By अनुराग गुप्ता | Dec 26, 2020
स्वास्थ्य क्षेत्र में पड़ा अतिरिक्त बोझ
125 करोड़ आबादी वाले देश भारत में कोरोना वायरस महामारी की वजह से स्वास्थ्य क्षेत्र में अचानक से अतिरिक्त बोझ पड़ गया था। संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच अस्पतालों के साथ वार्ड एवं बिस्तरों की कमी और भी ज्यादा उजागर हो गई। केंद्र सरकार तत्काल प्रभाव से एक्टिव हो गई और अस्थाई कोविड केंद्रों का निर्माण किया गया। इसके अतिरिक्त कोरोना संक्रमण की जांच के लिए 1196 सरकारी प्रयोगशालाएं तो 1071 निजी प्रयोगशालाएं काम कर रही हैं।
वहीं, डॉक्टरों की कमी से जूझ रहे देश के सामने कोरोना महामारी से लड़ रहे योद्धाओं की जान बचानी भी किसी चुनौती से कम नहीं थी। इसके बावजूद 8 अगस्त 2020 को आईएमए ने एक आंकड़ा जारी किया था जिसके मुताबिक भारत में 196 डॉक्टरों की मौत हो चुकी है। हालांकि तारीख के साथ-साथ यह आंकड़ा भी बढ़ता रहा और सरकार भी डॉक्टरों को बचाने की जुगत में लगी रही।
साल 2019 के वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक के अनुसार 195 देशों में भारत 57वें स्थान पर है। इस रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई थी कि अधिकतर देश किसी बड़े संक्रमण से निपटने के लिए तैयार नहीं हैं और हम सबसे ऐसा होते देखा भी। हालांकि इस सूची में शीर्ष स्थान रखने वाले देशों को भी कोरोना ने नहीं छोड़ा। अमेरिका में अब तक 3,34,218 मरीजों की मौत हो गई। जबकि भारत में 1,46,778 मरीजों ने अपना दम तोड़ा।
प्रवासी कामगारों का पलायन
कोरोना वायरस महामारी के बढ़ते प्रकोप पर लगाम लगाने के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन लागू कर दिया। जिसके बाद आजादी के बाद के सबसे बड़े पलायन की तस्वीर सामने आई। गांवों से निकलकर जिन बड़े शहरों में अपने ख्याब पूरे करने के लिए कामगार जाते थे वह अब उनको खाने दौड़ रहा था। ऐसे में कामगारों ने अपने-अपने घरों की तरफ चलना शुरू कर दिया। बड़ी संख्या में प्रवासी कामगारों ने पैदल, साइकिल और रिक्शा की मदद से अपने घरों को लौटने लगे। इसी बीच सड़क दुर्घटनाओं की खबरें भी आने लगी और इन तमाम घटनाक्रमों को देखते हुए सरकार ने श्रमिक विशेष रेलगाड़ियां चलाने का निर्णय लिया।
प्रवासी कामगारों को घरों तक पहुंचाने के लिए सरकार ने विशेष रेलगाड़ियों का प्रबंध तो कर दिया था लेकिन इसमें कामगार समा नहीं पा रहे थे और अंतत: उन लोगों ने पैदल ही अपने घरों की तरफ कूच कर दी। बता दें कि प्रवासी कामगारों का यह पलायन आने वाले समय में बड़ी चुनौती बनकर उभरेंगे। विशेषज्ञ बताते हैं कि दिहाड़ी मजदूरों के नहीं होने से शहरों में श्रमशक्ति की कमी हो जाएगी और यह देखने को भी मिला। जब सरकार ने लॉकडाउन में अतिरिक्त छूट दी तो फैक्ट्रियों में काम करने के लिए मजदूर नहीं थे। ऐसे में कंपनियों को अपना काम शुरू करने के लिए मजदूरों को टिकट देकर बुलाना पड़ा और उनके भीतर के कोरोना नामक भय को भी हटाना पड़ा।
सामाजिक दूरी का नियम
125 करोड़ आबादी वाले देश में कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए मजबूत रणनीति की आवश्यकता होगी। जैसे की सार्वजनिक स्थानों पर ज्यादा भीड़भाड़ न हो, आयोजनों में कम से कम व्यक्ति शामिल हों इत्यादि... कोरोना वायरस के मामले हाल के दिनों में कम आ रहे हैं लेकिन दिशा-निर्देशों में अनदेखी के बाद मामले बढ़ भी सकते हैं। ऐसे में जरूरी है कि इनका कड़ाई से पालन हो और सार्वजनिक स्थानों के लिए सामाजिक दूरी जैसे नियमों की अनदेखी न हो।
बेरोजगारीदर में इजाफा
देशव्यापी लॉकडाउन के बाद आर्थिक गतिविधियां ठप्प हो गईं और फिर शुरूआत हुई लोगों के बेरोजगार होने की। हालांकि, सरकार ने लॉकडाउन के बाद अनलॉक की प्रक्रिया शुरू करते हुए देशवासियों को अतिरिक्त छूट दी लेकिन फिर भी बेरोजगारी दर बहुत ज्यादा रही। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (सीएमआईई) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि जुलाई 2020 के मुकाबले अगस्त 2020 में भारत में बेरोजगारी की दर बढ़ी है।
