By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Sep 29, 2022
नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि सशस्त्र बलों में सैन्य अधिकारियों के खिलाफ व्यभिचार के मामलों में अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए किसी तरह की प्रणाली होनी चाहिए, क्योंकि इस तरह का आचरण अधिकारियों के जीवन में हलचल पैदा कर सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा कि व्यभिचार से परिवार में पीड़ादायी स्थिति बन जाती है और इसे मामूली तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति के एम जोसफ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा, ‘‘वर्दी वाली सेवाओं में अनुशासन का बहुत महत्व है।
इस तरह का आचरण अधिकारियों के जीवन में हलचल पैदा कर सकता है। सभी अंतत: परिवार पर आश्रित होते हैं जो समाज की इकाई है। समाज में ईमानदारी जीवनसाथियों के परस्पर विश्वास पर टिकी है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘सशस्त्र बलों को किसी तरह का आश्वासन देना चाहिए कि वे कार्रवाई करेंगे। आप जोसफ शाइन (फैसले) का हवाला कैसे दे सकते हैं और कैसे कह सकते हैं कि ऐसा नहीं हो सकता।’’ शीर्ष अदालत ने अनिवासी भारतीय (एनआरआई) जोसफ शाइन की एक याचिका पर 2018 में भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को रद्द कर दिया था और इसे असंवैधानिक करार दिया था जो व्यभिचार के अपराध से संबंधित है। संविधान पीठ ने बृहस्पतिवार को कहा कि दोषी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही को रोकने के लिए शीर्ष अदालत के वर्ष 2018 के फैसले का हवाला नहीं दिया जा सकता।
संविधान पीठ में न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार भी शामिल रहे। केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल माधवी दीवान ने वर्ष 2018 के फैसले पर स्पष्टीकरण की मांग की थी। इसके बाद संविधान पीठ की टिप्पणियां आईं। रक्षा मंत्रालय ने शीर्ष अदालत में कहा था कि 27 सितंबर, 2018 का व्यभिचार को अपराध के रूप में खारिज करने का फैसला इस तरह के कृत्यों के लिए सशस्त्र बलों के कर्मियों को दोषी करार दिये जाने के रास्ते में आ सकता है। दीवान का कहना था, ‘‘हम कहना चाह रहे हैं कि धारा 497 को रद्द किया जाना अशोभनीय आचरण के लिए अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने में सशस्त्र बलों के रास्ते में नहीं आएगा।