भारत के राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव परिणाम ने न केवल मतदाता के जागरूक होने का संकेत दिया है बल्कि भारत को भारतीय मूल्यों के अनुरूप विकसित होते देखने की उसकी मंशा को भी उजागर कर दिया है, इसलिये इन चुनावों में तुष्टीकरण, साम्प्रदायिकता, जातीयता के बजाय विकास एवं विकसित भारत के नाम वोट पड़े। मतदाताओं ने जो जनादेश दिया है उससे एक बार फिर सिद्ध हो गया है कि भारत में लोकतंत्र कायम है और इसकी जीवंतता के लिये मतदाता जागरूक है। मतदाता को ठगना या लुभाना अब नुकसान का सौदा है। इन चुनावों में मोदी लहर बरकरार रही, भले ही आप श्रेय चाहे ‘लाड़ली बहना’ को दें, तीन तलाक को दें, तीन ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था को दें, सनातन मूल्यों को दे। देश में पहली बार एक दल के नाम पर चुनाव हुए, नये भारत-सशक्त भारत के नाम पर चुनाव हुए, इन चुनावों में व्यक्ति गौण हो गए। ये चुनाव ज्यादा महत्वपूर्ण एवं उत्साह वाले इसलिये बने कि इन्हीं चुनावों को 2024 के लोकसभा चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा था। उस लिहाज से निस्संदेह तीनों राज्यों में बीजेपी को मिली प्रचंड एवं स्पष्ट ऐतिहासिक जीत बहुत बड़ी है और बहुत कुछ बयां कर रही है।
अगले लोकसभा चुनाव से चार माह पहले हुए इन विधानसभा चुनावों को सत्ता का सेमीफाइनल माना जा रहा था। उसी नजरिये से देखें तो यह सेमीफाइनल मुकाबला लगभग एकतरफा नजर आता है। उत्तर भारत के तीनों राज्यों में भाजपा ने जबर्दस्त जीत हासिल की है, जबकि दक्षिण भारत के एक और राज्य में कांग्रेस सत्ता पाने में सफल रही है। लेकिन वहां भी भाजपा का एक सीट से 8 तक पहुंचना भाजपा के लिये शुभता का संकेत है। आज भी किसी दल के नेता में यह क्षमता नहीं है कि देश की बजाय पार्टी के ध्वज तले आगे बढ़ सके, वे ही दल एवं नेता प्रभावी हैं जो देश के अस्तित्व एवं अस्मिता को नये शिखर देने के संकल्पबद्ध हैं, न कि षड़यंत्रपूर्वक किन्हीं अल्पसंख्यकों को एक दल-विशेष को वोट देने को उकसा रहे हैं। जनता ने परिवारवादी सोच को नकार दिया, भ्रष्टाचार के खिलाफ जमीन पर सच देखने को मतदाता आतुर है, राष्ट्र को तोड़ने की साजिशों पर भी मतदाता सतर्क एवं सावधान हुआ है। अगले लोकसभा चुनावों में अधिक समय बाकी नहीं है। जनता की आंखें सरकारों के कामकाज पर टिकी हुई रहेंगी। कई प्रकार की अपेक्षाएं बाट जोह रही हैं। लघु जनादेश ही बड़े जनादेश का आधार बनता है। इसलिये इस बार का जनादेश विशेष है, जनता के मन में क्या है, उसकी अभिव्यक्ति है। पिछले सरकारों के दौर में सत्ता-संघर्ष के चलते जाति-धर्म और सम्प्रदायों के नाम पर देश पीछे जा रहा था, विकास अवरुद्ध था, निवेश ठहरा हुआ था, रोजगार खो गया था, देश के भीतर एवं सीमाओं पर आतंकवाद को पनपाया जा रहा था, हिंसा एवं आतंकवादी घटनाओं से देश की आत्मा लहूलुहान थी। कोई नए भारत का, औद्योगिक भारत का सपना नहीं देख रहा था। राष्ट्रवाद की चर्चा करना पाप जैसा लगता था। इन हालातों को बदलने के लिये मोदी-संकल्पों ने फिजां ही बदल दी। दलों से ऊपर उठकर देशहित, राष्ट्रीयता, विकास एवं आमजन सर्वोपरि हो गया है, इसकी सार्थक निष्पत्तियां एवं स्वर लहरियां इन चुनावों परिणामों में सुनी जा सकती है।
दरअसल, तीन राज्यों में हार से कांग्रेस की राजनीतिक चुनौतियां कई गुना बढ़ गई हैं। यह हार अपने आप में बड़ा सदमा है, कांग्रेस की सत्ताकांक्षा एवं उससे जुड़ी परिवारवादी सोच, बड़बोलापन, मुक्त रेवड़ियों का सहारा, मोदी विरोध के नाम पर घटिया शब्दावली का प्रयोग, ऐसे कारणों की समीक्षा कांग्रेस को करनी ही पड़ेगी। भाजपा की जीत का श्रेय मोदी को जाता है, पर कांग्रेस की हार की जिम्मेदारी कौन लेगा? अब आसन्न चुनौती अगले लोकसभा चुनाव और विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के आंतरिक समीकरण होंगे। नया विपक्षी गठबंधन बनने के चंद महीने में हुए इन विधानसभा चुनावों में एकजुटता के बजाय अंतर्विरोधों का ही संदेश गया और बहुत कर्कश स्वर में गया। इन चुनाव परिणामों से न केवल कांग्रेस बल्कि समूचे विपक्ष के नेताओं को सीखना होगा, सबक लेना होगा। लोकलुभावन योजनाएं एवं मुफ्त-संस्कृति काम नहीं आयेगी। महत्वाकांक्षा एवं सबसे पुरानी पार्टी होने के अहंकार से बाहर आना होगा। बुनियादी स्तर पर संगठन और आम जनता के बीच जाकर विश्वास जीतना होगा, नीति एवं नियत को बदलना होगा। भारत की राजनीति एक नये बदलाव की ओर अग्रसर है, उस बदलाव के बिन्दुओं को स्वीकारना होगा।
