों पर फोकस कर रही है तो वहीं सपा अपने पारंपरिक वोटर मुस्लिम और यादव से हटकर इस बार अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) पर भी फोकस कर रही है। भाजपा 75 सीटों पर और उसके सहयोगी 5 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं, जिसमें 16 उम्मीदवार ब्राह्मण और 13 ठाकुर हैं। भाजपा की यह रणनीति उनके 2019 वाली रणनीति को दोहराती हुई दिखाई दे रही है। दूसरी ओर, सपा ने अपना फॉर्मूला बदल दिया है और कुर्मी, मौर्य, शाक्य, सैनी और कुशवाह समुदायों से ज्यादा उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं।

इसे भी पढ़ें: Jhansi में राहुल गांधी और अखिलेश यादव की जनसभा, कांग्रेस नेता बोले- INDIA गठबंधन के हजारों बब्बर शेर एक साथ

बात सपा की कि जाये तो लोकसभा चुनाव 2019 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ गठबंधन के बावजूद सपा को सिर्फ पांच सीटें मिलीं, जिससे सपा को इस बार रणनीति में बदलाव करना पड़ा है। 2019 में सपा ने 37 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें मुख्य रूप से यादव और मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि, इस बार सपा 62 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, फिर भी इस बार यादव और मुस्लिम उम्मीदवारों को कम टिकट दिए गये हैं। यूपी में मुस्लिम आबादी लगभग 20 प्रतिशत है। इसके बावजूद सपा ने केवल 4 मुस्लिमों को टिकट दिया है। यादव ओबीसी का सबसे बड़ा समुदाय है। इसके बावजूद 2019 में जहां सपा ने 10 यादवों को उम्मीदवार बनाया था तो वहीं इस सिर्फ 5 यादवों को टिकट दिया है। सभी पार्टी के पांचों यादव उम्मीदवार हैं। इनमें डिंपल यादव, अखिलेश यादव, आदित्य यादव, धर्मेंद्र यादव और अक्षय यादव को टिकट दिया है।


उक्त बिरादरियों के नेताओं को टिकट कम मिले हैं तो सपा ने कुर्मी, मौर्य, कुशवाहा, शाक्य और सैनी समुदायों को इस बार ज्यादा वरीयता दी है। उनकी हिस्सेदारी को ध्यान में रखते हुए सपा ने ज्यादा उम्मीदवार उतारे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सपा का अपने मूल वोट बैंक से अन्य समुदायों की ओर जाना इसकी सामाजिक इंजीनियरिंग रणनीति का हिस्सा है। हालांकि, यह एक तरफ  फायदेमंद लग सकता है, लेकिन दूसरी तरफ इसके दीर्घकालिक प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ सकते हैं। भाजपा ने भूमिहार, पंजाबी, पारसी, कश्यप, बनिया, यादव, तेली, धनगर, धानुक, वाल्मीकि, गोंड और कोरी जैसे समुदायों से एक-एक उम्मीदवार समेत वाल्मीकि, गुर्जर, राजभर, भूमिहार, पाल और लोधी समुदाय से भी एक-एक उम्मीदवार मैदान में उतारा है, जो टिकट वितरण का 1.6 फीसदी हिस्सा है।


इसी प्रकार से यूपी में कुर्मी-पटेल मतदाताओं की संख्या 7 फीसदी है। सपा ने इस वर्ग से 10 उम्मीदवार उतारे हैं। सर्वेक्षणकर्ताओं का मानना है कि दोनों पार्टियां व्यापक मतदाताओं को आकर्षित कर रही हैं। भाजपा अपनी पिछली रणनीति पर कायम है और सपा अधिक समावेशी दृष्टिकोण अपनाने का लक्ष्य बना रही है। चुनावी नतीजे इन रणनीतियों की प्रभावशीलता को निर्धारित करेंगे। गौरतलब हो, 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा और उसके सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) ने राज्य की 80 में से 62 सीटें जीती थीं। सपा-बसपा गठबंधन को अपेक्षित परिणाम नहीं मिले। उसे सिर्फ 15 सीटें (सपा-5 और बसपा 10) मिलीं, जबकि कांग्रेस को एक सीट मिली थी।

प्रमुख खबरें

केंद्रीय मंत्री Goyal ने भाजपा का समर्थन करने पर तेलंगाना के मतदाताओं को धन्यवाद दिया

Faridabad : साढ़े सात करोड़ रुपये की ठगी के मामले में आगरा का चर्चित ‘डिब्बा’ कारोबारी गिरफ्तार

चीन के राष्ट्रपति Xi Jinping अस्ताना में शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे

Sunak ने स्वामीनारायण मंदिर में दर्शन किए, कहा: हिंदू धर्म से मुझे प्रेरणा मिलती है