रिपोर्ट के मुताबिक, अगस्त में बेरोजगारी दर 8.35 फीसदी दर्ज की गई, जबकि जुलाई में यह 7.43 फीसदी थी। आर्थिक गतिविधियां शुरू होने के बावजूद जॉब की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। जो सरकार को मुश्किल में डाल सकती है।
अर्थव्यवस्था
कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ है। कुछ एजेंसियों का मानना है कि इस वित्त वर्ष में विकास दर में मामूली वृद्धि की संभावना जताई जा रही है। वहीं, ग्लोबल रेटिंग एजेंसी (एसएंडपी) ने चालू वित्त वर्ष के लिए भारत के विकास दर के अनुमान को बढ़ाकर माइनस 9 फीसदी से माइनस 7.7 फीसदी कर दिया है। बता दें कि लॉकडाउन की वजह से हर एक सेक्टर को नुकसान पहुंचा है और केंद्र की मोदी सरकार के 2025 तक 5 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के सपने पर भी मोच आ गई है। हालांकि, सरकार ने अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी। जिसे विपक्ष ने लोन का मेला बताया था।
वहीं, ब्रिटेन के प्रमुख आर्थिक अनुसंधान संस्थान सेंसटर फार इकोनॉमिक एंड बिजनस रिसर्च (सीईबीआर) की वार्षिक रिपोर्ट सामने आई है। जिसमें कहा गया है कि भारत महामारी के असर से रास्ते में थोड़ा लड़खड़ा गया है। इसी वजह से भारत 2019 में ब्रिटेन से आगे निकलने के बावजूद इस साल ब्रिटेन से पीछे हो गया है। ब्रिटेन 2024 तक आगे बना रहेगा और उसके बाद भारत आगे निकल जाएगा। रिपोर्ट में यह भी अनुमान जताया गया है कि 2021 में भारत की वृद्धि 9 प्रतिशत और 2022 में 7 प्रतिशत रहेगी। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि भारत 2025 में ब्रिटेन से, 2027 में जर्मनी से और 2030 में जापान से आगे निकल सकता है।
कृषि सेक्टर
कोरोना महामारी का असर कृषि सेक्टर में भी पड़ सकता है। हालांकि सरकार के पास पर्याप्त मात्रा में आनाज है और उन्होंने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत किसानों को मजबूती प्रदान करने के लिए 30 हजार करोड़ रुपए का अतिरिक्त लोन देने का ऐलान किया था। वहीं, केंद्र की मोदी सरकार ने हाल ही में किसानों को किसान सम्मान निधि के तौर पर 2000-2000 हजार रुपए की किस्त सीधे उनके खातों में ट्रांसफर कर दी है। लेकिन, नए कृषि कानून सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है।
किसानों के हित की बात करने वाली मोदी सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का गुस्सा दिल्ली की सीमाओं पर उबल रहा है। चार हफ्तों से भी ज्यादा समय से किसान दिल्ली की सीमाओं पर धरना दिए हुए हैं। जबकि सरकार का कहना है कि किसान संगठनों के साथ बातचीत जारी है जल्द ही इस समस्या का समाधान हो जाएगा। बता दें कि अब तक पांच दौर की वार्ता सम्पन्न हो चुकी है लेकिन कोई भी हल नहीं निकल सका है।
पड़ोसियों के साथ संबंध को सुधारना
भारत ने अपने पड़ोसी मुल्कों के साथ रिश्तों को बेहतर किया है लेकिन चीन के साथ तनातनी जारी है। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की मौजूदगी के बाद गतिरोध बढ़ गया। इसके बाद 15-16 जून की दरमियानी रात को चीन की पीएलए ने गलवान घाटी में भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया। जिनमें एक कर्नल समेत 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गई। हालांकि, मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि चीन के भी काफी सैनिक मारे गए थे लेकिन चीन ने मौत की खबरों को स्वीकार नहीं किया था।
पूर्वी लद्दाख के इलाकों पर चीन के साथ जारी गतिरोध के बीच नेपाल ने अपनी संसद में विवादित नक्शे को पास कर दिया। इस नक्शे में नेपाल ने भारत के तीन इलाकों (कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा क्षेत्रों) को अपना बताया। हालांकि, भारत ने कड़े शब्दों में इस पर विरोध जताया। अब यह देखना है कि पड़ोसी मुल्कों के साथ रिश्ते कैसे मधुर होते हैं।