तीन राज्यों की ऐतिहासिक जीत ने भाजपा का मनोबल निश्चित रूप से बढ़ेगा। भाजपा एवं मोदी की सोच, नीतियां, योजनाएं एवं दृष्टिकोण भी उनको अधिक साहसित एवं मनोबली बनायेंगे। उनके आदिवासी विकास का संकल्प, महिलाओं की भूमिका और 33 प्रतिशत आरक्षण का आश्वासन, समान नागरिक संहिता, सांस्कृतिक मूल्यों का विकास, युवाओं के लिये रोजगार, विश्वगुरु बनाने की कार्ययोजना, देश की सुरक्षा एवं साख जैसे गंभीर मुद्दों के निस्तारण के लिए भी मोदी ही दम रखते जान पड़ते हैं। देश को आगे बढ़ाना है तो तुष्टीकरण और भ्रष्टाचार से मुक्त होना आवश्यक है। मोदी ही गारण्टी की गारण्टी हैं, लेकिन इसमें अहंकार नहीं है, मोदी ने अपनी जगह पार्टी एवं देश की जनता को ही प्रमुखता दी, देश की जनता को हमेशा आगे रखा है। उन्होंने चुनावी सभाओं में साफ कहा कि पार्टी का चेहरा कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि कमल का फूल है, साफ-सुथरी नीतियां हैं, देश को सशक्त बनाने का संकल्प है। निश्चित ही इस बार के चुनाव परिणाम सनातन भारत को मजबूती देने वाले हैं, सनातन का अर्थ सच्चा भारत, सच्ची मानवीयता एवं उदात्त जीवन मूल्य।
तीन राज्यों का जनादेश का केवल राजनीतिक क्षेत्र में ही महत्त्व नहीं है, इसका सामाजिक क्षेत्र में भी महत्त्व है। जहाँ राजनीति में मतों की गणना को जनादेश कहते हैं, वहां अन्य क्षेत्रों में जनता की इच्छाओं और अपेक्षाओं को समझना पड़ता है। जनादेश और जनापेक्षाओं को ईमानदारी से समझना और आचरण करना सही कदम होता है और सफलता सही कदम के साथ चलती है। भारत के लोगों ने इस देश की बहुदलीय राजनैतिक व्यवस्था के औचित्य को न केवल स्थापित किया है बल्कि यह भी सिद्ध किया है कि मतदाता ही लोकतन्त्र का असली मालिक होता है। एक दिन का राजा ही हमेशा वाले राजा से बड़ा होता है। लोकतन्त्र की खासियत इसी बात में है कि मतदाता हर पांच वर्ष बाद अपनी विकास की बात करने वाले एवं स्वस्थ मूल्यों के धारकों को उनकी काबिलियत के मुताबिक चुनता है। तीनों राज्यों में मतदाताओं को लगा कि भाजपा का शासन एवं नीतियां उनके लिए ठीक है। इन चुनावों ने कांग्रेस एवं विपक्षी दलों की सत्ता लालसा पर लगाम लगा दी है। उनके लिये ये नतीजे खतरे की घंटी भी हैं और एक चुनौती भी हैं कि मतदाताओं को हल्के में नहीं लेना चाहिए, न अपनी जागीर समझना चाहिए। आज का मतदाता जागरूक है और परिपक्व भी है। अवसर आने पर किंग मेकर की भूमिका निभाने वाली जनता उसकी भावनाओं एवं अपेक्षाओं से खिलवाड़ करने वालों को जमीन भी दिखा देती है। कांग्रेस मुक्त भारत की ओर अग्रसर पार्टी को तेलंगाना की जीत संजीवनी देने वाली है, यह जीत कांग्रेस के लिए लिए एक बड़ी राहत भी देने वाली है। लेकिन उसे समझना होगा कि रेवड़ियां बांटने की राजनीति की अपनी सीमाएं हैं और बिना विचारधारा बहुत दूर तक नहीं जाया जा सकता।
निश्चित ही भाजपा ने इन राज्यों में नया इतिहास रच डाला और नया कीर्तिमान स्थापित किया। एक बार फिर यह साबित हुआ मोदी एक राष्ट्रीय नेता एवं जन-जन की धड़कन है। प्रांतों में नरेन्द्र मोदी का वर्चस्व कायम है। तमाम आलोचनाओं के बावजूद इन नतीजों ने साबित किया कि मोदी आज भी देश के सबसे लोकप्रिय और बड़े नेता हैं और विकास के सारथी हैं। देश की जनता अब विकास पर वोट डालती है न कि मुफ्त की सुविधाओं के झांसे में आती है, उसे सुशासन एवं सुनीतियां ही स्वीकार्य हैं। भाजपा की जीत का अर्थ निश्चित ही सुशासन भी है और इससे तीनों राज्यों के लोगों के कल्याण व विकास का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा। इसी की अपेक्षा के लिये जनता ने एकतरफा वोट डाले। मोदी ने राजनीति को एक नई दिशा दी है और वह है कि राजनीतिक चालें शुद्ध विकास एवं स्वस्थ लोकतांत्रिक मूल्यों से जुड़कर ही लम्बा जीवन पा सकती हैं।
-ललित गर्ग
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)