आजादी के 659 दिन बाद भोपाल में फहराया गया था तिरंगा, चार युवाओं की शहादत के बाद हुआ था भोपाल रियासत का विलय

By दिनेश शुक्ल | Jun 01, 2020

भोपाल। भारत को आज हुए करीब दो साल हो गए थे लेकिन देश की कुछ ऐसी रियासते थी जो भारत गणराज्य में शामिल होने को तैयार नहीं थी उन्हीं में एक थी भोपाल रियासत। जिसको भारत में शामिल करने के लिए यहां के लोगों ने एक लंबी लड़ाई लड़ी और चार युवकों ने अपे प्राणों का बलिदान दिया जिसके बाद 01 जून 1949 को देश के आजाद होने के 659 दिन बाद आजादी मिली। 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया था, लेकिन आजादी मिलने के बाद भी भोपाल आजाद नहीं था। भोपाल रियासत के भारत गणराज्य में विलय में लगभग दो साल का समय इसलिए लगा क्योंकि, भोपाल नवाब हमीदुल्ला खाँ इसे स्वतंत्र रियासत के रूप में रखना चाहते थे। साथ ही हैदराबाद निजाम उन्हें पाकिस्तान में विलय के लिए प्रेरित कर रहे थे। जो कि भौगोलिक दृष्टि से असंभव था। आजादी के इतने लम्बे समय बाद भी भोपाल रियासत का विलय न होने से जनता में भारी आक्रोश था। यह जनआक्रोश विलीनीकरण आन्दोलन में परिवर्तित हो गया और इस आन्दोलन ने आगे जाकर उग्र रूप ले लिया।      

 

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भोपाल रियासत के भारत गणराज्य में विलय के लिए रायसेन, सीहोर और होशंगाबाद से आन्दोलनकारी गतिविधियां संचालित हो रही थी। रायसेन में ही उद्धवदास मेहता, बालमुकन्द, जमना प्रसाद, लालसिंह ने विलीनिकरण आन्दोलन को चलाने के लिए जनवरी-फरवरी 1948 में प्रजा मंडल की स्थापना की थी। रायसेन के साथ ही सीहोर से भी तीव्र आन्दोलनकारी गतिविधियाँ चलाई गईं। नवाबी शासन ने आन्दोलन को दबाने का भरसक प्रयास किया। आन्दोलनकारियों पर लाठिया-गोलियां चलवाईं गईं।

 

भोपाल रियासत के विलीनीकरण में रायसेन जिले के ग्राम बोरास में 4 युवा शहीद हुए। यह चारों शहीद 30 साल से कम उम्र के थे। इनकी उम्र को देखकर उस वक्त युवाओं में देशभक्ति के जज्बे का अनुमान लगाया जा सकता है। शहीद होने वालों में श्री धनसिंह आयु 25 वर्ष, श्री मंगलसिंह 30 वर्ष, श्री विशाल सिंह 25 वर्ष और एक 16 वर्षीय किशोर मा. छोटेलाल शामिल था। इन शहीदों की स्मृति में रायसेन जिले की उदयपुरा तहसील के ग्राम बोरास में नर्मदा तट पर 14 जनवरी 1984 में शहीद स्मारक स्थापित किया गया है। नर्मदा के साथ-साथ बोरास का यह शहीद स्मारक भी उतना ही पावन और श्रृद्धा का केन्द्र है। हर साल यहां 14 जनवरी को विशाल मेले का आयोजित होता है।

 

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14 जनवरी 1949 को उदयपुरा तहसील के ग्राम बोरास के नर्मदा तट पर विलीनीकरण आन्दोलन को लेकर विशाल सभा चल रही थी। सभा को चारों ओर से भारी पुलिस बल ने घेर रखा था। सभा में आने वालों के पास जो लाठियां और डण्डे थे, उन्हें पुलिस ने रखवा लिया। विलीनीकरण आन्दोलन के सभी बड़े नेताओं को पहले ही बन्दी बना लिया गया था। बोरास में 14 जनवरी को तिरंगा झण्डा फहराया जाना था। आन्दोलन के सभी बड़े नेतओं की गैर मौजूदगी को देखते हुए बैजनाथ गुप्ता आगे आए और उन्होंने तिरंगा झण्डा फहराया। तिरंगा फहराते ही बोरास का नर्मदा तट भारत माता की जय और विलीनीकरण होकर रहेगा नारों से गूंज उठा।

 

पुलिस के मुखिया ने कहा जो विलीनीकरण के नारे लगाएगा, उसे गोलियों से भून दिया जाएगा। उस दरोगा की यह धमकी सुनते ही एक 16 साल का किशोर छोटेलाल हाथ में तिरंगा लेकर आगे आया और उसने भारत माता की जय और विलीनीकरण होकर रहेगा नारा लगाया। पुलिस ने छोटेलाल पर गोलियां चलाई और वह जमीन पर गिरता इससे पहले धनसिंह नामक युवक ने तिरंगा थाम लिया, धनसिंह पर भी गोलिया चलाई गई, फिर मंगलसिंह पर और विशाल सिंह पर गोलियां चलाई गईं लेकिन किसी ने भी तिरंगा नीचे नहीं गिरने दिया। इस गोली काण्ड में कई लोग गम्भीर रूप से घायल हुए। बोरास में आयोजित विलीनीकरण आन्दोलन की सभा में होशंगाबाद, सीहोर से बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए थे।

 

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बोरास में 16 जनवरी को शहीदों की विशाल शव यात्रा निकाली गई जिसमें हजारों लोगों ने अश्रुपूरित श्रृद्धांजली के साथ विलीनीकरण आन्दोलन के इन शहिदों को विदा किया। अंतिम विदाई के समय बोरास का नर्मदा तट शहीद अमर रहे और भारत माता की जय के नारों से आसमान गुंजायमान हो उठा। बोरास के गोली काण्ड की सूचना सरदार वल्लभ भाई पटेल को मिलते ही उन्होंने प्रशासनिक अधिकारी वीपी मेनन को भोपाल भेजा था। जिसके बाद भोपाल रियासत का 01 जून 1949 भारत गणराज्य में विलय हो गया और भारत की आजादी के 659 दिन बाद भोपाल में तिरंगा झण्डा फहाराया गया।


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